सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

वामपंथ, अंग्रेज, मनुस्मृति और संविधान

वामपंथीयो ने ऐसा इतिहास बदला कि सबकी मति पर पर्दा पड़ गया । ब्राह्मण सिर्फ पूजा पाठ करते थे। तो मंगल पांडेय कौन थे, चंद्र शेखर आज़ाद कौन थे? ब्राह्मण भीख मांग के खाते थे तो पेशवा कौन थे? शूद्र जातियों का दमन होता था तो रानी दुर्गावती राजा मदन और गौंड राजा कौन थे? दलित ज्ञान से वंचित रखे जाते थे तो रैदास और घासी दास कैसे ज्ञानी और सम्मानीय हुए? मुझे लगता है यह ऐसी कर्माधारित व्यवस्था थी जिसे अगर कोई चाहे,  तो छोड़कर अपनी योग्यता के आधार पर दूसरी व्यवस्था में जा सकता था। ऐसा ही था जो बाजीराव क्षत्रियों का काम कर रहे थे । महिलाओं के शोषण के आरोप हिन्दू समाज पर लगाए जाते हैं, वामपंथी इसके लिए महिला सशक्तिकरण केआंदोलन चलाते हैं। पर जब मैं इतिहास पड़ता हूँ तो मुझे कृष्ण की पत्नी रुक्मणि दिखती है, सीता का स्वयंवर दिखता है, माता सति का भगवान शंकर के लिए अपने पिता के खिलाफ किया आत्मदाह दिखता है। वामपंथी कहते हैं हम ब्राह्मण असहिष्णु थे,  तो कैसे इसी व्यवस्था से,  गुरुनानक देव जी ने नया धर्म खड़ा किया और इसी व्यवस्था से जैन और बौद्ध बने, इसी व्यवस्था ने पारसियों, मुसलमानों और ईसाइयों को देश में रहने
हाल की पोस्ट

छुट्टन की पिनक

#छुट्टन_गुरु आज मूड में थे, बनारसी पेड़ा खाए थे तो दिमाग के सारे रिसेप्टर चैतन्य थे.... #लल्लन_महाराज ने झेला यह निम्न भाषण 😂 भारतीय मध्यम वर्गीय #मानसिकता के अनुसार, लोग 10 रुपए बचाने के चक्कर में बाजार का चक्कर लगाने पैदल निकल पड़ते थे, पर अब घर से नहीं निकलना चाहते। अब मानसिकता बदली है, वे कहते है महंगा तो है पर 200 का कुछ और खरीद लो, तो शिपिंग फ्री हो जायेगी और रेट ठीक हो जायेगा, यह मानसिक परिवर्तित हमे गर्त में ले जा रहा है। 😂😂😂 ऑनलाइन कंपनियों ने पिछले 15 सालो में इतनी मानसिकता तो बदली ही है।। पहले हम विदेशियों की #डंपिंग पॉलिसी का विरोध करते थे। अब #विदेशी #कंपनियां आपके घर को डंपिंग गोदाम बना रहीं हैं। पहले राष्ट्र #यूएनओ और विश्व बैंक के लालच में था, अब हम पैसे के लालच में हैं। आप जितनी दूर से सामान मंगाएंगे उतना पर्यावरण 🤨खराब होगा, जितनी पैकेजिंग करेंगे उतना पर्यावरण दूषित होगा। उत्पादन हेतु बड़े कारखाने लगवाएंगे तो पर्यावरण दूषित होगा। लालच, खरीददारी बढ़ाता है और आपकी सेविंग कम करता है। अब पैकेजिंग और ब्रांडिंग नहीं होगी तो टैक्स कहां से आएगा? सरकारें कैसे

वैश्विक मानसिक गुलामी

#मानसिक_गुलामी 1961 में, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने दुनिया भर में भांग को नष्ट करने का फैसला किया।  इस फैसले के पीछे के कारणों के बारे में यूएन से ही पूछताछ जरूरी है।  इसके अतिरिक्त, हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि 50 देश, जो संयुक्त राष्ट्र के एकल मादक पदार्थ सम्मेलन का हिस्सा थे, ने अंततः समझौते को क्यों तोड़ा।  समझौता तोड़ने के बाद इन देशों के लिए क्या परिणाम हुए?   इसके अलावा, यह सवाल करना महत्वपूर्ण है कि हम अभी भी इस अनुबंध से बंधे क्यों हैं।  सरकार के सामने न केवल राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में निर्णय लेने की चुनौती है बल्कि पिछली सरकारों के कारण पैदा हुए भ्रम से भी निपटने की चुनौती है।  वेदों में पवित्र माने जाने वाला यह पौधा ऊनो और अमेरिका के दबाव में अचानक रातों-रात संवैधानिक रूप से अपवित्र कैसे हो गया?   1985 से पहले, भांग का उपयोग सामाजिक और धार्मिक समारोहों में किया जाता था और भगवान शिव को चढ़ाया जाता था।   यह पौधा रातों-रात राक्षसी, अपवित्र और अपराधी कैसे बन  है?  यदि वास्तव में कोई साजिश थी और हमें इसका एहसास हो गया है,  तो अब इस चक्रव्यूह से मुक्त होने का समय आ गया है

भांग, पहाड़, भांग नीति और सर्वांगीण विकास...

#औद्योगिक भांग वृहद भ्रम का विषय है, भारत में औद्योगिक भांग की प्रजाति का न तो कोई पौधा उपलब्ध है न ही #विदेशी परिभाषाओं के हिसाब का कोई भांग का पौधा हमारी शिवालिक पर्वत मालाओं में है। हमारा पहाड़ #विजया या #भांग के पौधे से भरा पड़ा है पर #हेम्प जैसी सस्ती चीज हमारे पहाड़ों में नहीं है, हमारी विजया अमूल्य है। औद्योगिक भांग में नशा नहीं होता, यह पौधा न मनोरंजन के काम आता है न ही औषधि के, इसीलिए इसे #कैनाबिस की श्रेणी में नहीं रखा जाता इसे #हेंप कहते हैं, मनोरंजन के लिए और औषधि के लिए जो पौधा उपयोग में आता है उसे विदेशी परिभाषा कैनाबिस #इंडिका कहती है, यह पौधा शिवालिक की पर्वत श्रृंखलाओं को छोड़ पूरे देश के मैदानी हिस्सो मे पाया जाता है, जिसका कोई औद्योगिक उपयोग नहीं है। पर हमारी शिवालिक की #विजया अद्भुत है। इससे हम औद्योगिक प्रयोजन के लिए बीज, रेशा और शाईव भी पाते हैं और मनोरंजन और औषधि के लिए फूल और पत्ती भी। औद्योगिक भांग बहुत सस्ती है और इसे बहुत बड़ी मात्रा में उगाना पड़ता है तब इससे कोई एक उद्योग उत्तराखंड में लग सकता है जबकि औषधीय विजया की थोड़ी सी खेती

प्रश्नवाचक ऑंखें....

प्रश्न एक बुरी चीज़ जिसको कोई पसंद नहीं करता पर बिना प्रश्न किये जी भी नहीं सकता... जीवन की धुरी है प्रश्न, जिसको इससे प्यार हो वही सफल होता है. सफलता सभी पसंद करते हैं पर प्रश्न कोई पसंद नहीं करता सभी उससे बचना चाहते हैं. प्राथमिक कक्षा के बच्चे से पूंछे या कोलेज मे पड़ने वाले से सभी प्रश्नों से बचना चाहते हैं. पांचवीं मे उत्तर पुस्तिका मे प्रश्नों के जवाब देकर ही विद्यार्थी पांचवीं पास होता है. और यू पी एस सी से आई ऐ एस बनता है. पर जब आँखे प्रश्न करती हैं तों उत्तर देने वाला परेशां हो जाता है. जीवन मे आँखों का अपना महत्त्व है, सबसे ज्यादा प्रश्न यही करती हैं और जिससे ये प्रश्न करती हैं उसे बहुत परेशान करती हैं. आँखे क्या पूछ रहीं है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है ये क्या जानना चाहती हैं या क्या कह रहीं हैं ? हमारे चक्षु ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान कराते है। ध्यान रखे ये कहीं गलत संदेश तो नहीं दे रहे। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

आपकी "न" ही आपको स्थापित करती है।

सही #साधक वह है जो काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ से आजाद हो। देखिए किन किन चीजों से आप आजाद हुए हैं। इसका मूल मतलब होता है कि किन किन चीजों को आप छोड़ सकते है। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत न है और न कहते ही संघर्ष शुरू होता है और संघर्ष विजेता को ही परितोषक मिलता है। पर क्या इस "न" से किसी को फायदा होता है? हम्म्म - "न" सामाजिक, चारित्रिक उत्थान का मूल है। "न" आपको प्रतीक गढ़ने का मौका देती है पर वह बुद्धिमान की "न" हो।। जिन्होंने काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ को "न" कहा है वे ही महान हुए हैं। उन्होंने ही महान शासक, महान आध्यात्मिक पंथ और महान संस्कृतियां खड़ी की। "न" हमेशा से विद्रोह का प्रतीक है पर यह विद्रोह किससे? - प्रकृति से तो यह विद्रोह नहीं हो सकता। पर हम लड़ तो पृथ्वी से ही रहे है, हम लड़ रहे है अपने बच्चो के भविष्य से।। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

ब्राह्मिक और अब्राहमिक मान्यताएं और पर्यावरण।।

  मेरी छुद्र जिज्ञासा है कि #अब्राहमिक शब्द क्या #ब्रह्मिक का विरोधाभासी है? या यह शब्द #A_Brahmik है? हिंदी में - #ब्रम्हत्व से परे या #ब्रह्म से परिपूर्ण ? प्रश्न व्याकरण का है पर #भयंकर #धार्मिक है? #सनातन और #हिंदुस्तान को जितना मैंने समझा है, वह इस #ब्रह्मांड का #सार्वभौमिक #वैज्ञानिक संविधान है, जिसके पालन किए बिना पृथ्वी हमें ज्यादा बर्दाश्त नहीं करेगी। वह विद्रोह में कांप जाएगी, जल प्लावन कर देगी, अन्न और प्राणवायु हमसे छीन लेगी। क्यों #जलप्लावन से प्रलय का, हर #धर्म में वर्णन है? अब नासा कहता है की #ग्लोबल_वार्मिंग से प्रलय संभव है... ऐसा क्यों?  यह सब हम जानते हैं पर मानते नहीं? ब्रह्म का #सिद्धांत तो हम जानते हैं,  पर मानना नहीं चाहते।  हमे समझना चाहिए कि सभी जीवों में भी वही #ब्रह्म है जो हम में है। वही चेतन है जो हम में है। इसी का एक सरल रूपांतरण, #वसुधैव_कुटुंबकम् है, जबकि मुझे लगता है कि इसका सत्य रूपांतरण #शिवोहम, अहम_ब्रह्मास्मि या कण कण में शंकर की अवधारणा है। यही वह मूल सिद्धांत है जो #परमाणु_निरस्त्रीकरण, #युद्ध और #विकसित_देशों के #विकासशील_देशों पर हो रहे शोषण का