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एक था राजा...

एक था राजा जिसकी संतान नहीं थी.  उसने विचार किया और निर्णय लिया कि राज्य के सबसे कमज़ोर और गरीब आदमी को मैं, "राज पाठ सौंपकर संन्यास ले लूँ" राजा ने मुनादी करवा दी.  सेनापति एक कमज़ोर साधू को पकड़ लाये. राजा : तुम्हारे पास कितनी संम्पत्ति है. साधू : सिर्फ कमंडल है. राजा : और ताकत. साधू : घसीट घसीट के चल लेता हूँ. राजा : मैं तुम्हें इस राज्य का राजा बनाता हूँ. साधू : नहीं महाराज नहीं.... राजा उस साधू का बलपूर्वक राजतिलक कर देता है.  साधू राजा मंत्रियों को बुलाकर राज्य में...  मुफ्त अनाज बत्वाना शुरू कर देता है. कुछ दिन बाद साइकिलें बंटाना शुरू करता है. फिर गायें और बैल बांटता है.... एक दिन कोषाध्यक्ष आ कर राजा से कहता है.... महाराज अब तो राजकोष ख़त्म हो गया है अब ये मुफ्त आवंटन कैसे होगा... बताएं महाराज मैं क्या करूं... राजा : राजसी वस्त्र उतार कर भगवा वस्त्र  धारण कर लेता है और कहता है....    जाओ कोषाध्यक्ष... जाकर मेरा कमंडल लाओ. ;-) (जांजगीर के एक मित्र द्वारा यह कहानी नवीन टाइल्स कोरबा में सुनाई गयी.)