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वामपंथ, अंग्रेज, मनुस्मृति और संविधान

वामपंथीयो ने ऐसा इतिहास बदला कि सबकी मति पर पर्दा पड़ गया । ब्राह्मण सिर्फ पूजा पाठ करते थे। तो मंगल पांडेय कौन थे, चंद्र शेखर आज़ाद कौन थे? ब्राह्मण भीख मांग के खाते थे तो पेशवा कौन थे? शूद्र जातियों का दमन होता था तो रानी दुर्गावती राजा मदन और गौंड राजा कौन थे? दलित ज्ञान से वंचित रखे जाते थे तो रैदास और घासी दास कैसे ज्ञानी और सम्मानीय हुए? मुझे लगता है यह ऐसी कर्माधारित व्यवस्था थी जिसे अगर कोई चाहे,  तो छोड़कर अपनी योग्यता के आधार पर दूसरी व्यवस्था में जा सकता था। ऐसा ही था जो बाजीराव क्षत्रियों का काम कर रहे थे । महिलाओं के शोषण के आरोप हिन्दू समाज पर लगाए जाते हैं, वामपंथी इसके लिए महिला सशक्तिकरण केआंदोलन चलाते हैं। पर जब मैं इतिहास पड़ता हूँ तो मुझे कृष्ण की पत्नी रुक्मणि दिखती है, सीता का स्वयंवर दिखता है, माता सति का भगवान शंकर के लिए अपने पिता के खिलाफ किया आत्मदाह दिखता है। वामपंथी कहते हैं हम ब्राह्मण असहिष्णु थे,  तो कैसे इसी व्यवस्था से,  गुरुनानक देव जी ने नया धर्म खड़ा किया और इसी व्यवस्था से जैन और बौद्ध बने, इसी व्यवस्था ने पारसियों, मुसलमानों और ईसाइयों को देश में रहने