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जुलाई, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धर्म और राजनीति

#हथौड़ा_पोस्ट धर्म और राजनीति : धर्म का राजनीति में प्रवेश राजनेताओ को पसंद नहीं। आखिर क्यूँ? सोचिये : अगर एक शंकराचार्य/ दंडी स्वामी/संत/आचार्य सत्तासीन नेताओ को निर्देशित करने लगे तो क्या अनैतिक आचरण और भ्रष्टाचार बचेगा? क्या बलात्कारी नेता, हत्यारे नेता सत्ता चला सकेंगे? एक व्यक्ति जिसे धार्मिक व्यवस्था के आधार पर कुटिया में रहना है, खूब यात्राएं करनी है, धन और तामसी व राजसी चीजो से परहेज करना है अगर वह सत्ता को निर्देशित करेगा तो क्या उसे सत्ता खरीद पाएगी? सत्ता सिर्फ उसे खरीद पाती है जिसकी जरूरते होती है, वैराज्ञ धारी को कौन खरीद सकता है? जो 9 महीने देश भर में यात्रा करेगा, 3 महीने स्थिर रहेगा उसका जनता से जुड़ाव होगा। और वह चाहे तो सत्ता को चुनौती दे सकता है, ऐसा चाणक्य ने किया था। और इसी बात का डर अंग्रेजो को था। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले सत्ता को निर्देशित करने वाली धार्मिक व्यवस्था को छिन्न भिन्न किया, फिर ब्राह्मणों को फिर कांग्रेस आयी तो उसने कुटुम्ब प्रमुख, समाज प्रमुख और ग्राम प्रमुखों की व्यवस्था उलट दी। कांग्रेस ने अंग्रेजो की व्यवस्था को ही आगे बढ़ाया, क्योंकि

मोदी और मुस्लिम तुष्टिकरण

#हथौड़ा_पोस्ट बड़ा गड़बड़ है भई, भयंकर संघी भी यह मान रहे हैं कि @BJP4INDIA मुस्लिम तुस्टीकरण के रास्ते चल पड़ी है। सरकार संघ की विचारधारा से भटक गई है। यह सच नहीं है, यह अखबारों की खबरों और प्रोपोगेंडा का असीमित प्रभाव है। मैं इन प्रचण्ड संघियो से असहमत हूँ। संघ पिछले 65 सालो में देश की बड़ी संस्थाओ में घुसने में असफल था, अटल जी आडवाणी जी ने सरकार या बड़े संवैधानिक पदों में हार्डकोर संघियो को बिठाने की हिम्मत नही की, मोदी ने राष्ट्रपति से लेकर कई राज्यो के मुख्यमंत्री ही संघ से उठाकर बनाये। अटल जी के समय संघ और सरकार का झगड़ा हमेशा खबरों में रहा, दत्तोपंत ठेंगड़ी तो सरकार की नाक में नकेल डाले रहे। ऐसी एक भी घटना पिछले 5 सालों में नहीं हुई। पहले संघ सरकार की गलतियां चिन्हित करता था, पर बिहार चुनाव में तो भाजपा ने संघ प्रमुख के बयान पर ही हार का ठीकरा फोड़ दिया। यह परिवर्तन है, बड़े भाई के साथ जब छोटा भाई बराबर से कमाने लग जाये तो वे दोस्त हो जाते हैं। यही हो रहा है, संघ और भाजपा भरपूर सामंजस्य के साथ विस्तार कर रहे हैं। सरकार में दोनों की भागीदारी है, संस्थागत संवैधानिक संस्थाओं में

नेतागिरी : एक कठिन पेशा

नेता और नेतागिरी बड़ी कठिन चीज है। यहां आपको ऐसी समझ चाहिए जो - 1- रॉकेट वैज्ञानिक की बात भी समझ सके और अनपढ़ की भी। 2- आप धनिक वर्ग को भी समझ सकें और निर्धन को भी। 3- आप क्षेत्र, राज्य और राष्ट्र की आवश्यकताओं को अलग अलग कर के देख सकें। 4- आपका सहृदय होना भी उतना ही जरूरी है जितना कुटिल होना। 5- आपको ए सी में भी आनंद आना चाहिए और गर्मी की चिलचिलाती धूप में भी। 6- जीत की खुशी और हार के गम से आपको निर्पेक्षय होना चाहिए। 7- घर और समाज दोनों की समान रूप से जिम्मेदारी उठाना आपका फ़र्ज़ है। 8- वंचित वर्ग और समर्थ वर्ग से आपको समान प्रेम होना चहियर। मतबल : नेता को निरपेक्ष होना ही पड़ेगा अन्यथा उसे नेपथ्य में जाने में देर नही लगेगी। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

भारतीयता और रोमांस (आसक्त प्रेम)

प्रेम विवाह 😂 कहां है प्रेम विवाह सनातन में? कृपया बताएं... जुलाई 14, 2019 रोमांस का अंग्रेजी तर्जुमा है - A feeling of excitement and mystery of love. This is some where near to lust. The indian Love one is with liabilities, sacrifices with feeling of care & love. The word excitement and mystery has not liabilities, sacrifices with feeling of care. प्रेम का अंग्रेज़ी तर्जुमा - An intense feeling of deep affection. मैंने एक फौरी अध्यन किया भारतीय पौराणिक इतिहास का ! बड़ा अजीब लगा - समझ में नहीं आया यह है क्या ? यह बिना रोमांस की परम्परायें जीवित कैसे थी आज तक ? और आज इनके कमजोर होने और रोमांस के प्रबल होने पर भी परिवार कैसे टूट रहे हैं ? भारतीय समाज में प्रेम का अभूतपूर्व स्थान है पर रोमांस का कोई स्थान नहीं रहा ? हरण और वरण की परंपरा रही पर परिवार छोड़ कर किसी से विवाह की परंपरा नहीं रही ! हरण की हुयी स्त्री उसके परिवार की हार का सूचक थी और वरण करती हुयी स्त्री खुद अपना वर चुनती थी पर कुछ शर्तो के साथ पूरे समाज की उपस्तिथि में ! रोमांस की कुछ घटनाएं कृष्ण के पौराणिक काल में सुनने म