सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उद्यमिता का पुनर्पाठ: सहकारिता और कॉरपोरेट मॉडल के बीच समय की कसौटी


(एक विश्लेषणात्मक आलेख)

भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश में उद्यमिता की अवधारणा आर्थिक प्रगति का प्राणतत्व मानी जाती है, परंतु आज जब हम उद्यमिता की बात करते हैं, तो वह दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े मॉडल्स के बीच सिमटकर रह जाती है: व्यक्तिगत (#कॉरपोरेट) उद्यमिता और सामूहिक (#सहकारी) उद्यमिता। 
ये दोनों ही मॉडल अपने-अपने तरीके से #रोजगार सृजन, संसाधन आवंटन और सामाजिक उन्नयन में भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनके प्रभाव, लक्ष्य और सामाजिक स्वीकार्यता में जमीन-आसमान का अंतर है। 
आइए, इन दोनों के बीच के विरोध, लाभ और भविष्य की संभावनाओं को समझें।कॉरपोरेट #उद्यमिता:
पूंजी का #पिरामिड और सीमाएं- 
औद्योगिक क्रांति के बाद से कॉरपोरेट उद्यमिता ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाई है। 
यह मॉडल पूंजी, प्रौद्योगिकी और पैमाने की अर्थव्यवस्था पर टिका है। 
भारत में भी 1993 के उदारीकरण के बाद कॉरपोरेट क्षेत्र ने अभूतपूर्व विकास किया। 
आज देश के सबसे धनी व्यक्तियों की सूची में कॉरपोरेट घरानों के मालिक शीर्ष पर हैं, और सरकारें भी इन्हें #GDP वृद्धि, #टैक्स राजस्व और "उद्यमिता" के प्रतीक के रूप में प्रोत्साहित करती हैं, परंतु यह चमकदार सिक्के का एक पहलू है। 
कॉरपोरेट मॉडल की मूलभूत संरचना ही संसाधनों के केन्द्रीकरण और "श्रम के मूल्य" को कम करने पर आधारित है। 
उदाहरण के लिए, हाल के (2023) इन्वेस्टर समिट्स के आंकड़े बताते हैं कि कॉरपोरेट क्षेत्र द्वारा एक रोजगार सृजित करने में लाखों रुपये का निवेश करना पड़ता है। 
यह न केवल पूंजी-प्रधान है, बल्कि यह रोजगार के अवसरों को भी सीमित करता है।
इस तालिका से स्पष्ट है कि कॉरपोरेट मॉडल में रोजगार सृजन की लागत अत्यधिक है। यही कारण है कि यह मॉडल #आर्थिक असमानता को बढ़ावा देता है: एक ओर #उद्यमी #अरबपति बनते हैं, तो दूसरी ओर #श्रमिक "कौशल" के नाम पर न्यूनतम मजदूरी पर जीवन यापन करते हैं।
#सहकारिता: समुदाय की शक्ति और सतत विकास
सहकारिता का मॉडल #भारत की सामाजिक-आर्थिक #डीएनए में गहराई तक बसा है। यह सिद्धांत "सबका साथ, सबका विकास" को चरितार्थ करता है, यह शाश्वत "#वर्णव्यवस्था" से आता है। 
सहकारी संस्थाएं—चाहे वह Amul जैसे डेयरी संघ हों या केरल के नारियल उत्पादक समूह सभी इस बात का प्रमाण हैं कि सामूहिक #स्वामित्व और निर्णय लेने की प्रक्रिया न केवल लागत कम करती है, बल्कि लाभ का #न्यायसंगत बंटवारा भी सुनिश्चित करती है।
आंकड़े चौंकाने वाले हैं: सहकारी मॉडल में एक रोजगार सृजित करने की लागत कॉरपोरेट मॉडल के मुकाबले मात्र 1-2% है! उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिलों ने गन्ना किसानों को सीधे बाजार से जोड़कर उनकी आय में वृद्धि की है। यह मॉडल संसाधनों के स्थानीयकरण, पर्यावरण अनुकूलन और सामुदायिक सशक्तिकरण पर केंद्रित है।
 
पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव: 
"दो मॉडल, दो दुनिया"
कॉरपोरेट उद्यमिता का पारिस्थितिक पदचिह्न (कार्बन फुट प्रिंट) भारी है। 
बड़े #उद्योग प्राकृतिक संसाधनों का #अंधाधुंध दोहन करते हैं और कार्बन उत्सर्जन में अग्रणी हैं, वहीं, सहकारी इकाइयाँ छोटे पैमाने पर काम करती हैं, स्थानीय संसाधनों का उपयोग करती हैं और #पारंपरिक ज्ञान को #संरक्षित करती हैं। 
केरल के मछुआरा समुदायों द्वारा चलाए जा रहे सहकारी मत्स्य उद्योग इसका जीवंत उदाहरण हैं, जो #समुद्री संतुलन बनाए रखते हुए #आजीविका प्रदान करते हैं।
#AI और #रोबोटिक्स: बेरोजगारी का नया संकट और सहकारिता की प्रासंगिकता
चौथी औद्योगिक क्रांति के इस दौर में AI और रोबोटिक्स ने उत्पादन प्रक्रियाओं को स्वचालित कर दिया है। 
विश्व आर्थिक मंच World Economic Forum के अनुसार, 2025 तक 85 मिलियन नौकरियाँ समाप्त हो जाएंगी। 
इस पृष्ठभूमि में, कॉरपोरेट मॉडल और भी अधिक "कर्मचारी-विरोधी" होता जा रहा है। वहीं, सहकारिता मानव-केंद्रित रोजगार के अवसर प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, हस्तशिल्प, जैविक खेती, या स्थानीय पर्यटन जैसे क्षेत्रों में सहकारी समूह तकनीक को सहायक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं, न कि मानवीय श्रम प्रतिस्थापन के रूप में।

सरकारी नीतियाँ और मानसिकता में बदलाव की जरूरत:- 
भारत सरकार ने सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए 2023 में "सहकारिता से समृद्धि" मिशन शुरू किया है, लेकिन अभी भी समग्र नीतिगत ढाँचा कॉरपोरेट-हितैषी बना हुआ है। 
टैक्स छूट, भूमि अधिग्रहण में सुविधाएँ, और FDI नीतियाँ कॉरपोरेट को प्राथमिकता देती हैं, ऐसा सहकारिता के साथ नहीं है। 
सहकारिता को मजबूत करने के लिए आवश्यक है:
1.वित्तीय सहायता: सहकारी समितियों को बिना जटिल प्रक्रिया के ऋण उपलब्ध कराना।
2. तकनीकी एकीकरण: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से सहकारी उत्पादों को बाजार से जोड़ना।
3. शिक्षा और प्रशिक्षण: युवाओं को सहकारिता के व्यावसायिक लाभ से अवगत कराना।
4. सभी विभागों की योजनाओं का सहकारिता के हित में समायोजन ।
निष्कर्ष:
सनातन मूल्यों से आधुनिक समाधान तक
भारत की सनातन परंपरा में "वसुधैव कुटुम्बकम" की भावना निहित है।
 सहकारिता इसी #भावना का आर्थिक स्वरूप है। जहाँ कॉरपोरेट मॉडल #असमानता और पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा देता है, वहीं सहकारिता स्थायी और सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।
 आवश्यकता इस बात की है कि हम "नौकरी लेने वालों" की बजाय "रोजगार सृजन करने वालों" की संस्कृति को बढ़ावा दें। जैसा कि गांधीजी ने कहा था, "भारत की आत्मा गाँवों में बसती है," और यही आत्मा सहकारिता के माध्यम से देश को नए युग में ले जा सकती है।विचारणीय प्रश्न: क्या हम उद्यमिता के मापदंडों को पूंजी और मुनाफे तक सीमित रखेंगे, या समुदाय और प्रकृति के साथ सहयोग को भी उसमें शामिल करेंगे?
यही आज का #यक्ष प्रश्न है।
#जयसहकार !
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज 



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

The Cooperative Catalyst: Reimagining Entrepreneurship for a Sustainable Future

The narrative of entrepreneurial success has long been dominated by the image of the solitary innovator, the corporate titan forging an empire from sheer will and ingenuity. This "individual entrepreneurship" model, while undeniably powerful, has also contributed to a landscape of economic disparity and environmental strain. However, a quiet revolution is underway, a resurgence of collective entrepreneurship, embodied by cooperative models, that offers a compelling alternative for the 21st century. We've become accustomed to celebrating the titans of industry, the visionaries who build vast corporations, generating wealth and, ostensibly, jobs. Governments and systems often glorify these figures, their achievements held up as the pinnacle of economic success. Yet, a closer examination reveals a complex reality. The industrialization that fueled the rise of corporate entrepreneurship has also created a system where a select few can amass immense wealth by harne...

भारतीयता और रोमांस (आसक्त प्रेम)

प्रेम विवाह 😂 कहां है प्रेम विवाह सनातन में? कृपया बताएं... जुलाई 14, 2019 रोमांस का अंग्रेजी तर्जुमा है - A feeling of excitement and mystery of love. This is some where near to lust. The indian Love one is with liabilities, sacrifices with feeling of care & love. The word excitement and mystery has not liabilities, sacrifices with feeling of care. प्रेम का अंग्रेज़ी तर्जुमा - An intense feeling of deep affection. मैंने एक फौरी अध्यन किया भारतीय पौराणिक इतिहास का ! बड़ा अजीब लगा - समझ में नहीं आया यह है क्या ? यह बिना रोमांस की परम्परायें जीवित कैसे थी आज तक ? और आज इनके कमजोर होने और रोमांस के प्रबल होने पर भी परिवार कैसे टूट रहे हैं ? भारतीय समाज में प्रेम का अभूतपूर्व स्थान है पर रोमांस का कोई स्थान नहीं रहा ? हरण और वरण की परंपरा रही पर परिवार छोड़ कर किसी से विवाह की परंपरा नहीं रही ! हरण की हुयी स्त्री उसके परिवार की हार का सूचक थी और वरण करती हुयी स्त्री खुद अपना वर चुनती थी पर कुछ शर्तो के साथ पूरे समाज की उपस्तिथि में ! रोमांस की कुछ घटनाएं कृष्ण के पौराणिक काल में सुनने म...