अर्थव्यवस्था या पृथ्वी? (Economy or Earth?) समाधान: सनातन का प्रकृति प्रेम Are we killing Earth to save GDP? The Sanatan Solution. आज अति गंभीर #विषय ले आए ##छुट्टन_गुरु : कहने लगे बताओ #स्वामी_जी विश्व की अर्थ व्यवस्था का पहिया कैसे चलेगा यदि #प्रदूषण खत्म करना है तो? लल्लन_महाराज : प्रदूषण खत्म क्यों करना इसे कम कर लेते हैं? इसे कोरोना काल में #तुरंत कम किया ही तो था। छुट्टन : जितना प्रदूषण कम होगा उतना पृथ्वी का तापमान कम बढ़ेगा। छुट्टन मतलब सब चाहते हैं कि #धरती का #बुखार थोड़ा धीरे धीरे बढ़े? हमें #सोलर बढ़ाने चाहिए की बिजली की खपत कम करनी चाहिए या दोनो एक साथ करना चाहिए? स्वामी_जी : दुनिया में #सत्ता का झगड़ा इसी कारण से तो है? दुबई में मंदिर क्यों बन रहा है? मुस्लिम दुनिया इजरायल का जवाब क्यों नहीं दे रही है? रूस क्यों परेशान है? चीन के उद्योग क्यों बंद करवाए जा रहे हैं? और सबसे बड़ी बात #स्पेस x को नासा के साथ नासा की प्रयोगशाला में काम करने का मौका क्यों मिला? दूसरे गृह में बस्ती बसाने की कोशिश क्यों? क्या हमे विश्वास है कि पृथ्वी मर रही है? पूरी विश्व राजनीति...
आधुनिक भारत में अपनी ही जड़ों से संघर्ष: क्या यह विडंबना नहीं है कि स्वतंत्र भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली आज भी उन नियमों से संचालित हो रही है जो अंग्रेजों ने औपनिवेशिक काल में बनाए थे? यह ऐतिहासिक बोझ दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति "आयुर्वेद" पर आज भी भारी पड़ रहा है, जो वैदिक है, जिसका "मूल" अथर्ववेद में है। यह सनातनी ज्ञान है।। 1964 से पहले की नीतियां, जो ब्रिटिश शासन की देन थीं, आज भी यह तय कर रही हैं कि हम आयुर्वेद को कैसे देखें और उपयोग करें। यह उस राष्ट्र में आयुर्वेद की क्षमता का गला घोंटने जैसा है, जो दुनिया को 'समग्र कल्याण' (Holistic Wellness) का मार्ग दिखाता है। महर्षि चरक और पतंजलि के जिस "जड़ी बूटी" के ज्ञान का लोहा दुनिया मानती है, उसे आज अपने ही देश में लेबल पर उस "जैविक औषधि" के 'चिकित्सीय लाभ' लिखने की अनुमति नहीं है। यहाँ तक कि "100% शाकाहारी" या "जैविक" (Organic) जैसे शब्द, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांत हैं, उन्हें भी नौकरशाही की लालफीताशाही में उलझा दिया जाता है। ...