क्या अन्ना धन अाधािरात राजनैतिक व्यवस्था को सुधार पायेंगे।। अगर हाँ तो अगले चुनाव मे कौन लाखों करोडों खर्च कर चुनाव लडना चाहेगा । अौर यदि कार्यकर्ता को लाभ न मिले तो वो जिंदाबाद मुर्दाबाद क्युं करेगा ।। इस जिन्न को जगा तो दिया है, इसे सम्हालना कढिन हो सकता है ।। लोकतंाितृक संविधान मे अामूलचूल सुधार करना होगा. अगर ये संभव हुवा, तो ये ठीक वैसा ही अाविष्कार होगा, जैसा शून्य का था या गांधी जी का सविनय अवज्ञा ।। ।। हम जानते है, विनय अौर अवज्ञा लगभग विरोधाभासी शब्द हैं ।। निदा फाजली की एक ग़ज़ल पेश है... हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो , अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतजाज* भी हो। हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं, हुकूमतें जो बदलता है, वो समाज भी हो। रहेगी कब तलक वादों में कैद खुशहाली, हर एक बार ही कल क्यों, कभी तो आज भी हो। न करते शोर-शराबा तो और क्या करते , तुम्हारे शहर में, कुछ और कामकाज भी हो। हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो, अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतजाज भी हो। एहतजाज*= रोष, प्रतिषोध, विद्रोह (Agitation)