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समष्टि और विश्व

  #सुधार की #प्रक्रिया का #मुख्य सूत्र #क्रमिक सुधार  है। और इसका #सार्वभौमिक #लक्ष्य #संपूर्ण #शोधन ही होता है... यह #मानव के #स्वास्थ्य का सुधार हो या #प्रकृति या #व्यवस्था का सुधार।। परंतु #जीवित वस्तुओ में #संपूर्ण सुधार #असंभव है, कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है, परंतु #व्यवस्थागत सुधार संभव है। हर सुधार #समष्टि के हित (सभी के लाभ) में हों यही आवश्यक है; #व्यष्टि (व्यक्तिगत) का चिंतन आत्म उत्थान और अनुशासन हेतु होना चाहिए।। #वामपंथ और #अंग्रेजियत ने करोड़ों की जिंदगी नर्क कर रखी है। उन्होंने जिस व्यवस्था का निर्माण किया है वह व्यवस्था #व्यष्टी के हित को #प्राथमिकता देती है और समष्टि के हित को #नजरंदाज करती है।। यह मानती है कि  #व्यक्तिक #धन और #सुख प्राप्ति हेतु पूर्ण विश्व और समाज को कष्ट दिया जा सकता है, सैकड़ों जगह यह #कानूनी भी है। भोजन और खाद्य श्रृंखला से लेकर वस्त्र, स्वास्थ्य और रहवास तक की व्यवस्था में किसी एक व्यक्ति, संस्था या देश के #अधिलाभ का ही चिंतन है, यह चिंतन स्थापित और व्यवस्थित रहे इसीलिए ही तो हम #युद्धरत, #संघर्षरत और #तनावग्रस्त हैं।। कहीं भी जाइए - हर जगह हम