अगर इस चिंतन को समझना है तो पोस्ट पूरी पढ़ें और नीचे दिया वीडियो देखें।। यह हर #सनातनी का दर्द है, हम कहीं पार्टी से बंधे होते हैं कहीं संगठन से - हम अपनी #विचारधारा और आइडियाज को वर्षो उन लोगों के संरक्षण में पालते पोसते हैं जो हमारे आदरणीय हैं और यकायक हम एक दिन पाते हैं कि हमारे आदरणीय संरक्षक और #आदर्श एकदम हमारी पाली पोसी विचारधारा से उलट विचार व्यक्त कर रहे हैं या कार्य कर रहे हैं। तो हमे #खीज होती है, खीज #मतबल बेचैनी, असहाय होने का भाव, ऐसा गुस्सा जो फट पड़ना चाहता है पर वह निकल नहीं पा रहा।। यह बहुत अजीब मानवीय भाव है, इस भाव के परिणाम की भविष्यवाणी करना अत्यंत कठिन है, पर यह तय है कि इस भाव के पैदा होने से काफी नुकसान होता है, कुछ लोग #विद्रोही हो जाते हैं और कुछ #निष्क्रिय।। और यहीं वह पेंच है जहां #अटलजी भी फंसे थे और आज मोदी भी फंसे हैं।। विदेशी दबाव, #विधर्मी दबाव ने पाकिस्तान की यात्रा करवाई, रामालय ट्रस्ट पर काम करने मजबूर किया। यह स्वर्गीय अटल जी पर आरोप नहीं है, मैं समझता हूं और जानता हूं उनके मन में भी यह सब करते समय वही मजबूरी भरी खीज थी जो मैने ऊपर बताई ...