1 छोटा सा सन्देश,
भय - रहित जीवन की आशा
अमन का पैगाम और इज्ज़त से जीने की लालसा
शांति का यही सन्देश लेकर हमारा एक छोटा सा प्रयास है -
युवा शांति मार्च
23 मई 2010. रविवार.
शाम 6 बजे. आज़ाद चौक से शहीद स्मारक, रायपुर.
शहीदों की शहादत को नमन करने में आइये
हम साथ साथ चलें - अमित जोगी
२१ से २३ के बीच मैं अपने व्यापारिक काम से भोपाल और जबलपुर प्रवास पर था ।
२२ मई को यह सन्देश मुझे एस एम एस से प्राप्त हुआ ।
इस सन्देश को पढ़ कर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे,
ये प्रदर्शन एक आम सुविधा पसंद धनाड्य वर्ग द्वारा किये जाने वाले
सांकेतिक प्रदर्शन जैसा ही है ।
ये लोग शाम को शहीदों को श्रद्धांजलि देंगें,
और अगली सुबह से फिर अपने दैनिक कार्यों मे लग जायेंगें ।
आराम खाने की बैठकों में सरकार को कोसना और समय आने पर मोमबत्तियां जलाकर महात्मा गाँधी को याद करना,
यही २१वी सदी का सच है,
हमें इसी के साथ जीना है ।
इसे नकारा नहीं जा सकता ।
पर २४ जून के पेपर मे कुछ था जिसपर मेरी नज़र ठिठक गयी ,
खबर थी
अमित करेंगें नक्सली क्षत्रों का दौरा :
ऐसा लगा जैसे कोई पढ़ा लिखा गंभीर व्यक्ति इस समस्या के प्रति गंभीर है और चाहता है की इस समस्या का समाधान निकले ।
इस विषय पर मैंने लोगों से चर्चा की, तरह तरह की बातें सुनी,
कुछ सही बातें थी कुछ गलत ।
कुछ लोगों ने इसे प्रचार का जरिया बताया,
कुछ ने इसे सरकार की गिरती इच्छा शक्ति से जोड़ा,
और अंत मैं ये मान लिया की सारा खेल पैसे का है,
अगर समस्या ख़त्म हो जाएगी तो केंद्र सरकार से आने वाला फंड बंद हो जायेगा और अगर फंड बंद हुआ तो ये नेतानुमा व्यापारी कैसे मोटे होंगें ।
एक ठेकेदार मित्र का कहना था की नेताओं को मुद्दों, नोट और वोट का सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है, जब तक ये सामंजस्य बनाये रखेंगे
नोट और वोट इनकी झोली मे गिरते रहेंगें ।
तर्क कई थे और विषय एक,
सभी अपने अपने तर्कों के पोषण मे लगे थे, किसी को समस्या से कोई ख़ास लेना देना नहीं था ।
कुछ दिनों बाद अमित के ब्लॉग पर एक पोस्ट आयी की वे ४० युवा अविवाहित साथिओं को लेकर दंतेवाडा से सुकमा पदयात्रा करेंगें.
मेरे मन ने कहा चलो बस्तर चलें....
मैंने तुरंत अमित को मेल की कि मैं अविवाहित नहीं तो क्या बलात अविवाहित तो हूँ (मैं रायपुर मे मित्रों के साथ जीवन यापन कर रहा हूँ)।
अमित का कोई जवाब नहीं आया. दूसरे दिन मैंने अमित को फ़ोन किया, और कहा मैं भी चलूँगा।
तब जा कर अमित ने अनुमति दी ।
मैं खुश था कि मेरा जाना तय हो गया है ।
मित्रों से बात हुई, सभी भौचक थे,
अतुल सिंह ने पूरी स्पष्टवादिता से कहा,
पागल हुए हो क्या. घर में माता पिता हैं उनकी सोचो ।
रस्ते मे चिन्गावरम है, १ माह पहले वहां नक्सालियों ने बस उड़ाई थी,
३१ लोग मरे.
अमित को क्या सूझ रही है वहां जाने की वो तो एकलौता है अपने माँ बाप का,
समझाओ उसे, शैलेश जी को बोलो,
"जान है तो जहान है"
एक जबलपुरिया मित्र जो पत्रकार भी हैं ने मुझे भयभीत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ।
उन्होंने ३ बिंदु दिए....
१- नक्सली हमला हो सकता है ।
२- सरकार से पोषित लोग अमित को निशाना बना सकते हैं ।
३- जोगी परिवार के विरोधी बहुत हैं अगर किसी ने अमित को निशाना बनाया तो सारा मामला नक्सलियों पर
डाल कर सरकार अपना पल्ला झाड़ लेगी. (Amit is a soft target for every one).
दिनांक १६:०६:२०१० समय ४:०० बजे शाम
मैं अमित के पास गया वहां लकमा दादी (MLA Kawasi Lakma), बैठे थे ।
चर्चा का विषय बस्तर सत्याग्रह ही था अमित कह रहे थे किसी को तो ये कदम उठाना ही है तो मैं ये कदम क्यों नहीं उठा सकता ।
बहुत अनाचार हो गया, लगता है हमारी सोच और कार्य शैली गलत है,
मैं पूर्वाग्रह छोड़ कर बस्तरियों की समस्याओं का हल उन्ही से जानना चाहता हूँ ।
सत्याग्रहियों की लिस्ट बन चुकी थी सरकार को सूचना दे दी गयी थी. कार्यक्रम पक्का था.
विचार आते रहे लोग मना करते रहे ।
मैंने अपने माता पिता को इस दौरे के बारे मे नहीं बताया था. पर मेरे चाहने वालो ने मेरी माता जी को दूरभाष पर सूचना दे दी (डरा दिया),
माँ का फ़ोन आया उन्होंने पूछा कहाँ जा रहे हो बेटा ।
मैं भौचक ,
इन्हें कैसे पता चला ।
मैंने उन्हें बताया कि ४० लोग हैं अमित भी साथ जा रहें हैं ।
तब वे कुछ संतुष्ट हुयी. रात को १२ बजे पिता जी का फ़ोन आया ।
उन्होंने कहा बेटा सुकमा जा रहे हो तो भगवन गणेश कि काष्ठ प्रतिमा ले आना (जो मैं अपरिहार्य कारणों से ला नहीं पाया) ।
मैंने पूछा आपने सिर्फ यही कहने को रात्रि १२ बजे फ़ोन किया ।
तो उन्होंने कहा.
PROCEED & TAKE CARE OF YOURSELF & YOUR FRIENDS.
(आगे बढ़ो, अपना और अपने मित्रों का ख्याल रखना.)
मेरे मन मे अभी भी दुविधा थी ।
१- क्या नक्सली हमें यात्रा करने देंगें ।
२- क्या सरकार हमें यात्रा प्रारंभ करने देगी ।
१७:०६:१०
शुभ संकेत :
आज से शुभ संकेत मिलना शुरू हो गए ।
लिस्ट बढती ही जा रही थी ४० सत्याग्रहियों की जगह १०६ सत्याग्रही, सत्याग्रह मे जाना चाहते थे ।
स्वप्रेरणा से लोगो के आग्रह आ रहे थे लोग जिद कर रहे थे ।
अमित का सोचना था की ये सत्याग्रह है, इसमें ४० स्वप्रेरित लोग काफी हैं,
हमें कोई राजनैतिक कार्यक्रम नहीं करना, कोई रैली नहीं निकालनी.
पर किसी को मना भी नहीं किया जा सकता था सब अपने थे, आत्मीय थे ।
शाम तक सब तैयारियां हो गयीं ।
सभी उत्साह मे थे, दूरस्थ क्षेत्रो से लोग आने शुरू हो गए थे ।
१८:०६:१०
दोपहर में जब मैं अनुग्रह पहुंचा तो सभी लोग एकत्र थे, हम सभी ने गांधी जी के रेखाचित्र वाली टी शर्ट पहनी थी ।
पत्रकार वार्ता होने वाली थी ।
मुझे कैमरे के लिए एक इलेक्ट्रिकल कार्ड खरीदनी थी ।
मेरे मित्र आशुतोष ने मुझे जवाहर (NAGAR) चौक जाने की सलाह दी ।
मैंने श्री बँटी जी की दुकान से कार्ड खरीदी, मेरी टी शर्ट देख कर बंटी जी ने मुझसे बस्तर सत्याग्रह के बारे में जानकारी चाही ।
५ मिनट मुझे सुनने के बाद उन्होंने मुझे केबल की कीमत के ५०% रुपये यह कह कर वापस कर दिए की, आप सभी पुण्य काम के लिए जा रहे हो,
इसलिए मैं आपसे लाभ नहीं लूँगा ।
मुझे लगा जैसे मैं फिर से अमरनाथ बाबा के दर्शन को जा रहा हूँ ।
और लोग अनन्य भाव से सहयोग कर रहे हैं….
अंततः शाम ४ बजे हम सब बस में सवार हुए और रघुपति राघव राजा राम गाते हुए गंतव्य के लिए निकल पड़े ।
क्रमशः
भय - रहित जीवन की आशा
अमन का पैगाम और इज्ज़त से जीने की लालसा
शांति का यही सन्देश लेकर हमारा एक छोटा सा प्रयास है -
युवा शांति मार्च
23 मई 2010. रविवार.
शाम 6 बजे. आज़ाद चौक से शहीद स्मारक, रायपुर.
शहीदों की शहादत को नमन करने में आइये
हम साथ साथ चलें - अमित जोगी
२१ से २३ के बीच मैं अपने व्यापारिक काम से भोपाल और जबलपुर प्रवास पर था ।
२२ मई को यह सन्देश मुझे एस एम एस से प्राप्त हुआ ।
इस सन्देश को पढ़ कर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे,
ये प्रदर्शन एक आम सुविधा पसंद धनाड्य वर्ग द्वारा किये जाने वाले
सांकेतिक प्रदर्शन जैसा ही है ।
ये लोग शाम को शहीदों को श्रद्धांजलि देंगें,
और अगली सुबह से फिर अपने दैनिक कार्यों मे लग जायेंगें ।
आराम खाने की बैठकों में सरकार को कोसना और समय आने पर मोमबत्तियां जलाकर महात्मा गाँधी को याद करना,
यही २१वी सदी का सच है,
हमें इसी के साथ जीना है ।
इसे नकारा नहीं जा सकता ।
पर २४ जून के पेपर मे कुछ था जिसपर मेरी नज़र ठिठक गयी ,
खबर थी
अमित करेंगें नक्सली क्षत्रों का दौरा :
ऐसा लगा जैसे कोई पढ़ा लिखा गंभीर व्यक्ति इस समस्या के प्रति गंभीर है और चाहता है की इस समस्या का समाधान निकले ।
इस विषय पर मैंने लोगों से चर्चा की, तरह तरह की बातें सुनी,
कुछ सही बातें थी कुछ गलत ।
कुछ लोगों ने इसे प्रचार का जरिया बताया,
कुछ ने इसे सरकार की गिरती इच्छा शक्ति से जोड़ा,
और अंत मैं ये मान लिया की सारा खेल पैसे का है,
अगर समस्या ख़त्म हो जाएगी तो केंद्र सरकार से आने वाला फंड बंद हो जायेगा और अगर फंड बंद हुआ तो ये नेतानुमा व्यापारी कैसे मोटे होंगें ।
एक ठेकेदार मित्र का कहना था की नेताओं को मुद्दों, नोट और वोट का सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है, जब तक ये सामंजस्य बनाये रखेंगे
नोट और वोट इनकी झोली मे गिरते रहेंगें ।
तर्क कई थे और विषय एक,
सभी अपने अपने तर्कों के पोषण मे लगे थे, किसी को समस्या से कोई ख़ास लेना देना नहीं था ।
कुछ दिनों बाद अमित के ब्लॉग पर एक पोस्ट आयी की वे ४० युवा अविवाहित साथिओं को लेकर दंतेवाडा से सुकमा पदयात्रा करेंगें.
मेरे मन ने कहा चलो बस्तर चलें....
मैंने तुरंत अमित को मेल की कि मैं अविवाहित नहीं तो क्या बलात अविवाहित तो हूँ (मैं रायपुर मे मित्रों के साथ जीवन यापन कर रहा हूँ)।
अमित का कोई जवाब नहीं आया. दूसरे दिन मैंने अमित को फ़ोन किया, और कहा मैं भी चलूँगा।
तब जा कर अमित ने अनुमति दी ।
मैं खुश था कि मेरा जाना तय हो गया है ।
मित्रों से बात हुई, सभी भौचक थे,
अतुल सिंह ने पूरी स्पष्टवादिता से कहा,
पागल हुए हो क्या. घर में माता पिता हैं उनकी सोचो ।
रस्ते मे चिन्गावरम है, १ माह पहले वहां नक्सालियों ने बस उड़ाई थी,
३१ लोग मरे.
अमित को क्या सूझ रही है वहां जाने की वो तो एकलौता है अपने माँ बाप का,
समझाओ उसे, शैलेश जी को बोलो,
"जान है तो जहान है"
एक जबलपुरिया मित्र जो पत्रकार भी हैं ने मुझे भयभीत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ।
उन्होंने ३ बिंदु दिए....
१- नक्सली हमला हो सकता है ।
२- सरकार से पोषित लोग अमित को निशाना बना सकते हैं ।
३- जोगी परिवार के विरोधी बहुत हैं अगर किसी ने अमित को निशाना बनाया तो सारा मामला नक्सलियों पर
डाल कर सरकार अपना पल्ला झाड़ लेगी. (Amit is a soft target for every one).
दिनांक १६:०६:२०१० समय ४:०० बजे शाम
मैं अमित के पास गया वहां लकमा दादी (MLA Kawasi Lakma), बैठे थे ।
चर्चा का विषय बस्तर सत्याग्रह ही था अमित कह रहे थे किसी को तो ये कदम उठाना ही है तो मैं ये कदम क्यों नहीं उठा सकता ।
बहुत अनाचार हो गया, लगता है हमारी सोच और कार्य शैली गलत है,
मैं पूर्वाग्रह छोड़ कर बस्तरियों की समस्याओं का हल उन्ही से जानना चाहता हूँ ।
सत्याग्रहियों की लिस्ट बन चुकी थी सरकार को सूचना दे दी गयी थी. कार्यक्रम पक्का था.
विचार आते रहे लोग मना करते रहे ।
मैंने अपने माता पिता को इस दौरे के बारे मे नहीं बताया था. पर मेरे चाहने वालो ने मेरी माता जी को दूरभाष पर सूचना दे दी (डरा दिया),
माँ का फ़ोन आया उन्होंने पूछा कहाँ जा रहे हो बेटा ।
मैं भौचक ,
इन्हें कैसे पता चला ।
मैंने उन्हें बताया कि ४० लोग हैं अमित भी साथ जा रहें हैं ।
तब वे कुछ संतुष्ट हुयी. रात को १२ बजे पिता जी का फ़ोन आया ।
उन्होंने कहा बेटा सुकमा जा रहे हो तो भगवन गणेश कि काष्ठ प्रतिमा ले आना (जो मैं अपरिहार्य कारणों से ला नहीं पाया) ।
मैंने पूछा आपने सिर्फ यही कहने को रात्रि १२ बजे फ़ोन किया ।
तो उन्होंने कहा.
PROCEED & TAKE CARE OF YOURSELF & YOUR FRIENDS.
(आगे बढ़ो, अपना और अपने मित्रों का ख्याल रखना.)
मेरे मन मे अभी भी दुविधा थी ।
१- क्या नक्सली हमें यात्रा करने देंगें ।
२- क्या सरकार हमें यात्रा प्रारंभ करने देगी ।
१७:०६:१०
शुभ संकेत :
आज से शुभ संकेत मिलना शुरू हो गए ।
लिस्ट बढती ही जा रही थी ४० सत्याग्रहियों की जगह १०६ सत्याग्रही, सत्याग्रह मे जाना चाहते थे ।
स्वप्रेरणा से लोगो के आग्रह आ रहे थे लोग जिद कर रहे थे ।
अमित का सोचना था की ये सत्याग्रह है, इसमें ४० स्वप्रेरित लोग काफी हैं,
हमें कोई राजनैतिक कार्यक्रम नहीं करना, कोई रैली नहीं निकालनी.
पर किसी को मना भी नहीं किया जा सकता था सब अपने थे, आत्मीय थे ।
शाम तक सब तैयारियां हो गयीं ।
सभी उत्साह मे थे, दूरस्थ क्षेत्रो से लोग आने शुरू हो गए थे ।
१८:०६:१०
दोपहर में जब मैं अनुग्रह पहुंचा तो सभी लोग एकत्र थे, हम सभी ने गांधी जी के रेखाचित्र वाली टी शर्ट पहनी थी ।
पत्रकार वार्ता होने वाली थी ।
मुझे कैमरे के लिए एक इलेक्ट्रिकल कार्ड खरीदनी थी ।
मेरे मित्र आशुतोष ने मुझे जवाहर (NAGAR) चौक जाने की सलाह दी ।
मैंने श्री बँटी जी की दुकान से कार्ड खरीदी, मेरी टी शर्ट देख कर बंटी जी ने मुझसे बस्तर सत्याग्रह के बारे में जानकारी चाही ।
५ मिनट मुझे सुनने के बाद उन्होंने मुझे केबल की कीमत के ५०% रुपये यह कह कर वापस कर दिए की, आप सभी पुण्य काम के लिए जा रहे हो,
इसलिए मैं आपसे लाभ नहीं लूँगा ।
मुझे लगा जैसे मैं फिर से अमरनाथ बाबा के दर्शन को जा रहा हूँ ।
और लोग अनन्य भाव से सहयोग कर रहे हैं….
अंततः शाम ४ बजे हम सब बस में सवार हुए और रघुपति राघव राजा राम गाते हुए गंतव्य के लिए निकल पड़े ।
क्रमशः
टिप्पणियाँ
somewhere I feel that you are portraying Amit as Mahatma Gandhi... and BJP govt as rival of peace.
Satyagrah in 21th century is a symbolic representation only.... Terrorism can not be controlled by this Walkign journey.
If you remeber Somalia and Jafna(Srilanka), terrorists can go till any extent. WIll this Satygrah leave any impact? This is a big question mark?
As of now All the best to youth Generation and hats off to you people.
रोचक संस्मरण की शुरूआत की है आपने सचिन भाई, अगली कडि़यों का इंतजार है।
एक बात तो माननी पड़ेगी, सत्याग्रह की रिपोर्टिंग जो व्यवस्था के तहत की गई। बहुत सही। ध्यान दिया होगा आप लोगों ने कि ठीक उसी समय जब रिपोर्ट्स में यह कहा जा रहा था कि पेयजल की समस्या बहुत ज्यादा है इलाके में तब उसी समय इलाके के एक हिस्से में उल्टी दस्त और डायरिया की समस्या सरकारी माध्यमों के माध्यम से खुद सामने आई थी। रिपोर्ट की तस्वीरें गवाह है इस यात्रा की तो।
अमित जी से कहिए, पर्दे के पीछे से युवा राजनीति करने की बजाय ऐसे ही सार्थक कार्य ज्यादा प्रभावित करेंगे लोगों को और आत्मसंतुष्टि भी ज्यादा मिलेगी। बाकी जैसा बड़े लोग पसंद करें।
ब्लॉग का नाम आलोचक की बजाय समालोचक करिए, बेहतर रहेगा। आलोचक का धर्म सिर्फ़ आलोचना ही होता है जबकि समालोचक का धर्म सम-आलोचना अर्थात कभी कभी तारीफ भी होता है।
आशा है इस ओर ध्यान देंगे।
शुक्रिया। जल्द ही स्वास्थ्य लाभ करें।
शुभकामनाएं।
By Anil K Anal
आपका स्वागत है बस्तर सत्याग्रह मे. अमित कहतें हैं,
"बस्तर सत्याग्रह" एक गैर राजनैतिक कार्यक्रम है.
और पूर्वाग्रह छोड़ कर जो भी इसमें शामिल होना चाहता है उसका स्वागत है.....
बशर्ते उसके मन मे किसी के लिए पूर्वाग्रह न हो...
Tapes तो मैंने भी अभी तक नहीं देखी हैं, बस कुछ Clips जरूर, FTP के रूप मे ले ली थी.
वो अपलोड कर दी गयी हैं,
उन्हें आप http://www.youtube.com/user/AwasthiS इस लिंक पर देख सकते हैं.....
जैसा पहले भी अमित ने कहा है ये गैर राजनैतिक कार्यक्रम है.
हम बिना किसी पूर्वाग्रह के सत्य जानने के लिए बस्तर गए ...
मुझे नहीं लगता की इस समस्या को आप आतंकवाद से जोड़ सकते हैं....
यह समस्या कुछ अलग प्रतीत होती है...
ये जातिगत और धर्म आधारित नहीं है (एल. टी.टी.ई. और तालिबान जैसी)...
यह समस्या कुछ अनूठी सी है....
शायद प्रशाशन के खिलाफ या कानून के खिलाफ...
या हो सकता है आदिवारी जगल और जमीन पर कुछ अधिकार चाहते हों...
मेरा आग्रह है की सत्याग्रह पूरा होने दें...
निष्कर्ष सामने आ जायेंगे....
जैसा पहले भी अमित ने कहा है ये गैर राजनैतिक कार्यक्रम है.
हम बिना किसी पूर्वाग्रह के सत्य जानने के लिए बस्तर गए ...
मुझे नहीं लगता की इस समस्या को आप आतंकवाद से जोड़ सकते हैं....
यह समस्या कुछ अलग प्रतीत होती है...
ये जातिगत और धर्म आधारित नहीं है (एल. टी.टी.ई. और तालिबान जैसी)...
यह समस्या कुछ अनूठी सी है....
शायद प्रशाशन के खिलाफ या कानून के खिलाफ...
या हो सकता है आदिवारी जगल और जमीन पर कुछ अधिकार चाहते हों...
मेरा आग्रह है की सत्याग्रह पूरा होने दें...
निष्कर्ष सामने आ जायेंगे....
आशा करता हूँ की आपकी शुभकामनाये मुझ पर बनी रहेगी....
रिपोर्टिंग की व्यवस्था के बारे मे, मै निर्विवाद रूप से कहना चाहूँगा की,
जो EMAIL ID मेरे पास थे उनमे से बहुत सारे उपयुक्त नहीं थे (Bounce हो रहे थे),
कुछ रीडिफ़, याहू और अन्य वेबसाइट बड़ी फाइल को support नहीं कर रहीं थी.
जिसके कारण मै उन्हें विडियो नहीं भेज पाया.
ये पहला प्रयास था, आगे से अमित इसे सुधर लेंगें ऐसा विश्वास है....
Thanks Anil Ji,