होली और भांग : भंग की तरंग में मैने स्वप्न देखा - जो नीचे वर्णित है - ध्यान से पढ़ें इस व्यंग को ।।
4 गिलास ठंडाई, 2 चम्मच माज़ूम और 1 पाँव भांग के पकौड़े के बाद जब सच्चिदानंदन जी महाराज सोये तो उन्हें एक भयानक प्रजातान्त्रिक स्वप्न दिखा।
दृश्य 1 -
घमासान चल रहा है कहीं जाट लड़ रहे हैं, कहीं पटेल युद्ध कर रहे हैं, कहीं देश द्रोही नारे लग रहे हैं तो कहीं, नेता जानवरो को पीट रहे हैं तो कहीं नेता पुत्र बलात्कार कर रहे हैं, कहीं हत्या और कुटिलता के प्रपंच रचे जा रहे हैं, कहीं नकली साधू जटा धारी चिलम चढ़ाये बैठे हैं।
दृश्य 2 -
1 ब्राह्मण सफ़ेद धोती पहने चुटिया रखे खुले तन से बहते जल में सूर्य को अर्घ दे धीरे धीरे बाहर निकल रहा है ।
मैं - उस ब्राह्मण को रोक कर बैठ जाते है और पूछते हैं - महाराज ये समाज में हो क्या रहा है?
आप सूर्य उपासना कर रहे हो और देश जल रहा है, आग लगी है देश में ।
ब्राह्मण मुस्कुराये - कह उठे राज मिस्त्री को, टीवी मेकेनिक का काम दोगे तो ऐसा होगा ही।
वो रांगे की जगह सीमेंट और मल्टी मीटर की जगह साहुल तो लगाएगा ही।
अगर मिस्त्री कुछ करता हुआ न दिखेगा तो उससे दिहाड़ी कौन देगा - काम गलत हो या सही पैसे तो काम करने के ही मिलते हैं।
वही हो रहा है -
सभी को पैसे चाहिए ताकत चाहिए- चाहे अराजकता से ही क्यों न मिले पर पैसे तो सबको चाहिए ।।
पुराने समय में जो नियम बनाता और राज चलाता था, वो धोती पहनता था सूत की, कन्द मूल खाता था, जमीन पर सोता था, आभूषण के नाम पर एक चुटिया होती थी सर पर ।
अन्न भिक्षा से आता था, तो जब विलासिता की अनुमति ही नहीं थी, तो व्यक्ति व्यभिचार से भ्रष्टाचार से या अनाचार से क्या पायेगा ?
जब पाने को कुछ है ही नहीं तो डकैती के लिए शस्त्र क्यों जमा करेगा - मतलब गुंडे, आतंकी और नक्सली क्यों पालेगा?
पाने के लिए उसके पास सिर्फ 1 चीज़ बची थी, प्रतिष्ठा तो उसे पाने के लिए वो नए आदर्श गढ़ता था, अपनी सहनशक्ति और ज्ञान की सीमा बढ़ाता था।
तुम लोगो ने ये आदर्श, त्याग को मजाक बना लिया है तो तुम्हे इस विध्वंस के अलावा मिलेगा क्या ?
दृश्य 3 -
कन्हैया भाषण दे रहा है, संविधान हमें बोलने की आज़ादी देता है, बाबा साहब ने हमें बोलने की आज़ादी दी, संविधान दिया ।
दृश्य 4 -
मैं - ब्रम्हदेव, देश संविधान के आधार पर चल रहा है, बाबा साहब ने इसे बनाया था - इसमें तो ऐसा कोई नियम नहीं जैसा आप बता रहे है नेताओ को मोटी तनख्वाह मिलती है - जज को सब कुछ मिलता है।
ये भिक्षा क्यों मांगेंगे ?
और पुराने समय में भी तो अपनों को फायदा दिया जाता था, एकलव्य को शिक्षा इसी लिए तो नहीं दी गयी?
ब्रह्मदेव - संविधान में बदलाव होते हैं, पुराना हटा दिया जाता है नया संस्करण छपता है।
मनु स्मृति से लेकर गीता तक अपमानित होती है, जिसे हज़ारो साल तक नहीं बदला गया ।
ऐसा क्यों ?
स्वार्थवश ही न, कहीं वोट का कहीं नोट का स्वार्थ ?
एकलव्य को नहीं पढ़ाने का कारण, पात्र और कुपात्र है ।
जैसे सेना या पुलिस में भर्ती के समय मनोविज्ञानिक परीक्षा होती है वैसा ही शस्त्र विद्या के लिए भी थी ।
पुलिस में अति गुस्सैल या अति भोले को नौकरी देने से जो नुक्सान होते हैं वही कुपात्र को उस समय शस्त्र विद्या देने में थे, यह एक शिक्षक का व्यक्तिगत निर्णय था।
मैं : ये तो जातिगत निर्णय था गुरु जी ?
गुरु जी : बेटा यह परिस्तिथियों को देखने की समझ है,
जातियो का अस्तित्व कभी मिट नहीं सकता - इसे मिटाना असंभव है - आज भी भारत वर्ष में चार जातियां हैं, और उनके छुआ छूत को संविधान भी नहीं रोक सकता ।
1 - बी पी एल 2- ऐ पी एल 3- माध्यम वर्ग 4 - अमीर
इनमे भी कई अंतर जातियां हैं - मारुती वाली, हौंडा वाली, बी एम् डब्लू वाली और रोल्स रॉयस वाली ।
आज ऐ पी एल या बी पी एल वाला दून स्कूल में पढ़ सकता है क्या ?
स्वर्वोत्म शिक्षा के लिए ऐसे ही एकलव्य भी राज गुरु के पास गया था, वह तो छुप छुपा के सीख भी गया कुछ आज तो तुम छुप छुपा के भी नहीं सीख सकते ?
मैं : गुरु जी पर बिना धन के दुनिया चलती कहाँ है, सबको तो धन ही चाहिए ?
गुरूजी : धन होना ही चाहिए, बिना लक्षमी के जीवन हो ही नहीं सकता - पर सरस्वती के बिना क्या जीवन संभव है ।
तुम जानते हो सरस्वती और लक्षमी में बैर है ।
शिक्षा - न्याय - विधायिका को पूर्ण रूप से धन और ऐश्वर्य से विरक्त होना चाहिए पर ऐसा है नहीं -
जब तक ये नहीं होगा तब तक जंगल राज़ ही चलेगा ।
ॐ शिव शम्भो ।
चलता हूँ बेटा नमाज़ का वक्त हो गया ।।
#स्वामीसच्चिदानंदनजी_महाराज
4 गिलास ठंडाई, 2 चम्मच माज़ूम और 1 पाँव भांग के पकौड़े के बाद जब सच्चिदानंदन जी महाराज सोये तो उन्हें एक भयानक प्रजातान्त्रिक स्वप्न दिखा।
दृश्य 1 -
घमासान चल रहा है कहीं जाट लड़ रहे हैं, कहीं पटेल युद्ध कर रहे हैं, कहीं देश द्रोही नारे लग रहे हैं तो कहीं, नेता जानवरो को पीट रहे हैं तो कहीं नेता पुत्र बलात्कार कर रहे हैं, कहीं हत्या और कुटिलता के प्रपंच रचे जा रहे हैं, कहीं नकली साधू जटा धारी चिलम चढ़ाये बैठे हैं।
दृश्य 2 -
1 ब्राह्मण सफ़ेद धोती पहने चुटिया रखे खुले तन से बहते जल में सूर्य को अर्घ दे धीरे धीरे बाहर निकल रहा है ।
मैं - उस ब्राह्मण को रोक कर बैठ जाते है और पूछते हैं - महाराज ये समाज में हो क्या रहा है?
आप सूर्य उपासना कर रहे हो और देश जल रहा है, आग लगी है देश में ।
ब्राह्मण मुस्कुराये - कह उठे राज मिस्त्री को, टीवी मेकेनिक का काम दोगे तो ऐसा होगा ही।
वो रांगे की जगह सीमेंट और मल्टी मीटर की जगह साहुल तो लगाएगा ही।
अगर मिस्त्री कुछ करता हुआ न दिखेगा तो उससे दिहाड़ी कौन देगा - काम गलत हो या सही पैसे तो काम करने के ही मिलते हैं।
वही हो रहा है -
सभी को पैसे चाहिए ताकत चाहिए- चाहे अराजकता से ही क्यों न मिले पर पैसे तो सबको चाहिए ।।
पुराने समय में जो नियम बनाता और राज चलाता था, वो धोती पहनता था सूत की, कन्द मूल खाता था, जमीन पर सोता था, आभूषण के नाम पर एक चुटिया होती थी सर पर ।
अन्न भिक्षा से आता था, तो जब विलासिता की अनुमति ही नहीं थी, तो व्यक्ति व्यभिचार से भ्रष्टाचार से या अनाचार से क्या पायेगा ?
जब पाने को कुछ है ही नहीं तो डकैती के लिए शस्त्र क्यों जमा करेगा - मतलब गुंडे, आतंकी और नक्सली क्यों पालेगा?
पाने के लिए उसके पास सिर्फ 1 चीज़ बची थी, प्रतिष्ठा तो उसे पाने के लिए वो नए आदर्श गढ़ता था, अपनी सहनशक्ति और ज्ञान की सीमा बढ़ाता था।
तुम लोगो ने ये आदर्श, त्याग को मजाक बना लिया है तो तुम्हे इस विध्वंस के अलावा मिलेगा क्या ?
दृश्य 3 -
कन्हैया भाषण दे रहा है, संविधान हमें बोलने की आज़ादी देता है, बाबा साहब ने हमें बोलने की आज़ादी दी, संविधान दिया ।
दृश्य 4 -
मैं - ब्रम्हदेव, देश संविधान के आधार पर चल रहा है, बाबा साहब ने इसे बनाया था - इसमें तो ऐसा कोई नियम नहीं जैसा आप बता रहे है नेताओ को मोटी तनख्वाह मिलती है - जज को सब कुछ मिलता है।
ये भिक्षा क्यों मांगेंगे ?
और पुराने समय में भी तो अपनों को फायदा दिया जाता था, एकलव्य को शिक्षा इसी लिए तो नहीं दी गयी?
ब्रह्मदेव - संविधान में बदलाव होते हैं, पुराना हटा दिया जाता है नया संस्करण छपता है।
मनु स्मृति से लेकर गीता तक अपमानित होती है, जिसे हज़ारो साल तक नहीं बदला गया ।
ऐसा क्यों ?
स्वार्थवश ही न, कहीं वोट का कहीं नोट का स्वार्थ ?
एकलव्य को नहीं पढ़ाने का कारण, पात्र और कुपात्र है ।
जैसे सेना या पुलिस में भर्ती के समय मनोविज्ञानिक परीक्षा होती है वैसा ही शस्त्र विद्या के लिए भी थी ।
पुलिस में अति गुस्सैल या अति भोले को नौकरी देने से जो नुक्सान होते हैं वही कुपात्र को उस समय शस्त्र विद्या देने में थे, यह एक शिक्षक का व्यक्तिगत निर्णय था।
मैं : ये तो जातिगत निर्णय था गुरु जी ?
गुरु जी : बेटा यह परिस्तिथियों को देखने की समझ है,
जातियो का अस्तित्व कभी मिट नहीं सकता - इसे मिटाना असंभव है - आज भी भारत वर्ष में चार जातियां हैं, और उनके छुआ छूत को संविधान भी नहीं रोक सकता ।
1 - बी पी एल 2- ऐ पी एल 3- माध्यम वर्ग 4 - अमीर
इनमे भी कई अंतर जातियां हैं - मारुती वाली, हौंडा वाली, बी एम् डब्लू वाली और रोल्स रॉयस वाली ।
आज ऐ पी एल या बी पी एल वाला दून स्कूल में पढ़ सकता है क्या ?
स्वर्वोत्म शिक्षा के लिए ऐसे ही एकलव्य भी राज गुरु के पास गया था, वह तो छुप छुपा के सीख भी गया कुछ आज तो तुम छुप छुपा के भी नहीं सीख सकते ?
मैं : गुरु जी पर बिना धन के दुनिया चलती कहाँ है, सबको तो धन ही चाहिए ?
गुरूजी : धन होना ही चाहिए, बिना लक्षमी के जीवन हो ही नहीं सकता - पर सरस्वती के बिना क्या जीवन संभव है ।
तुम जानते हो सरस्वती और लक्षमी में बैर है ।
शिक्षा - न्याय - विधायिका को पूर्ण रूप से धन और ऐश्वर्य से विरक्त होना चाहिए पर ऐसा है नहीं -
जब तक ये नहीं होगा तब तक जंगल राज़ ही चलेगा ।
ॐ शिव शम्भो ।
चलता हूँ बेटा नमाज़ का वक्त हो गया ।।
#स्वामीसच्चिदानंदनजी_महाराज
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