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जनवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारतीय परंपराएं और सरकार

#Jallikattu #Peta #परंपराएं #GoI समझिये संविधान बनने के पहले के भारत को - और उस भारत की आज से तुलना करिये ! बिलकुल ऐसा ही आप औद्योगीकरण के पूर्व की दुनिया और औद्योगीकरण के बाद की दुनिया पर भी चिंतन कर सकते हैं ! अगर आप निज हित और निजी आराम को महत्त्व देते हैं तो आपको आज की दुनिया बेहतर लगेगी ; अगर आप समाज, पर्यावरण और अपनी आने वाली पुश्तों को तजरीह देते हैं तो आपको वह दुनिया अच्छी लगेगी जो आज से ७० साल पहले की थी ! हमने पिछले १०० सालो में पूरी तरह हर उस अवधारणा को तोड़ने की भरपूर कोशिश की है जिसे हम सच मानते रहे हैं और जिसे हम अपने बच्चो के पाठ्यक्रम में पढ़वाते हैं ! हम डार्विन के सिद्धांत को बदलने की कोशिश में हैं ; हम सूर्य से लेकर पानी तक को कब्जे में करना चाहते हैं ! हम डीएनए में घुस रहे हैं ; हम जीव जंतुओं की नयी प्रजाति बना रहे है - हम अपनी नैसर्गिक क्षमताएं छोड़ कृत्रिम क्षमताओं पर आश्रित हो रहे हैं ! सामजिक चिंतन छोड़ - फिर स्वार्थ चिंतन की तरफ अग्रसर हैं ! इस छद्म आधुनिक तकनीकी के कारण कहीं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है तो कहीं हमारा समाज टूट रहा है; कहीं नए रोग

भारतीयता और पश्चिम...

हिन्दोस्तान की जिसे समझ है, वह जानता है कि इस देश ने अंगुलिमाल को सन्त स्वीकारा है, रावण को हम हर वर्ष जलाते हैं पर उसे प्रकांड पण्डित भी मानते है और रावण रचित शिव तांडव स्त्रोत्र का पाठ भी करते हैं पर राम भक्त विभीषण जिसे लंका का राज्य मिला उसका नाम आज भी धोखे के प्रतीक के रूप में उपयोग करते हैं, कोई अपने बच्चे का नाम विभीषण नही रखता न रावण रखता है, पर रावण के पांडित्य का सम्मान जरूर करता है। सिद्धार्थ, अशोक जैसे नाम आपको खूब मिलेंगे, अशोक निरा हत्यारा था पर बाद में बदल गया। गांधी का पारिवारिक जीवन बहुत बुरा था बल्कि आप कह सकते है कि गांधी पत्नी उत्पीड़क और हृदयहीन पिता थे, पर लोग उन्हें आदर्श मानते हैं। भारतीय परंपराओं में छुप के अपराध करना (कुटिलता) स्वीकार नही है। वह कार्य तो बिल्कुल स्वीकार्य नही जो आपकी अंतरात्मा स्वीकार न करे। आचार्य श्रीराम शर्मा ने कहा है जो तुम्हे खुद पसंद न हो वह दूसरो के साथ न करो। यही तो भारतीयता है, यही तो है हमारा #डीएनए रिसर्चर्स कहते हैं कि हमारी मजबूत यादे हमारे डीएनए में पैबस्त हो जाती हैं, हमारे पूर्वजो के गुण हम में होते ही हैं, वे झलकते हैं

हाँ मैं ब्राम्हण हूँ

हाँ मैं ब्राम्हण हूँ, निश्चल हूँ, निष्काम हूँ, निष्पक्ष हूँ,निष्पाप हूँ । हाँ मैं #ब्राम्हण हूँ हाँ मैं #विप्र हूँ।। कमजोर इतना हूँ कि सबको माफ कर देता हूँ । लालची इतना हूँ कि चन्द्रगुप्त को राजा बना देता हूँ । डरपोक हूँ, इसलिए तो पृथ्वी को इक्कीस बार अत्याचारियों से मुक्त करता हूं । अनुपयोगी भी हूँ ,तभी तो हड्डियों से वजृ बनवाता हूँ । अनपढ हूँ, क्योंकि व्याकरण और गणित को खोज कर लाता हूँ । जातिवादी हूँ, माया,मुलायम,कांग्रेस,भाजपा....पता नहीं कितनो के साथ हूँ । आरक्षण का विरोध नहीं करता ,क्योंकि अपनों के ही नाराज होने का डर है। सरकार से कुछ नहीं मांगता,क्योंकि हिन्दूस्तान कमजोर होने का डर है ।। बंगलादेश,पाकिस्तान से गायब हूँ, काश्मीर से निष्कासित हूँ । फिर भी अखंड भारत का स्वपन देखता हूँ । कदम कदम पर ठगा जाता हूँ, फिर भी सर्वे भवंतु सुखिनः का मंत्र गुनगुनाता हूँ ।।क्योंकि .....मैं ब्राम्हण हूँ ।। इन उच्च जातियों में ऊँचा क्या है  ? संविधान जवाब दे !!! प्रश्न ये है कि ब्राह्मणों को किस आधार पर ऊँची जाति वाला बोल कर सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है, आज के दौर में ऐसा क्या ह