#Jallikattu #Peta #परंपराएं #GoI
समझिये संविधान बनने के पहले के भारत को - और उस भारत की आज से तुलना करिये !
बिलकुल ऐसा ही आप औद्योगीकरण के पूर्व की दुनिया और औद्योगीकरण के बाद की दुनिया पर भी चिंतन कर सकते हैं !
अगर आप निज हित और निजी आराम को महत्त्व देते हैं तो आपको आज की दुनिया बेहतर लगेगी ; अगर आप समाज, पर्यावरण और अपनी आने वाली पुश्तों को तजरीह देते हैं तो आपको वह दुनिया अच्छी लगेगी जो आज से ७० साल पहले की थी !
हमने पिछले १०० सालो में पूरी तरह हर उस अवधारणा को तोड़ने की भरपूर कोशिश की है जिसे हम सच मानते रहे हैं और जिसे हम अपने बच्चो के पाठ्यक्रम में पढ़वाते हैं !
हम डार्विन के सिद्धांत को बदलने की कोशिश में हैं ; हम सूर्य से लेकर पानी तक को कब्जे में करना चाहते हैं !
हम डीएनए में घुस रहे हैं ; हम जीव जंतुओं की नयी प्रजाति बना रहे है - हम अपनी नैसर्गिक क्षमताएं छोड़ कृत्रिम क्षमताओं पर आश्रित हो रहे हैं !
सामजिक चिंतन छोड़ - फिर स्वार्थ चिंतन की तरफ अग्रसर हैं !
इस छद्म आधुनिक तकनीकी के कारण कहीं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है तो कहीं हमारा समाज टूट रहा है; कहीं नए रोग पैदा हो रहे हैं कही बच्चो में अनुवांशिक रोग पैदा हो रहे हैं !
परिवार मान्यताएं, आदर्श इसी छद्म भौतिकता से छिन्न भिन्न हो रहे हैं और हम ही इसे स्वार्थ वश बर्बाद कर रहे हैं और फिर भी हम चाहते हैं की हमारा समाज आदर्श हो; हमारी वाली पीढियां तरक्की करें !
मानव स्वाभाव है कि वह हर उस उच्च कीर्तिमान को ध्वस्त करना चाहता है जो उसके पहले की पीढ़ी ने स्थापित किया है ! क्रिकेट को ही लें गावस्कर के टेस्ट क्रिकेट में लगाये दोहरे शतक को आज वन डे में सिर्फ आधे दिन में तोड़ दिया जाता है !
पिछले १०० बरसों में हमारे भाग्यविधाताओं ने कमीनेपन के जो स्वर्णिम रिकॉर्ड बनाये हैं उसे १०० गुना बेहतर तरीके से हम आज तोड़ रहे हैं ; आगे की पीढियां हमारे भी रिकॉर्ड तोडेंगी !
जैसे परमाणु बम की इज़ाद करने वाले, दुनिया को आतंक का पाठ पढ़ने वाले आज शांति के लिए संघर्षरत हैं !
वैसे ही हमें भी कुत्सित तरीके छोड़ उच्चतम आदर्शो को स्थापित करना चाहिए जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी उन आदर्शो पर चले और समाज उन्नति करे !
यही होना चाहिए ; आज समाज फैशन के सामान बदलना चाह रहा है- सही दर्ज़ी ढूंढ रहा है जो उसे राजेन्द्र कुमार के स्किन फिट पेंट और शर्ट की जकड़न से आज़ादी दिलाये ;और इसकी जगह राज कपूर की तरह ढीले ढाले कपडे बना दे तो कुछ आराम मिले और कुछ बोरियत कम हो !
हाँ यह सही है की भारत अब बोर हो गया हैं इस पुराने विदेशी नजरिये से - उसे कुछ नया चाहिए और वह नजरिया है हमारा पुराना नजरिया, जो मोदी और संघ उन्हें उपलब्ध करा रहे हैं !
गांव और कुटुंब में रहने वाले हम विदेशी सोच के तहत एकल परिवार की दहलीज पर आ गए हैं; एकल परिवार भी कहीं कहीं इतना एकल हो चूका है की उसमे भी सिर्फ १ ही व्यक्ति बचा है !
अब समय बदल रहा है - संविधान में कुछ जरूरी बदलाव जरूरी हो गए हैं ; काफी सारे पुराने निर्णयों को बदलने का समय आ गया है !
हो सकता है की पिछले ५० सालों में कांग्रेस ने जो सामाजिक सुधार के नाम पर जो सामाजिक मुखिया, पारिवारिक मुखिया परंपरा पर और हमारे संस्कारो पर जो चोट की है उसपर अगले १० सालो तक केंद्र सरकार मरहम लगाती रहे और उन्हें ठीक कर दे!
अंत में यही कहूंगा की आशा से आसमान टिका है !!
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज
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