#हथौड़ा_पोस्ट धर्म और राजनीति : धर्म का राजनीति में प्रवेश राजनेताओ को पसंद नहीं। आखिर क्यूँ? सोचिये : अगर एक शंकराचार्य/ दंडी स्वामी/संत/आचार्य सत्तासीन नेताओ को निर्देशित करने लगे तो क्या अनैतिक आचरण और भ्रष्टाचार बचेगा? क्या बलात्कारी नेता, हत्यारे नेता सत्ता चला सकेंगे? एक व्यक्ति जिसे धार्मिक व्यवस्था के आधार पर कुटिया में रहना है, खूब यात्राएं करनी है, धन और तामसी व राजसी चीजो से परहेज करना है अगर वह सत्ता को निर्देशित करेगा तो क्या उसे सत्ता खरीद पाएगी? सत्ता सिर्फ उसे खरीद पाती है जिसकी जरूरते होती है, वैराज्ञ धारी को कौन खरीद सकता है? जो 9 महीने देश भर में यात्रा करेगा, 3 महीने स्थिर रहेगा उसका जनता से जुड़ाव होगा। और वह चाहे तो सत्ता को चुनौती दे सकता है, ऐसा चाणक्य ने किया था। और इसी बात का डर अंग्रेजो को था। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले सत्ता को निर्देशित करने वाली धार्मिक व्यवस्था को छिन्न भिन्न किया, फिर ब्राह्मणों को फिर कांग्रेस आयी तो उसने कुटुम्ब प्रमुख, समाज प्रमुख और ग्राम प्रमुखों की व्यवस्था उलट दी। कांग्रेस ने अंग्रेजो की व्यवस्था को ही आगे बढ़ाया, क्योंकि