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मनु स्मृति में दंड का प्रावधान

जय गुरुदेव 🙏
विचारिये जितना ज्ञान जितना अधिकार उतना दंड, आज के वैकल्पिक ब्राह्मणों को 100 गुना दंड मतलब सोनिया और उनके पुत्र को सामान्य व्यक्ति से 100 गुना दंड - यह उचित है या अनुचित ?
#वैकल्पिक_ब्राह्मण कौन?
१- मंत्री, विधायक, सांसद, पार्षद और पंच सरपंच
2- न्यायाधीश
3- सभी प्रशासनिक अधिकारी
सोचिए इस एक नियम से राष्ट्र में क्या बदलेगा?
क्या मनुस्मृति उचित नहीं 🙏

#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

'मनुस्मृति' के ये महत्वपूर्ण श्लोक ..

"अष्टापाद्यं तु शूद्रस्य स्तेये भवति किल्बिषम्।
षोडशैव तु वैश्यस्य द्वात्रिंशत्क्षत्रियस्य च॥
ब्राह्मणस्य चतुःषष्टिः पूर्णं वापि शतं भवेत्।
द्विगुणा वा चतुःषष्टिस्तद्दोषगुणविद्धि सः॥"
(अध्याय 8, श्लोक संख्या 337/338)
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अर्थात्, "चोरी जैसा कर्म करने पर राजा को चाहिए कि वह शूद्र को उस वस्तु के मूल्य का आठ गुना, वैश्य को सोलह गुना, क्षत्रिय को बत्तीस गुना अर्थदण्ड दे। ब्राह्मण को चौसठ गुना या पूरा सौ गुना दण्ड दे। जो चोरी आदि कृत्यों के बारे में जितना ज्यादा जानता हो, उसे उतने भाग में दण्ड दे, किन्तु ब्राह्मण के विवेकी होने के कारण उसे सौ गुना दण्ड दे।"
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इस श्लोक के अनुसार, 'अच्छाई बुराई' के भेद और 'उचित-अनुचित' के निर्णय की शक्ति सम्बन्धी जिसका जितना ज्ञान है, वह क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं।
इससे साबित होता है कि अपराध के विषय में और आपराधिक पापबोध के बारे में कम ज्ञान रखने वालों को मनुस्मृति के अनुसार सबसे कम दण्ड की व्यवस्था की गई थी। शूद्र को 'दण्ड विधान' में आरक्षण सम्बन्धी ऐसा अद्भुत उल्लेख विश्व के किसी भी अन्य ग्रंथ में नहीं मिलता है।
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'दण्ड विधान' में इतनी तार्किक आरक्षण व्यवस्था होते हुए भी आपको 'मनुस्मृति' से द्वेष है!? आपको द्वेष इसलिए है क्योंकि आपने इस महान ग्रंथ के बारे में केवल अफवाहें सुनी, इसे पढ़ा नहीं। पढ़ लेते, तो शायद आज 'दांडिक आरक्षण' पाने के लिए मनुस्मृति लागू करवाने के उपलक्ष्‍य में आंदोलन कर रहे होते..।।

।।हर हर महादेव।।

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