#सनातन में कुछ भी #अवैज्ञानिक नहीं है, अगर आपको सनातन में कुछ अवैज्ञानिक लगता है तो उस पर या तो शोध नहीं हुआ है या वह आपके IQ से बाहर की चीज है।
मैं काम कर रहा हूं एक ऐसे विषय पर भगवान शिव को प्रिय है, जिसको वेद में पांच पवित्र पौधो में स्थान प्राप्त हैं, जिसे लोग सस्ते नशे से जोड़ते हैं और जिसे औद्योगिकरण और पूंजीवाद ने बदनाम किया है।
हाँ मैं काम कर रहा हूं भांग पर...
#सनातनियो को जानना चाहिए की #शिवप्रिया #विजया #भांग #Cannabis #Hemp असल में कितनी उपयोगी और क्यों यह आज शिव को अप्राप्त है?
नई दिल्ली 1985 स्थान #संसद भवन...
राजीव गांधी के नेतृत्व में 403 सदस्यों वाली कांग्रेस में एनडीपीएस एक्ट के विरोध में लगातार स्वर मुखर हो रहे थे, हिंदू सांसद शिव प्रिया को शिव से दूर करना नहीं चाहते थे और राजीव, रोनाल्ड रीगन के अति दबाव में थे।
अंतत: अपनी ही पार्टी के सांसदों से परेशान होकर राजीव गांधी ने कांग्रेस के चीफ व्हिप गुलाम नबी आजाद को आदेश दिया की एनडीपीएस एक्ट की वोटिंग पर व्हिप जारी करो तब जा कर पास हुआ यह एक्ट...
और इस तरह भगवान शिव से शिव प्रिया विजया भांग छीन ली गई।
और देश की सरकार ने यह सिद्ध किया की वह संवैधानिक रूप से ईश्वर के मुंह का निवाला भी छीन सकती है।
असल में भांग है क्या?
देवलोक में जो शिव का स्थान है वही स्थान भांग का वनस्पति जगत में है।
यह अद्भुत पौधा समुद्र मंथन में निकला और यह मानव को मूल रूप से रोटी, कपड़ा, मकान और दवा तो देता ही है, इसके साथ ही इससे कागज, बायो प्लास्टिक, बायो इथेनॉल जैसे हजारों उत्पाद बनते हैं यह पर्यावरण संरक्षण, भू स्खलन से बचाव, रेडियेशन कम करना और भरपूर ऑक्सीजन देने जैसा महत्वपूर्ण काम भी करता है।
लोग कहते है यह नशा है, WHO इसे केमिकल ड्रग मानता रहा है, अखबार इसके बारे में बुरा छापते रहे हैं, पर इसकी वास्तविकता क्या है?
नशे का मतलब ही #Unconscious होना है पर क्या यह पौधा आपकी चेतना छीनता है, कतई नहीं इसे संत #Consciousness के लिए उपयोग करते हैं।
और एक पौधे से प्राप्त पत्ती और फूल कैसे केमिकल हो सकता है?
सत्ता का दुरुपयोग, राजस्व प्राप्ति हेतु मनुष्य या ईश्वर को नुकसान पहुंचाना #सरकारों का आम शगल है।
हमें इन्होंने बिना टैक्स बिकने वाले देसी घी और नमक जैसी चीजों की जगह, टैक्स युक्त डब्बा बंद वनस्पति घी, रिफाइंड वनस्पति तेल और आयोडाईझड नमक खिला दिया।
प्रकृति से प्राप्त पत्तल दोने में भोजन करने वाले देश को प्लास्टिक के बर्तन परोस दिए।
इसी क्रम में शराब और फार्मा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारों ने भांग प्रतिबंधित कर दी।
अब समय बदल रहा है अब, प्रकृति औद्योगिकरण के दुष्परिणाम भोग रही है, तो सरकारें #Sustainability, की तरफ दौड़ रहीं हैं और प्रकृति रक्षण और दवा हेतु इन्हें फिर भांग याद आ रही है।
अमेरिका, कनाडा और थाईलैंड जैसे देश इसे कानूनी कर चुके हैं।
पर क्या भारत अपनी शिवप्रिया को उसका गौरव देना चाहता है?
समाचार समूहों ने भांग को बहुत बदनाम किया है और जन मानस के मन में भांग के प्रति दुर्भावना भर दी है और इसी जनभावना से सरकार डरती है।
2021 में WHO ने भांग को शेड्यूल 4 से बाहर निकाल दिया है, मतलब WHO चाहता है की भांग रेगुलेट हो पर क्या #भारत #सरकार इतनी हिम्मत दिखा सकती है?
शायद अभी नहीं क्योंकि एनडीपीएस में भांग के पौधे को राज्य को हस्तांतरित किया गया है अतः केंद्र अपनी गेंद राज्यो के पाले में डालता है, और राज्य वैसे भी भांग से घबराते हैं क्योंकि उनकी पुलिस इसे पिछले 40 वर्षो से जला और कटवा रही है।
दूसरा कारण यह है कि हर राज्य में भांग पर अलग कानून होने या कानून ही न होने से राज्य और राष्ट्र को इस पौधे से राजस्व प्राप्त करने में विसंगतियां पैदा करेगा।
अभी भारत के सिर्फ एक राज्य उत्तराखंड ने इस बिलियन डॉलर फसल को उपयोग करने के लिए भांग की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दी है, पर यहां भी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत गलती कर गए।
उन्होंने पॉलिसी में .3% THC से कम के प्रमाणिक बीज को ही बोने की अनुमति दी है।
यह अति हास्यास्पद है, भारतवर्ष में भांग की एक भी प्रजाति प्रमाणिक नहीं है और न ही The Seeds Act, 1966 में भांग के बीजों का कहीं उल्लेख है।
मजाक तो यह है कि भारत में कोई भी सरकारी या गैर सरकारी संस्था भांग के बीजों को प्रमाणित करने के लिए नहीं है।
तो किसान बोने लायक बीज कहां से पाएगा?
कुछ लोग कहते हैं की विदेशी बीज मंगा लो।
क्या यह संभव है?
बीज मंगवाना संभव तो है पर इन बीजों से .3% THC से कम की फसल प्राप्त करना असंभव है, इसके कारण है।
जलवायु, मिट्टी और वास्तविक परिस्थिति के आधार पर हर फसल अपने गुण बदलती है।
देहरादून का चांवल, केरल, असम या कजाकिस्तान में अपना रूप रंग और गुण बदल लेता है यही भांग के साथ होता है।
आज तक किसी भी किसान ने देसी या विदेशी बीज से .3% का मानक नही पाया है।
विदेशी बीज बोना मैं उचित नहीं मानता क्योंकि इससे हमारी बायो डायवर्सिटी नष्ट होगी।
भांग परागण करती है और एक विदेशी नर पौधा कई किलोमीटर तक हमारी देसी भांग को निषेचित कर सकता है, जिससे हमारी औषधीय भांग बर्बाद हो जायेगी।
यह कार्य उस दिन तक राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आएगा जब तक हम अपनी भांग की डीएनए मैपिंग न कर लें, जबतक हम अपना सीड बैंक न बना लें।
#क्रमश:
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज
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