गतांक से आगे :
सत्ता का दुरुपयोग, राजस्व प्राप्ति हेतु मनुष्य या ईश्वर को नुकसान पहुंचाना #सरकारों का आम शगल है।
हमें इन्होंने बिना टैक्स बिकने वाले देसी घी और नमक जैसी चीजों की जगह, टैक्स युक्त डब्बा बंद वनस्पति घी, रिफाइंड वनस्पति तेल और आयोडाईझड नमक खिला दिया।
प्रकृति से प्राप्त पत्तल दोने में भोजन करने वाले देश को प्लास्टिक के बर्तन परोस दिए।
इसी क्रम में शराब और फार्मा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारों ने भांग प्रतिबंधित कर दी।
अब समय बदल रहा है अब, प्रकृति औद्योगिकरण के दुष्परिणाम भोग रही है, तो सरकारें #Sustainability, की तरफ दौड़ रहीं हैं और प्रकृति रक्षण और दवा हेतु इन्हें फिर भांग याद आ रही है।
अमेरिका, कनाडा और थाईलैंड जैसे देश इसे कानूनी कर चुके हैं।
पर क्या भारत अपनी शिवप्रिया को उसका गौरव देना चाहता है?
समाचार समूहों ने भांग को बहुत बदनाम किया है और जन मानस के मन में भांग के प्रति दुर्भावना भर दी है और इसी जनभावना से सरकार डरती है।
2021 में WHO ने भांग को शेड्यूल 4 से बाहर निकाल दिया है, मतलब WHO चाहता है की भांग रेगुलेट हो पर क्या #भारत #सरकार इतनी हिम्मत दिखा सकती है?
शायद अभी नहीं क्योंकि एनडीपीएस में भांग के पौधे को राज्य को हस्तांतरित किया गया है अतः केंद्र अपनी गेंद राज्यो के पाले में डालता है, और राज्य वैसे भी भांग से घबराते हैं क्योंकि उनकी पुलिस इसे पिछले 40 वर्षो से जला और कटवा रही है।
दूसरा कारण यह है कि हर राज्य में भांग पर अलग कानून होने या कानून ही न होने से राज्य और राष्ट्र को इस पौधे से राजस्व प्राप्त करने में विसंगतियां पैदा करेगा।
अभी भारत के सिर्फ एक राज्य उत्तराखंड ने इस बिलियन डॉलर फसल को उपयोग करने के लिए भांग की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दी है, पर यहां भी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत गलती कर गए।
उन्होंने पॉलिसी में .3% THC से कम के प्रमाणिक बीज को ही बोने की अनुमति दी है।
यह अति हास्यास्पद है, भारतवर्ष में भांग की एक भी प्रजाति प्रमाणिक नहीं है और न ही The Seeds Act, 1966 में भांग के बीजों का कहीं उल्लेख है।
मजाक तो यह है कि भारत में कोई भी सरकारी या गैर सरकारी संस्था भांग के बीजों को प्रमाणित करने के लिए नहीं है।
तो किसान बोने लायक बीज कहां से पाएगा?
कुछ लोग कहते हैं की विदेशी बीज मंगा लो।
क्या यह संभव है?
बीज मंगवाना संभव तो है पर इन बीजों से .3% THC से कम की फसल प्राप्त करना असंभव है, इसके कारण है।
जलवायु, मिट्टी और वास्तविक परिस्थिति के आधार पर हर फसल अपने गुण बदलती है।
देहरादून का चांवल, केरल, असम या कजाकिस्तान में अपना रूप रंग और गुण बदल लेता है यही भांग के साथ होता है।
आज तक किसी भी किसान ने देसी या विदेशी बीज से .3% का मानक नही पाया है।
विदेशी बीज बोना मैं उचित नहीं मानता क्योंकि इससे हमारी बायो डायवर्सिटी नष्ट होगी।
भांग परागण करती है और एक विदेशी नर पौधा कई किलोमीटर तक हमारी देसी भांग को निषेचित कर सकता है, जिससे हमारी औषधीय भांग बर्बाद हो जायेगी।
यह कार्य उस दिन तक राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आएगा जब तक हम अपनी भांग की डीएनए मैपिंग न कर लें, जबतक हम अपना सीड बैंक न बना लें।
#narendramodi #cannabisindustry #hempindustry #hills
हमें इन्होंने बिना टैक्स बिकने वाले देसी घी और नमक जैसी चीजों की जगह, टैक्स युक्त डब्बा बंद वनस्पति घी, रिफाइंड वनस्पति तेल और आयोडाईझड नमक खिला दिया।
प्रकृति से प्राप्त पत्तल दोने में भोजन करने वाले देश को प्लास्टिक के बर्तन परोस दिए।
इसी क्रम में शराब और फार्मा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकारों ने भांग प्रतिबंधित कर दी।
अब समय बदल रहा है अब, प्रकृति औद्योगिकरण के दुष्परिणाम भोग रही है, तो सरकारें #Sustainability, की तरफ दौड़ रहीं हैं और प्रकृति रक्षण और दवा हेतु इन्हें फिर भांग याद आ रही है।
अमेरिका, कनाडा और थाईलैंड जैसे देश इसे कानूनी कर चुके हैं।
पर क्या भारत अपनी शिवप्रिया को उसका गौरव देना चाहता है?
समाचार समूहों ने भांग को बहुत बदनाम किया है और जन मानस के मन में भांग के प्रति दुर्भावना भर दी है और इसी जनभावना से सरकार डरती है।
2021 में WHO ने भांग को शेड्यूल 4 से बाहर निकाल दिया है, मतलब WHO चाहता है की भांग रेगुलेट हो पर क्या #भारत #सरकार इतनी हिम्मत दिखा सकती है?
शायद अभी नहीं क्योंकि एनडीपीएस में भांग के पौधे को राज्य को हस्तांतरित किया गया है अतः केंद्र अपनी गेंद राज्यो के पाले में डालता है, और राज्य वैसे भी भांग से घबराते हैं क्योंकि उनकी पुलिस इसे पिछले 40 वर्षो से जला और कटवा रही है।
दूसरा कारण यह है कि हर राज्य में भांग पर अलग कानून होने या कानून ही न होने से राज्य और राष्ट्र को इस पौधे से राजस्व प्राप्त करने में विसंगतियां पैदा करेगा।
अभी भारत के सिर्फ एक राज्य उत्तराखंड ने इस बिलियन डॉलर फसल को उपयोग करने के लिए भांग की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दी है, पर यहां भी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत गलती कर गए।
उन्होंने पॉलिसी में .3% THC से कम के प्रमाणिक बीज को ही बोने की अनुमति दी है।
यह अति हास्यास्पद है, भारतवर्ष में भांग की एक भी प्रजाति प्रमाणिक नहीं है और न ही The Seeds Act, 1966 में भांग के बीजों का कहीं उल्लेख है।
मजाक तो यह है कि भारत में कोई भी सरकारी या गैर सरकारी संस्था भांग के बीजों को प्रमाणित करने के लिए नहीं है।
तो किसान बोने लायक बीज कहां से पाएगा?
कुछ लोग कहते हैं की विदेशी बीज मंगा लो।
क्या यह संभव है?
बीज मंगवाना संभव तो है पर इन बीजों से .3% THC से कम की फसल प्राप्त करना असंभव है, इसके कारण है।
जलवायु, मिट्टी और वास्तविक परिस्थिति के आधार पर हर फसल अपने गुण बदलती है।
देहरादून का चांवल, केरल, असम या कजाकिस्तान में अपना रूप रंग और गुण बदल लेता है यही भांग के साथ होता है।
आज तक किसी भी किसान ने देसी या विदेशी बीज से .3% का मानक नही पाया है।
विदेशी बीज बोना मैं उचित नहीं मानता क्योंकि इससे हमारी बायो डायवर्सिटी नष्ट होगी।
भांग परागण करती है और एक विदेशी नर पौधा कई किलोमीटर तक हमारी देसी भांग को निषेचित कर सकता है, जिससे हमारी औषधीय भांग बर्बाद हो जायेगी।
यह कार्य उस दिन तक राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आएगा जब तक हम अपनी भांग की डीएनए मैपिंग न कर लें, जबतक हम अपना सीड बैंक न बना लें।
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