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NDPS ACT 1985

क्या आप वकील हैं?
क्या आप जानते है कि भारतीय कानून का सबसे बड़ा हास्यास्पद कानून कौन सा है?
कभी पढ़िए NDPS ACT १९८५ को और दिल खोल के हंसिए अपने कानून निर्माताओं पर 🙏
सचिन अवस्थी (एक भांग उत्पादक)


हम NDPS एक्ट मे मौजूद खामियो की चर्चा करेंगे ! 
NDPS एक्ट मे अनुभाग 2 स्वापक द्रव्यों को परिभाषित करता है , 
हम सिर्फ ( cannabis) भांग की चर्चा कर रहे है तो केवल उसकी परिभाषा और उस से संबन्धित कानून को लेंगे : 
सेक्शन 2 - कैनाबिस की परिभाषा से अभिप्रेत है : 
(क) चरस , अर्थात कच्चा या शोधित किसी भी रूप मे पृथक किया गया रेजिन जो कैनाबिस के पौधे से प्राप्त किया गया हो और इसके अंतर्गत हशीश तेल या द्रव्य हशीश नाम से ज्ञात सांद्रित निर्मित और रेजिन है |
(ख) गाँजा , अर्थात कैनाबिस के पौधे के फूलने और फलने वाले सिरे ( इसके अंतर्गत बीज और पत्तियाँ जब वे सिरे के साथ ना हो , नहीं है ) चाहे वो किसी भी नाम से ज्ञात और अभिनिहित हो ; और 
(ग) उपरोक्त किसी भी प्रकार के कैनाबिस का कोई मिश्रण चाहे वो किसी निष्प्रभावी पदार्थ सहित या उसके बिना , उससे निर्मित कोई पेय ; कैनाबिस का पौधा से कैनाबिस वंश का कोई भी पौधा अभिप्रेरित है | (हेम्प भी)
अगर इसे परिभाषा को सरकार मानती है तो भांग से बनने वाली दवा, भांग घोटे की दुकानो को सरकार लाइसेंस कैसे दे सकती है?
सेक्शन 8 ( ख) मे चर्चा
कैनाबिस की खेती या अन्य किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी औषधियो का उत्पादन, कब्जा, क्रय, बिक्रय,परिवहन भंडारण, उपभोग, उपयोग, अंतर राज्यीय आयात, निर्यात आदि पर नियम कानून भी बहुत भ्रमित करते है |
परंतु ध्यान देने वाली बात यह है गांजे के नियमन , उपयोग, उपभोग, जैसे अधिकारो पर केंद्र सरकार के नियंत्रण मे रखा गया है , और सेक्शन 9 मे जहां पर केंद्र सरकार के अधिकारो का वर्णन है , वहाँ पर केनबीस आदि पर कोई चर्चा नहीं है!
जबकि सेक्शन 10, जिसमे राज्य सरकारो के अधिकारो का वर्णन है वहाँ पर लिखा है, किसी भी कैनाबिस की खेती , कैनाबिस ( जिसके अंदर चरस नहीं है ) का उत्पादन , विनिर्माण , कब्जा, अंतर राज्ययिक निर्यात, क्रय, उपयोग या उपभोग को राज्य रेगुलेट कर सकता है | (पौधे के फूल को गाँजा कहते हैं जो पौधे में उगेगा ही और वह केंद्र के अधिकार में है) राज्य सरकारें इस प्रावधान से भी डर जाती हैं!
इन कानूनों मे क्या नहीं कर सकते ? क्या कर सकते है ? 
किस भाग के उपयोग या उपभोग के लिए किस से अनुमति लेनी है यह बहुत भ्रमित करता है? 
मुख्य समस्या यह है कि क़ानून की विवेचना पुलिस करती है और अगर वह केस बना दे तो महीनो सालो ज़मानत भी नहीं होती। (क़ानून में भ्रम की स्तिथि अधिकारियों से लेकर किसानो तक को हतोत्साहित करती है) 
दवाओं के लिए कनेबिस के पत्तों का उपयोग कैसे सम्भव हो सकता है, जबकि दवा बनाने वाले उसका शोधन करते हैं और एक्सट्रैक्ट निकालते हैं? (सेक्शन 2 की परिभाषा को देखें) 
सेक्शन 10 मे राज्यो के अधिकार और सेक्शन 14 के तहत अनुमति देने की प्रक्रिया को साथ पढ़ा जाये यह लिखा है. पर सरकारें सेक्शन ८ और १४ पर ही ध्यान देती हैं सेक्शन १० में मिले अधिकारो को छोड़ देती हैं।
इन सब बातों पर सरकार और न्यायालय से प्रार्थना है कि वे संज्ञान ले, और अधिक स्पष्ट तरीके से परिभाषित करने वाला कानून बनाए , किसानो और व्यापारियो के हितार्थ इसी कानून की व्याख्या को अधिक स्पष्ट करे क्यूकी एक ही पौधे " कैनाबिस " के २५००० से ज़्यादा उपयोग है, यह पौधा रोटी कपड़ा और मकान तीनो देता है और बोनस में दवा भी देता है, इसलिए इसपर संज्ञान लेना जरूरी है।
 इन २५००० उपयोगों के लिए , इसे उगाना भी बहुत बड़ी मात्रा मे पड़ेगा और इतने जटिल कानूनी पचड़े मे किसान पड़ना नहीं चाहेगा जिस की वजह ना सिर्फ ना सिर्फ किसान का  नुकसान हो रहा है , बल्कि राष्ट् की आर्थिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक सम्पदा के साथ साथ आयुर्वेद का भी ह्रास हो रहा है , 
NDPS एक्ट की आसान विवेचना राष्ट्र के उत्थान मे योगदान दे सकती है |  केंद्र और राज्य सरकारो को इस पर ध्यान देना चाहिए | 

अब जब तक इस पौधे पर नए कानून नहीं बन जाते तब तक , राज्य सरकारो को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जब सेक्शन 10 के तहत पूरे पौधे के उपयोग की इजाजत है तो वह सेक्शन १० के तहत इसके उपयोग की इजाजत क्यूँ दे रही है ? 
वह सेक्शन 10 के तहत इजाजत दे और पूरे पौधे को रेग्युलेट करे , 
अभी उत्तराखंड सिर्फ़ रेशे और बीज के उपयोग की अनुमति देता है, जबकि आयुर्वेदिक उपयोग के लिए कम्पनियाँ जंगली और दोयम दर्जे के पत्तों पर आश्रित हैं, हम दवाओं के लिए श्रेष्ठ नहीं उगा सकते और न ही पत्ते दवा निर्माताओ को नहीं दे सकते, दवा निर्माता जंगल से एकत्रित भांग के पत्ते पर आश्रित हैं, जिससे आयुर्वेद की गुणवत्ता पर असर पड़ता है! 
NDPS एक्ट मे THC के बारे मे कुछ नहीं लिखा फिर THC को पोलिसी में जोड़ना कहाँ तक न्यायोचित है जबकि ऐसे बीज ही देश में उपलबद्ध नहीं हैं, जिनका THC प्रतिशत ०.३ से कम हो और यह निर्विवाद सच है की विदेशी बीज हमारी जैव विविधता ख़राब करते हैं। 
ऐक्ट में रेसिन ( चरस ) के बारे मे लिखा है जो एक प्रोसैस है न की पौधा या फल या फूल (घर में शराब बनाना प्रतिबंधित है पर महुआ, संतरा और गन्ना उगाना नहीं)
राज्य चरस ना बनने दे जैसे वह कच्ची शराब नहीं बनाने देता।
 इस पर भी स्पष्टता हो की गाँजा पर नियमन का अधिकार केंद्र सरकार ने अपने पास क्यूँ रखा है जो एग्रिकल्चर प्रॉडक्ट है और चरस जो एक प्रक्रिया है उसे राज्यो द्वारा प्रतिबंधित कराया गया है | 
आज सीबीडी हजारो करोड़ का मार्केट है, टीएचसी का भी दवाई के रूप मे है मानसिक इलाज का हजारो करोड़ का बाजार है, इन Molecules पर एनडीपीएस एक्ट मे कुछ नहीं है, फिर ये प्रतिबंधित क्यूँ है?
कई आयुर्वेदिक दवाओं में #विजया एक्सट्रैक्ट का उपयोग होता है पर आयुर्वेद की वे दवाएँ जिनमे भांग के फूल का उपयोग होता है पिछले ३५ सालो से बन ही नहीं रहीं - जबकि अमेरिका, यूरोप, चीन, इस्राएल और कनाडा इसी से दवा बनाकर अरबों डॉलर कमा रहे हैं!
इन दवाओं पर पेटेंट करवा रहे हैं, हमारे पुरातन ज्ञान और आयुर्वेद में 400 से ज्यादा दवाओं का जिक्र है पर हम इन पर आधुनिक शोध नहीं कर सकते, इसलिए पेटेंट नही फाइल कर सकते।
https://www.reuters.com/graphics/USA-MARIJUANA-PATENT/010081FS2MW/index.html

https://youtu.be/HMk4RcQWPLc

https://youtu.be/twsPRLqPo6Q


सरकार और कानून मंत्रालय से निवेदन है इस पर संज्ञान ले 🙏
अवस्थी सचिन
www. sharvhemp.com

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