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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भांग, पहाड़, भांग नीति और सर्वांगीण विकास...

#औद्योगिक भांग वृहद भ्रम का विषय है, भारत में औद्योगिक भांग की प्रजाति का न तो कोई पौधा उपलब्ध है न ही #विदेशी परिभाषाओं के हिसाब का कोई भांग का पौधा हमारी शिवालिक पर्वत मालाओं में है। हमारा पहाड़ #विजया या #भांग के पौधे से भरा पड़ा है पर #हेम्प जैसी सस्ती चीज हमारे पहाड़ों में नहीं है, हमारी विजया अमूल्य है। औद्योगिक भांग में नशा नहीं होता, यह पौधा न मनोरंजन के काम आता है न ही औषधि के, इसीलिए इसे #कैनाबिस की श्रेणी में नहीं रखा जाता इसे #हेंप कहते हैं, मनोरंजन के लिए और औषधि के लिए जो पौधा उपयोग में आता है उसे विदेशी परिभाषा कैनाबिस #इंडिका कहती है, यह पौधा शिवालिक की पर्वत श्रृंखलाओं को छोड़ पूरे देश के मैदानी हिस्सो मे पाया जाता है, जिसका कोई औद्योगिक उपयोग नहीं है। पर हमारी शिवालिक की #विजया अद्भुत है। इससे हम औद्योगिक प्रयोजन के लिए बीज, रेशा और शाईव भी पाते हैं और मनोरंजन और औषधि के लिए फूल और पत्ती भी। औद्योगिक भांग बहुत सस्ती है और इसे बहुत बड़ी मात्रा में उगाना पड़ता है तब इससे कोई एक उद्योग उत्तराखंड में लग सकता है जबकि औषधीय विजया की थोड़ी सी खेती

प्रश्नवाचक ऑंखें....

प्रश्न एक बुरी चीज़ जिसको कोई पसंद नहीं करता पर बिना प्रश्न किये जी भी नहीं सकता... जीवन की धुरी है प्रश्न, जिसको इससे प्यार हो वही सफल होता है. सफलता सभी पसंद करते हैं पर प्रश्न कोई पसंद नहीं करता सभी उससे बचना चाहते हैं. प्राथमिक कक्षा के बच्चे से पूंछे या कोलेज मे पड़ने वाले से सभी प्रश्नों से बचना चाहते हैं. पांचवीं मे उत्तर पुस्तिका मे प्रश्नों के जवाब देकर ही विद्यार्थी पांचवीं पास होता है. और यू पी एस सी से आई ऐ एस बनता है. पर जब आँखे प्रश्न करती हैं तों उत्तर देने वाला परेशां हो जाता है. जीवन मे आँखों का अपना महत्त्व है, सबसे ज्यादा प्रश्न यही करती हैं और जिससे ये प्रश्न करती हैं उसे बहुत परेशान करती हैं. आँखे क्या पूछ रहीं है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है ये क्या जानना चाहती हैं या क्या कह रहीं हैं ? हमारे चक्षु ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान कराते है। ध्यान रखे ये कहीं गलत संदेश तो नहीं दे रहे। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

आपकी "न" ही आपको स्थापित करती है।

सही #साधक वह है जो काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ से आजाद हो। देखिए किन किन चीजों से आप आजाद हुए हैं। इसका मूल मतलब होता है कि किन किन चीजों को आप छोड़ सकते है। दुनिया की सबसे बड़ी ताकत न है और न कहते ही संघर्ष शुरू होता है और संघर्ष विजेता को ही परितोषक मिलता है। पर क्या इस "न" से किसी को फायदा होता है? हम्म्म - "न" सामाजिक, चारित्रिक उत्थान का मूल है। "न" आपको प्रतीक गढ़ने का मौका देती है पर वह बुद्धिमान की "न" हो।। जिन्होंने काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ को "न" कहा है वे ही महान हुए हैं। उन्होंने ही महान शासक, महान आध्यात्मिक पंथ और महान संस्कृतियां खड़ी की। "न" हमेशा से विद्रोह का प्रतीक है पर यह विद्रोह किससे? - प्रकृति से तो यह विद्रोह नहीं हो सकता। पर हम लड़ तो पृथ्वी से ही रहे है, हम लड़ रहे है अपने बच्चो के भविष्य से।। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज