सही #साधक वह है जो काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ से आजाद हो।
देखिए किन किन चीजों से आप आजाद हुए हैं।
इसका मूल मतलब होता है कि किन किन चीजों को आप छोड़ सकते है।
दुनिया की सबसे बड़ी ताकत न है और न कहते ही संघर्ष शुरू होता है और संघर्ष विजेता को ही परितोषक मिलता है।
पर क्या इस "न" से किसी को फायदा होता है?
हम्म्म - "न" सामाजिक, चारित्रिक उत्थान का मूल है।
"न" आपको प्रतीक गढ़ने का मौका देती है पर वह बुद्धिमान की "न" हो।।
जिन्होंने काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ को "न" कहा है वे ही महान हुए हैं।
उन्होंने ही महान शासक, महान आध्यात्मिक पंथ और महान संस्कृतियां खड़ी की।
"न" हमेशा से विद्रोह का प्रतीक है पर यह विद्रोह किससे? - प्रकृति से तो यह विद्रोह नहीं हो सकता।
पर हम लड़ तो पृथ्वी से ही रहे है, हम लड़ रहे है अपने बच्चो के भविष्य से।।
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज
सवाल पूछने का समय: अगर हम अपने समय और समाज को ज़रा ठहरकर देखें, तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि कोई अजीब-सी दौड़ लगी है। भाग-दौड़, होड़, लाभ-हानि, सत्ता, बाजार~ यह शब्द, आज सब कुछ साधने वाले शब्द बन चुके हैं, सारे मुद्दे और बहसें गोया इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमने लगी हैं। जब आप सवाल करते हैं कि "क्या यह वैश्विक व्यवस्था मानव समाजों, उनकी आस्थाओं, मूल्यों और सांस्कृतिक आदर्शों को नजरअंदाज करती है?", तो उसका सीधा सा उत्तर निकलेगा~ हाँ, और यह सब बड़ी सुघड़ता के साथ, बड़ी सधी नीति के साथ, लगभग अदृश्य तरीके से होता आ रहा है। अब सवाल यह नहीं रह गया कि कौन सी व्यवस्था पिछली सदी में कैसी थी, क्योंकि अब तो यह नई शक्लें ले चुकी है~ तकनीक की शक्ल में, विकास की शक्ल में, नव-मानवतावाद की शक्ल में, और कभी-कभी खुद "मानवता" के नाम का झंडा लेकर भी! सवाल यह है कि क्या इन योजनाओं और भाषणों के बीच कहीं हमारा पर्यावरण, हमारी सांस्कृति प्राकृति और हमारी अपनी परंपराएं बची रह गई हैं? "ग्लोबल ऑर्डर" और उसकी ताकत वैश्विक शासन व्यवस्था या जिसे fancy शब्दों में "ग्लोबल ऑर्डर" क...
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