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भांग, पहाड़, भांग नीति और सर्वांगीण विकास...

#औद्योगिक भांग वृहद भ्रम का विषय है,
भारत में औद्योगिक भांग की प्रजाति का न तो कोई पौधा उपलब्ध है न ही #विदेशी परिभाषाओं के हिसाब का कोई भांग का पौधा हमारी शिवालिक पर्वत मालाओं में है।
हमारा पहाड़ #विजया या #भांग के पौधे से भरा पड़ा है पर #हेम्प जैसी सस्ती चीज हमारे पहाड़ों में नहीं है, हमारी विजया अमूल्य है।
औद्योगिक भांग में नशा नहीं होता, यह पौधा न मनोरंजन के काम आता है न ही औषधि के, इसीलिए इसे #कैनाबिस की श्रेणी में नहीं रखा जाता इसे #हेंप कहते हैं, मनोरंजन के लिए और औषधि के लिए जो पौधा उपयोग में आता है उसे विदेशी परिभाषा कैनाबिस #इंडिका कहती है, यह पौधा शिवालिक की पर्वत श्रृंखलाओं को छोड़ पूरे देश के मैदानी हिस्सो मे पाया जाता है, जिसका कोई औद्योगिक उपयोग नहीं है।
पर हमारी शिवालिक की #विजया अद्भुत है।
इससे हम औद्योगिक प्रयोजन के लिए बीज, रेशा और शाईव भी पाते हैं और मनोरंजन और औषधि के लिए फूल और पत्ती भी।
औद्योगिक भांग बहुत सस्ती है और इसे बहुत बड़ी मात्रा में उगाना पड़ता है तब इससे कोई एक उद्योग उत्तराखंड में लग सकता है जबकि औषधीय विजया की थोड़ी सी खेती बहुत पैसा भी देती है और यह औषधीय विजया विश्व की सबसे महंगी विजया भी है (पार्वती वैली: मलाणा)।
शिवालिक की पर्वत श्रृंखलाओं में हमे औद्योगिक भांग क्यों नहीं उगानी चाहिए?
उत्तराखंड की 75% भूमि केंद्र सरकार के जंगल विभाग के अंतर्गत आती है जिसमे राज्य हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
बची भूमि में सड़क, नाली, ओवर ब्रिज, शहर, गांव, कस्बे, कारखाने, मठ, आश्रम, नदी और तालाब सब हैं,
फिर हमें #संगध पौधे, फूल, फल, सब्जी, दालें, राजमा, बासमती, धनिया, मिर्च, सब्जी, गन्ना और अन्न सभी इसी धरती पर उगाना है, और उत्तराखंड की जमीन का भू सुधार भी नहीं हुआ है जिससे बड़ी जोत के खेत बचे नहीं हैं।
तो एक बहुत सस्ती फसल बहुत कम मात्रा में उगा कर क्या हम प्रदेश का पलायन रोक पाएंगे?
भांग का एक नर पौधा किलोमीटरो तक  परागण करता है और साल में 2 से 3 बार यह फसल पैदा होती है।
सोचिए अगर हमारी विजया अगर सवा 2 साल बिना नशे की भांग से क्रॉस पॉलीनेट हो गई तो यह लगातार 7 पीढ़ियों का क्रॉस पॉलिनेशन होगा।
जिससे हमारी शिव प्रदत्त विजया बिना नशे और बिना औषधी की #खरपतवार हो जायेगी...
नियंत्रित वातावरण : मूर्धन्य वैज्ञानिकों से मेरा प्रश्न है कि ग्रीन हाउस किस कार्य हेतु प्रयोग होता है यह बताने का कष्ट करें।
#कोरोना या छींक का वायरस पूरे फेंफडे की ताकत लगा कर छींकने से 6 फिट जाता है, और पराग कई किलोमीटर हवा पर चलकर परागण करता है।
तो क्या कोई हरी जाली या कोई भी शेड पहाड़ में चलने वाली तेज हवा को शेड में प्रतिबंधित कर सकता है?

बहुत संभव है कुछ विदेशी कम्पनियां हमारी भांग के जेनीटिक विशेषता को खत्म करने के षड्यंत्र में शामिल हों और कुछ देसी व्यक्ति धन कमाने को भारतीय स्वास्थ्य, आयुर्वेद, हमारी जैव विविधता, और मलाणा, हर्षित घाटी, बागेश्वर और शिवालिक की भांग से ज्यादा महत्वपूर्ण समझते हों।
उन्हे ध्यान रखना चाहिए कि जब आपकी भांग ही सस्ती औद्योगिक भांग में बदल जायेगी तो आप कमाओगे क्या?
वैज्ञानिकों को समझना चाहिए कि कम नशे का सस्ता बीज बनाकर वे #राष्ट्र की अमूल्य औषधीय संपदा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
भारत में बीजों में जेनिटिक बदलाव प्रतिबंधित हैं।
अतः जो बीज वैज्ञानिक बनायेंगे वे दोबारा महंगी कीमत पर नहीं बिकेंगे क्योंकि अगली फसल का बीज किसान खुद संचित कर लेगा।
इस नए बीज की रचना से होने वाला फायदा किसे होगा यह बहुत बड़ा प्रश्न है।

#मलाणा ( #मलाना ) और पूरे शिवालिक की भांग अगर बिना नशे की हो जायेगी तो मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों के भांग ठेकों का क्या होगा ?
ठेकेदार तो बेरोजगार होंगे ही, #बनारस और जैसलमेर की ऐतिहासिक भांग की ठंडाई की परंपरा भी लुप्त हो जायेगी?
सरकारें नीतियां बनाने से पहले कृपया #प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र की परंपराओं और #योगी जी के प्रदेश की जनता की सांस्कृतिक और सामाजिक परम्पराओं पर भी विचार कर लें।
#आयुष मंत्रालय से भी पूछ लें कि वे अपनी भांग के डीएनए में कितना बदलाव स्वीकार कर सकेंगे।
हमारी अखाड़ा परंपरा के नागा साधु क्या तंत्र पूजा पद्धति में बिना नशे की भांग का प्रयोग करने को तैयार होंगे?

कल्पना कीजिए एक खरपतवार की जो 8 से 12 फुट लंबा और बिना यूरिया और कीटनाशक के प्राकृतिक रूप से उग आता हो। 
भांग के लिए हमें सिर्फ एक नीति चाहिए जो स्थानीय प्रजातियों को संरक्षित करे और हमारे पर्यावरण, आयुर्वेद, पलायन, रोजगार एवं पर्यटन को एक साथ संभाल सके।
#पंकज_प्रकृति जी मेरे प्रिय हैं और मेरे सिद्धांत से सहमत है।
यह वीडियो बनाया ही इस हेतु गया है कि विजया के महत्व पर चर्चा शुरू की जा सके।।
नीति तो शिव को अतिप्रिय पौधे पर बन रही है यह बिना शिव की मर्जी के बन ही नहीं सकती।
हमे लगता  है कि लोगो को स्वस्थ चिंतन के लिए प्रेरित जाए और वही हम कर रहे हैं।
इसमें कुछ भी व्यक्तिगत या स्वार्थवश नहीं है, यह चिंतन एक उद्योग को खड़ा करने और शिव को शिवप्रिया लौटने की जद्दोजहद है।
आपसे निवेदन है कि अपने विचारो की आहुतियां इस हवन कुंड में डालें जिससे एक बेहतर #उत्तराखंड, बेहतर देवभूमि, बेहतर हिमालय और संवृद्ध देश बन सके। 🙏

https://youtu.be/48o0--WOKL4

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