सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मोदी का अगला क़दम : जातिगत विघटन नहीं अपितु आर्थिक विषमता का फ़ायदा उठाना है !!

दलित राजनीति हो समाजवाद या सर्वजन हिताय की अवधारणा लिए हुए देश - उनको चलाने का काम तो वही कर सकता है जो समर्थ हो !
किराने की दुकान चलाने वाले बनिए को कोई भी सरकार वह सुविधाएँ नहीं दे सकती जो टाटा या अम्बानी को देती है ; यह शास्वत सत्य है !
विचार करिए एक संवैधानिक संशोधन पर और उस किराना व्यापारी को अम्बानी बनाने की कोशिश करिए; और फिर उससे लाभ लेने की कोशिश करिए !
इस पूरी प्रक्रिया में 50 साल तो लगेंगे - और शायद अम्बानी भी ख़त्म हो जाए और किराना व्यापारी भी नया अम्बानी न बन पाए या बन भी जाए तो क्या फ़र्क़ पड़ता है !
यही भारतीय राजनीति है - हम मंडला बालघाट और झबुआ के आदिवासियों को नेता बनाते हैं !ताक़त देते हैं बड़े बड़े भाषण देते हैं ; लाभ की योजनाएँ बनाते हैं और जब चुनाव आता है तो उसी आदिवासी के गाँव के लोग गाँव के सवर्ण मालगुजार से पूछ कर वोट देते है ; क्यूँकि उन्हें उसी मालगुज़ार की मज़दूरी करनी है ; वही उसे पैसे उधार देता है ; वही मदद करता है वह मालगुज़ार अगर चाहे तो मदद न कर आपको दुत्कार भी सकता है !
यही परम्परा रही है सदियों से ; यही व्यवस्थाएँ रहेंगी सदियों तक !
यही वह खाई है जो पहले जातियों के बीच थी अब अमीर और ग़रीब के बीच है !
मोदी की एक ख़ासियत रही है उनने जाति आधारित समाज विखंडन की बात नहीं की ; समाज को बाँटने की कोशिश की धनी और ग़रीब के आधार पर जिसके चलते "नोट बंदी" का सामाजिक विरोध नहीं हो पाया !
दलित और ब्राह्मण विरोधी अवधारणा का मूल श्रेष्ठता और तिरस्कार था; अब किसी को श्रेष्ठता और तिरस्कार की समस्या (यू पी बिहार और मध्यप्रदेश के रीवा जिले को छोड़कर) है ही नहीं !
अब सम्मान बड़ी गाड़ी बड़ा बंगला देखकर होता है और तिरस्कार झोपड़ी और आपकी औक़ात देखकर !
पहले भी समस्या थी जलन की अब भी यही समस्या है - पहले इसे ब्राह्मण और दलित के बीच संघर्ष माना जाता था अब यही अमीरो और ग़रीबो के बीच का संघर्ष है
यह समस्या तत्कालीन बुज़ुर्ग नेताओं की समझ से परे का मामला है ; यह बिलकुल वैसा ही है जैसे 70 साल के बुज़ुर्ग को कशलेस भुगतान कैसे करना है,समझाना !
आज के नए नेताओं में इतना माद्दा नहीं की वे अपने नेताओं से प्रति प्रश्न कर सकें, उन्हें यह अवधारणा समझा सकें !
आज के नेता,- व्यापारी, साहूकारों और ठेकेदारों के बिना राजनीति कर ही नहीं सकते जो सामाजिक प्रतिशत में 10% आधार रखने वाली जातियों से आते हैं
और यदि राजनैतिक पार्टियाँ मज़दूरों ग़रीबों को व्यापारी और ठेकेदारों बनाती हैं (जो 90% दलित या आदिवासी होते हैं) तो उनका समाज ही उन दलित व्यापारी और ठेकेदारों को तिरस्कृत कर देता है ; वह सोचने लगता है कि यह हमारे समाज के नाम का कमा रहा है और बड़ी गाड़ियों में घूम रहा है !
उद्धरण : हीरा सिंह मरकाम जैसे कई नेता हैं जो धन की कमी से हारते हैं पर अपने क्षेत्रों में ग़ज़ब की पकड़ रखते हैं !
दूसरी तरफ़ मध्य प्रदेश के दसियों नेता हैं जो पर्याप्त धन होने के बाद भी स्वजनो द्वारा हराए जाते हैं !
समस्या यही है कि इन नेताओं को 90% दलित, आदिवासी और पिछड़े दिखते हैं पर 10% अगड़े नहीं दिखते जो इन आर्थिक पिछड़ों की आजीविका का साधन हैं ; बिलकुल वैसे ही जैसे अम्बानी, अदानी, टाटा, रुइया या गोदरेज आज देश की अर्थव्यवस्था को थामे है वैसे ही ये 10% से भी कम सवर्ण गाँव की अर्थव्यवस्था को थामे हैं !!
जब आपके राष्ट्रीय नेता बिना अम्बानी, अदानी, टाटा, रुइया या गोदरेज के बिना चुनाव नहीं लड़ सकते तो क्या स्थानीय प्रत्याशी मलगुज़ारो - ठेकेदारों दाऊ लोगों से विरोध कर कर चुनाव लड़ सकते हैं ?
चलिए आप यह भी कोशिश कर ले की हम इन 90% में से कुछ को मलगुज़ार - ठेकेदार और दाऊ बना देते हैं तब भी क्या होना है ?
यह 90% आर्थिक पिछड़े हुए मतदाता उन अपनी ही जाति के मालगुज़ार - ठेकेदार और दाऊ को अगले चुनाव में अपनी दलाली करने वाला, समाज द्रोही मान कर हरा देंगे !
छत्तीसगढ़ में कर्मा ताक़तवर हुए वे हार गए, बलिराम ताक़तवर हुए वे हार गए !
हर बार अगर आप ग़रीब प्रत्याशी को टिकिट दोगे तो भी उसे मदद तो 10% लोगों की ही चाहिए होगी ?
इसीलिए जातिगत विघटन से ज़्यादा फ़ायदे मंद सौदा सम्पूर्ण राष्ट्र में आर्थिक विषमता है (उत्तर प्रदेश और बिहार में भी) और यह अब मोदी का अगला क़दम होगा !
इसकी काट मुझे नहीं लगता किसी विपक्षी के पास अभी है !!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

टार्च बेचनेवाले : श्री हरिशंकर परसाई

वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था । मैंने पूछा , '' कहाँ रहे ? और यह दाढी क्यों बढा रखी है ? '' उसने जवाब दिया , '' बाहर गया था । '' दाढीवाले सवाल का उसने जवाब यह दिया कि दाढी पर हाथ फेरने लगा । मैंने कहा , '' आज तुम टार्च नहीं बेच रहे हो ? '' उसने कहा , '' वह काम बंद कर दिया । अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है । ये ' सूरजछाप ' टार्च अब व्यर्थ मालूम होते हैं । '' मैंने कहा , '' तुम शायद संन्यास ले रहे हो । जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है , वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है । किससे दीक्षा ले आए ? '' मेरी बात से उसे पीडा हुई । उसने कहा , '' ऐसे कठोर वचन मत बोलिए । आत्मा सबकी एक है । मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर...

भारतीयता और रोमांस (आसक्त प्रेम)

प्रेम विवाह 😂 कहां है प्रेम विवाह सनातन में? कृपया बताएं... जुलाई 14, 2019 रोमांस का अंग्रेजी तर्जुमा है - A feeling of excitement and mystery of love. This is some where near to lust. The indian Love one is with liabilities, sacrifices with feeling of care & love. The word excitement and mystery has not liabilities, sacrifices with feeling of care. प्रेम का अंग्रेज़ी तर्जुमा - An intense feeling of deep affection. मैंने एक फौरी अध्यन किया भारतीय पौराणिक इतिहास का ! बड़ा अजीब लगा - समझ में नहीं आया यह है क्या ? यह बिना रोमांस की परम्परायें जीवित कैसे थी आज तक ? और आज इनके कमजोर होने और रोमांस के प्रबल होने पर भी परिवार कैसे टूट रहे हैं ? भारतीय समाज में प्रेम का अभूतपूर्व स्थान है पर रोमांस का कोई स्थान नहीं रहा ? हरण और वरण की परंपरा रही पर परिवार छोड़ कर किसी से विवाह की परंपरा नहीं रही ! हरण की हुयी स्त्री उसके परिवार की हार का सूचक थी और वरण करती हुयी स्त्री खुद अपना वर चुनती थी पर कुछ शर्तो के साथ पूरे समाज की उपस्तिथि में ! रोमांस की कुछ घटनाएं कृष्ण के पौराणिक काल में सुनने म...

सनातन का कोरोना कनेक्शन

इन पर ध्यान दें : 👇 नमस्ते छुआछूत सोला वानप्रस्थ सूतक दाह संस्कार शाकाहार समुद्र पार न करना विदेश यात्रा के बाद पूरा एक चन्द्र पक्ष गांव से बाहर रहना घर मे आने से पहले हाँथ पैर धोना बाथरूम और टॉयलेट घर के बाहर बनवाना वैदिक स्नान की विधि और इसे कब कब करने है यह परंपरा ध्यान दें, हमारे ईश्वर के स्वास्थ्य खराब होने पर उनकी परिचर्या #यह वे चीज़े हैं जो मुझे याद आ रहीं हैं। आप बुजुर्गो से पूछेंगे तो और भी चीजे आपको मिलेंगी। यह हम भूल चुके हैं क्योंकि एन्टी बायोटिक, साबुन, और सेनिटाइजर बाजार में आ गए और औद्योगिक क्रांति को  मानवीय संसाधनों की जरूरत थी। आज हमें फिर वही परम्पराए नाम बदल बदल कर याद दिलाई जा रहीं है। #सोशल_डिस्टेंसिंग #क्लींलिनेस बुजुर्गो की कम इम्युनिटी आदि आदि। वानप्रस्थ आश्रम का उद्देश्य ही यह था कि वायरस बुजुर्गो पर जल्द प्रश्रय पा जाता है, फिर मजबूत होकर जवानों पर हमला करता है, इसलिए कमजोर इम्युनिटी के लोगो को वन भेज दिया जाता था।। निष्कर्ष : आना दुनिया को वहीं है जहां से हम चले थे। यही सनातन है। यह प्रकृति का संविधान है। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज