हिन्दोस्तान की जिसे समझ है, वह जानता है कि इस देश ने अंगुलिमाल को सन्त स्वीकारा है, रावण को हम हर वर्ष जलाते हैं पर उसे प्रकांड पण्डित भी मानते है और रावण रचित शिव तांडव स्त्रोत्र का पाठ भी करते हैं पर राम भक्त विभीषण जिसे लंका का राज्य मिला उसका नाम आज भी धोखे के प्रतीक के रूप में उपयोग करते हैं, कोई अपने बच्चे का नाम विभीषण नही रखता न रावण रखता है, पर रावण के पांडित्य का सम्मान जरूर करता है।
सिद्धार्थ, अशोक जैसे नाम आपको खूब मिलेंगे, अशोक निरा हत्यारा था पर बाद में बदल गया।
गांधी का पारिवारिक जीवन बहुत बुरा था बल्कि आप कह सकते है कि गांधी पत्नी उत्पीड़क और हृदयहीन पिता थे, पर लोग उन्हें आदर्श मानते हैं।
भारतीय परंपराओं में छुप के अपराध करना (कुटिलता) स्वीकार नही है।
वह कार्य तो बिल्कुल स्वीकार्य नही जो आपकी अंतरात्मा स्वीकार न करे।
आचार्य श्रीराम शर्मा ने कहा है जो तुम्हे खुद पसंद न हो वह दूसरो के साथ न करो।
यही तो भारतीयता है, यही तो है हमारा #डीएनए
रिसर्चर्स कहते हैं कि हमारी मजबूत यादे हमारे डीएनए में पैबस्त हो जाती हैं,
हमारे पूर्वजो के गुण हम में होते ही हैं, वे झलकते हैं हमारे काम करने के तरीको में।
इन गुणों को हमारा दिमाग, हमारी जरूरते और कार्य की मांग बदलते (सप्रेस करते) हैं, पर हमारा मूल नही बदलता,
ऐसे ही भारतीयता के मूल में आदर्श हैं, प्रेम है दया है।
जरा जरा सी बात पर लंगर लगाते हिंदुस्तानी आपको दुनिया में हर जगह मिलेंगे।
दूसरो की तकलीफो को दूर करने के लिए अपने उसूलो को तोड़ता हुआ हिंदुस्तानी आपको पूरी दुनिया में मिलेगा।
#रॉबर्ट_ग्रीन के 48 नियम पढ़ कर निकले इन युवाओ के आदर्शो (पिचाई, नूयी, नाडाल) से पूछिये, कि यही रोबर्ट ग्रीन को पूरी दुनिया ने पढ़ा है पर पिचाई से लेकर नाडाल तक में ऐसा क्या है जो बड़ीअमेरिकी कम्पनियो के मालिक भारतीयों को अपनी कम्पनी सौंप रहे हैं।
इस देश में ऐसा क्या है जो स्टीव जॉब्स और जूलिया रोबर्ट को आकर्षित करता है?
क्या कारण है कि कनाडा पर पंजाबीयो का कब्जा सा हो गया है और वह भी प्रेम से, बिना किसी झगड़े और झंझट के और फिर भी पंजाबी पंजाब को ही अपना देश मानते है?
यही वह चीजे हैं जो हमे सोचने को मजबूर करती हैं की हम हैं क्या?
सोचिये - #विभीषण एक भ्रातद्रोही ने ईश्वर #राम की मदद की पर वह हमारे लिए तजात्य है?
वाल्मीकि (जो जघन्य अपराधी थे) ने एक किताब लिखी और पूज्य हो गए?
पृथ्वीराज हार कर, मर कर भी अमर है और विजेता को कोई नही पूछता।
यह रोबर्ट ग्रीन और तुलसीदास का फर्क है, रॉबर्ट जंगल के कानून को परिष्कृत करने की जुगत में हैं और तुलसीदास जंगल को समाज बनाने के लिए आदर्शो को महिमामण्डित कर रहे हैं,
वहीं गीता में कृष्ण कहते है "वीरम भोग्ये वसुंधरा"
और फिर बात आती है "सबै भूमि गोपाल की"
अंग्रेज़ कहते हैं, इतना कंफ्यूशन उफ्फ ?
पर यह भारतीय समझता है कि इन दोनों विरोधाभासों के पीछे का उद्देश्य स्वच्छ समाज बनाने की कोशिश है।
पश्चिम का यह समझना असम्भव है क्योंकि उनके लिए आदर्श, प्रेम, सहकार और परिवार मायने नहीं रखते उनके लिए #जीत ताकत और सत्ता मायने रखती है।
वर्तमान राजनीति की बात करें तो यही फर्क है, वामपंथ और दक्षिण पन्थ की सोच में,
वामपंथी प्रश्नों से आपको उद्वेलित करता है और दक्षिणपंथ आपको आदर्शो की बात करता है।
पश्चिम आपको अपने अधिकारो के प्रति जाग्रत करता है, पर कर्तव्य भुला देता है, जिससे गुस्सा, घृणा बंदूके, ताकत का गलत उपयोग समाज में प्रभावी हो जाते हैं।
जबकि भारत सिखाता है #कर्तव्यों को,
पूरा समाज अगर अपने कर्तव्य करता चले तो अधिकार मांगने की जरूरत किसको है?
हमारे समाज में भूख प्यास और ठंड से आपको बचाने पूरा देश खड़ा है, पर पश्चिम में लोग अपने बाप के साथ भी नहीं खड़े होते।
वे पैसे के साथ खड़े होते हैं, ताकत के साथ खड़े होते है, भाई, बहन, मां, बाप और मित्रो के साथ नहीं।
यही कुछ है जो हज़ारो सालो से हम में नही बदला है और इसीलिए हम आज भी हम हैं 🙏
#अलख_निरंजन
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज
वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था । मैंने पूछा , '' कहाँ रहे ? और यह दाढी क्यों बढा रखी है ? '' उसने जवाब दिया , '' बाहर गया था । '' दाढीवाले सवाल का उसने जवाब यह दिया कि दाढी पर हाथ फेरने लगा । मैंने कहा , '' आज तुम टार्च नहीं बेच रहे हो ? '' उसने कहा , '' वह काम बंद कर दिया । अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है । ये ' सूरजछाप ' टार्च अब व्यर्थ मालूम होते हैं । '' मैंने कहा , '' तुम शायद संन्यास ले रहे हो । जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है , वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है । किससे दीक्षा ले आए ? '' मेरी बात से उसे पीडा हुई । उसने कहा , '' ऐसे कठोर वचन मत बोलिए । आत्मा सबकी एक है । मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर...
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