सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मीमांसा सनातन संविधान की...

कभी कभी लगता है जीवन बड़ा धूर्त है और हम भोले, जैसा जीवन होता है वैसा हम उसे देख नही पाते, और जो वह समझाना चाहता है उसे हम नज़र अंदाज़ कर देते हैं।
रोज़ वही प्रश्न होते हैं और वही आश्वासन ।
रोज़ सुबह नई आशाएं जन्म लेती है और रात में वीरगति को प्राप्त होती है और अगले दिन फिर वही आशाएँ।
यह क्रम है और यह इसलिए नही टूटता क्योंकि हम कड़े प्रश्न करने से बचते हैं, हम भ्रमित रहते हैं, हम आसक्त होते हैं हम लालची होते हैं और सबसे ज्यादा आशान्वित भी।
कभी हम शुतुरमुर्ग हो जाते हैं तो कहीं चीते की तरह आक्रामक पर हम व्यवस्थित और निष्पक्ष नही होते।
हम भावुक हो सकते हैं हम दयावान हो सकते हैं हम निर्दयी हो सकते हैं पर निर्विकार नहीं।
हम प्रेम कर सकते हैं नफरत कर सकते है पर एक ही व्यक्ति से एक ही समय मे हम नफरत और प्रेम एक साथ नही कर सकते।
2 ही तरह के विरोधाभासी लोग हमने सुने हैं,
दिलेर और भीरु
गुस्से वाला और शांत
दिलदार और कंजूस
हंसमुख और गुस्सेवाला
पर क्या आपने कभी सुना कि ये दोनों विशेषताएं एक साथ किसी व्यक्ति में हों।
ऐसी 100 विशेषताएं है पर क्या आपने कोई ऐसा व्यक्ति देखा है, जो एक समय में यह दोनों विरोधाभासी भाव जी सके, अगर कोई ऐसा व्यक्ति हुआ तो वह अप्रतिम होगा परुषोत्तम होगा क्योंकि वह भावनाओ से नही चलता वह परिस्तिथि और आदर्शो के हिसाब से चलता है।
यही आध्यात्म की पहली सीढ़ी है और जीवन के अमूल्य और खुशहाल होने में सिर्फ इतना ही फासला है और इतना ही फासला है बुद्धू से बुद्ध होने में।
बुद्ध ने कहा था "पाप से घृणा करो, पापी से नही" इस एक वाक्य का मतलब है कि आप उस व्यक्ति से नफरत नही कर रहे उसके कर्म के आप विरोधी हो और अगर आप ऐसी व्यवस्था पैदा कर सको की बिना दंड के आप उसे सुधार सको जिम्मेदार बना सको तो आप अपने आपको बुद्धत्व के नजदीक पाओगे।
यही सनातन का मूल है, सनातन का ही क्यों यह हर धर्म का मूल है,
कोई भी धर्म हमे किसी जीव, व्यक्ति या वस्तु से घृणा करना नही सिखाता, हर धर्म हमे गलत कर्मो से बचने की सलाह देता है।
पर इन सभी धर्मों का उलट है हमारा संविधान (चाहे वह किसी भी देश का हो)।
हर धर्म मे प्रायश्चित का प्रावधान है हर धर्म मे अप्रत्यक्ष दंड का या पुरुस्कार का प्रावधान है,पर संविधान प्रायश्चित नही मानता बल्कि इसके उलट संविधान में प्रत्यक्ष दंड का प्रावधान है जो किसी धर्म मे नही है,
इस प्रत्यक्ष दंड के प्रावधान के बावजूद अपराध रुक नही रहे।
धर्म कहता है, गरीब का, निसंतान का या अनाथ का पैसा खाना पाप है, गौ हत्या या शूकर स्पर्श पाप है, शराब हराम है, और हम इन हर धार्मिक बातो को मानते है, इन बातों की रक्षा के लिए लड़ जाते हैं, पर संविधान में लिखी बातों को हम न सिर्फ तोड़ते हैं बल्कि अपने मित्रों के बीच उन अपराधों का महिमा मण्डन करता है।
कोई ललित मोदी बन जाता कोई विजय माल्या कोई दाऊद हो जाता है कोई कलमाड़ी।
फर्क यही है कि हमे संविधान पापी से घृणा करना सिखाता है और हम सीखते है कि जो पकड़ा जाए वह पापी।
मतलब दुनिया का हर संविधान हमे बुद्ध से बुद्धू बनाने की तरफ ले जाने अग्रसर है।
धर्म हमे सिखाता है कि श्रेष्ठ बनो, धर्म करो ऊपर वाला सब देख रहा है और मरने के बाद सज़ा देगा।
संविधान कहता है, श्रेष्ठ बनो या न बनो पर गुनाह न करो पुलिस वाला देख रहा है, जज बैठा है सज़ा देगा।
और हम सीखते हैं कि कानून की ऐसी की तैसी, आदमी मार दो हम पुलिस को प्रसाद चढ़ा देंगे, जज को बेलपत्री पहुंचा देंगे, सब ठीक हो जाएगा।
पर अगर आप उसी व्यक्ति को कहो कि गाय मार दो तो वह आपको चमाट जड़ देगा, क्योंकि इस बात से उसका बुद्धत्व जाग जाएगा।
और किसी से अगर गलती से गाय मर जाये तो वह संवेदना व्यक्त करेगा हत्यारे को ठाठस बंधायेगा, अपराधी से घृणा तो नही ही करेगा।
यही है मूल बुद्ध के बुद्धत्व का...
क्रमशः
#मीमांसा_सनातन_की

#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारतीयता और रोमांस (आसक्त प्रेम)

प्रेम विवाह 😂 कहां है प्रेम विवाह सनातन में? कृपया बताएं... जुलाई 14, 2019 रोमांस का अंग्रेजी तर्जुमा है - A feeling of excitement and mystery of love. This is some where near to lust. The indian Love one is with liabilities, sacrifices with feeling of care & love. The word excitement and mystery has not liabilities, sacrifices with feeling of care. प्रेम का अंग्रेज़ी तर्जुमा - An intense feeling of deep affection. मैंने एक फौरी अध्यन किया भारतीय पौराणिक इतिहास का ! बड़ा अजीब लगा - समझ में नहीं आया यह है क्या ? यह बिना रोमांस की परम्परायें जीवित कैसे थी आज तक ? और आज इनके कमजोर होने और रोमांस के प्रबल होने पर भी परिवार कैसे टूट रहे हैं ? भारतीय समाज में प्रेम का अभूतपूर्व स्थान है पर रोमांस का कोई स्थान नहीं रहा ? हरण और वरण की परंपरा रही पर परिवार छोड़ कर किसी से विवाह की परंपरा नहीं रही ! हरण की हुयी स्त्री उसके परिवार की हार का सूचक थी और वरण करती हुयी स्त्री खुद अपना वर चुनती थी पर कुछ शर्तो के साथ पूरे समाज की उपस्तिथि में ! रोमांस की कुछ घटनाएं कृष्ण के पौराणिक काल में सुनने म

टार्च बेचनेवाले : श्री हरिशंकर परसाई

वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था । मैंने पूछा , '' कहाँ रहे ? और यह दाढी क्यों बढा रखी है ? '' उसने जवाब दिया , '' बाहर गया था । '' दाढीवाले सवाल का उसने जवाब यह दिया कि दाढी पर हाथ फेरने लगा । मैंने कहा , '' आज तुम टार्च नहीं बेच रहे हो ? '' उसने कहा , '' वह काम बंद कर दिया । अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है । ये ' सूरजछाप ' टार्च अब व्यर्थ मालूम होते हैं । '' मैंने कहा , '' तुम शायद संन्यास ले रहे हो । जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है , वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है । किससे दीक्षा ले आए ? '' मेरी बात से उसे पीडा हुई । उसने कहा , '' ऐसे कठोर वचन मत बोलिए । आत्मा सबकी एक है । मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर

सनातन का कोरोना कनेक्शन

इन पर ध्यान दें : 👇 नमस्ते छुआछूत सोला वानप्रस्थ सूतक दाह संस्कार शाकाहार समुद्र पार न करना विदेश यात्रा के बाद पूरा एक चन्द्र पक्ष गांव से बाहर रहना घर मे आने से पहले हाँथ पैर धोना बाथरूम और टॉयलेट घर के बाहर बनवाना वैदिक स्नान की विधि और इसे कब कब करने है यह परंपरा ध्यान दें, हमारे ईश्वर के स्वास्थ्य खराब होने पर उनकी परिचर्या #यह वे चीज़े हैं जो मुझे याद आ रहीं हैं। आप बुजुर्गो से पूछेंगे तो और भी चीजे आपको मिलेंगी। यह हम भूल चुके हैं क्योंकि एन्टी बायोटिक, साबुन, और सेनिटाइजर बाजार में आ गए और औद्योगिक क्रांति को  मानवीय संसाधनों की जरूरत थी। आज हमें फिर वही परम्पराए नाम बदल बदल कर याद दिलाई जा रहीं है। #सोशल_डिस्टेंसिंग #क्लींलिनेस बुजुर्गो की कम इम्युनिटी आदि आदि। वानप्रस्थ आश्रम का उद्देश्य ही यह था कि वायरस बुजुर्गो पर जल्द प्रश्रय पा जाता है, फिर मजबूत होकर जवानों पर हमला करता है, इसलिए कमजोर इम्युनिटी के लोगो को वन भेज दिया जाता था।। निष्कर्ष : आना दुनिया को वहीं है जहां से हम चले थे। यही सनातन है। यह प्रकृति का संविधान है। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज