क्या कभी हम अपने गिरहबान में झांकेंगे?
सनातन : धर्म की व्याख्या है, धार्यति इति धर्म: मतलब जो धारण किया जाए वह धर्म।
तो हम धारण करते है, आचार, विचार और व्यवहार।
हम उसे बनाते हैं जीवन जीने का तरीका।
और इस तरीको को जितना व्यवस्थित, व्यवहारिक, वैज्ञानिक और जनोन्मुखी सनातन धर्म ने बनाया, उतना किसी धर्म ने नहीं बनाया, जितना पुराना यह धर्म है उतना कोई नहीं।
लोगों ने #रामायण पढ़ी #गीता पढ़ी, यह कुछ सौ या कुछ हजार साल पहले लिखी गयी।
आप वेद पढ़िए, आप उपनिषद पढ़िए।
आपको समझ आएगा कि एक व्यवस्थित समाज, दोषमुक्त समाज इन्ही वैदिक नियमो से निकल सकता है।
इन नियमो से जीवन इतना सरल हो सकता है कि सामान्य व्यक्ति सोच भी नहीं सकता।
इन नियमो में इतने फिल्टर हैं कि अपराध की हिम्मत जुटाना ही मुश्किल हो जाता है।
आप सोचें, अधिकारी के द्वारा किये गए गबन के लिए जो सजा होगी उससे 8 गुनी कम सज़ा सामान्य आदमी को होगी।
यह अद्भुत नियम है।
जो सबसे आसानी से गबन कर सके उसे सबसे कड़ी सजा और जिसके पास गबन करने के अवसर कम उसे सबसे कम सज़ा।
जीवन के लिए जरूरी चीजों को नष्ट करने, समाजानुकूल कार्य न करने की सज़ा, समाज द्वारा तिरस्कार और यमलोक में मिलने वाली तेल की कढ़ाही।
यही डर इतने कठिन थे कि अपराध करने की हिम्मत ही नहीं जुटती थी।
विज्ञान : सनातन में यह ज्ञान भी अध्भुत है, सूर्य से पृथ्वी की दूरी हनुमान चालीसा से जान लीजिए और सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण का समय जानने के लिए #नासा से संपर्क करने की जरूरत नहीं।
सिर्फ पंचांग उठा ले और 2000 साल बाद पड़ने वाले ग्रहण की तिथि जान लें।
शिव : CERN लेबोरेट्री जिनेवा अपनी लॉबी में पूरी दुनिया के ईश्वर छोड़ नटराज की प्रतिमा रख लेती है और कहती है कॉस्मिक डांस जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई, जिसे हम जानने की कोशिश कर रहे हैं वह वही तांडव नृत्य ही है, जो नटराज ने किया था और इसी लिए हम वेदों के हिसाब इसे और अच्छे से समझना चाहते हैं।
ॐ : नासा एक दिन यकायक जागता है और बताता है कि सूर्य से निकलने वाली ध्वनि #ॐ ही है, यह ब्रह्मांड का स्वर है, जिसे हम हज़ारो साल से उच्चारित कर रहे हैं। 😂
अंगकोर वॉट और मोहन जोदड़ो की सभ्यता का विज्ञान हो या मन्त्र शक्ति की बात, विज्ञान इनको समझने को कोशिश में है।
ध्वनि तरंगों का उपयोग सैकड़ो कामो में हो रहा है।
भोजन : इतनी विविधता, इतने मसाले, इतने स्वाद और गंध किस देश मे हैं, जरा सोच कर देखें।
वर्ण व्यवस्था : इतनी व्यवस्थित वर्ण व्यवस्था किसी देश या धर्म मे नहीं है।
जन्म से रोज़गार/कला शिक्षा और कहीं भी नही है।
सोचें, 5 वर्ष की उम्र से रोजगारउन्मुख शिक्षा और 20 साल की उम्र के बाद रोजगार की शिक्षा क्या बेहतर है?
गोत्र : व्यवस्थित योग्यताओ को जीन्स के हिसाब से बचा के रखना, अदुभुत नहीं है क्या?
हमने तो आंखों के रंग के हिसाब से, बालो के रंग के हिसाब से और अंगविन्यास के हिसाब से शारीरिक खराबियों को डीएनए के टेस्ट के बिना ही खत्म कर दिया।
न्याय : सनातन धर्म ने सामाजिक दबाव और अद्भुत दंड परंपरा से यह तय दिया कि घर और समाज ही उनके आश्रितों के लिए जवाब देह होंगे और जितना प्रभुत्वशाली व्यक्ति अपराध करेगा उसे उतना बड़ा दंड प्राप्त होगा।
सनातन ने पर्यावरण की सुरक्षा भी तय की, सर्प, देव हैं और गौ, माता, पीपल, नीम, बरगद जैसे 7 वृक्ष देव तुल्य हैं।
सिंह देवी और श्वान भैरव का साथी।
इससे बेहतर पर्यावरण रक्षा के नियम क्या हो सकते हैं?
घर मे काम करने आने वाली सामाजिक न्याय : नाउन से लेकर वस्त्र प्रक्षालन करने आने वाला धोबी भी हमारे लिए, काका, मौसी और बुआ होते थे।
इससे बेहतर सामाजिक न्याय क्या हो सकता है।
भिक्षुक ब्राह्मण, दंडी स्वामी राजा को गलत काम करने से रोक सकते थे।
इससे ज्यादा ताकत का विकेंद्रीय करन सम्भव ही नहीं।
वसुदैव कुटुम्बकम, सबै भूमि गोपाल की, यह कहावते पश्चिम को समझ मे नहीं आती पर यह अद्भुत हैं।
सबको अपना लेना अपना मानना सामाजिक दोषों को कम करता है।
कर्म : जैसे कर्म होंगे वैसा फल मिलेगा यह भारतीय विचार अब अमेरिका से #कर्मा या कार्मिक थ्योरी के नाम से वापस आ रहा है। 😂
क्रमश:
नोट- विचारिये, क्या अब समय नहीं आ गया है कि हम सनातन धर्म, सनातन शासन व्यवस्था, धार्मिक कानून और इसकी परंपरा को समझने और पुनः स्थापित करने की तरफ ध्यान दें 🙏
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज
The narrative of entrepreneurial success has long been dominated by the image of the solitary innovator, the corporate titan forging an empire from sheer will and ingenuity. This "individual entrepreneurship" model, while undeniably powerful, has also contributed to a landscape of economic disparity and environmental strain. However, a quiet revolution is underway, a resurgence of collective entrepreneurship, embodied by cooperative models, that offers a compelling alternative for the 21st century. We've become accustomed to celebrating the titans of industry, the visionaries who build vast corporations, generating wealth and, ostensibly, jobs. Governments and systems often glorify these figures, their achievements held up as the pinnacle of economic success. Yet, a closer examination reveals a complex reality. The industrialization that fueled the rise of corporate entrepreneurship has also created a system where a select few can amass immense wealth by harne...
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