सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बेहतर धर्म और बेहतर समाज 🙏


धर्म या ईश्वर की अवधारणा मानव समाज के लिए उतनी ही जरूरी है जितनी उसके लिए हवा।
अपनी सारी उपलब्धियां और हार के लिए उसे कोई तो चाहिए जिसको वह इसका कारक बताये।
खुद की गलतियों को स्वीकारना अत्यंत कठिन काम है, और लाभ के माध्यम को, लाभ का श्रेय देना उससे भी कठिन काम है, तो मानव ने एक प्रतीक, ईश्वर के रूप में चुन लिया।
जो आपकी गलतियों, हार और हानि का जिम्मेदार है, आपके लाभ के हिस्सेदार को श्रेय देने से आपको बचाता है।
यह वही है जो सामाजिक व्यवस्था में आपको असामाजिक होने से रोकता है क्योंकि वह सर्व व्यापी है सब जानता, देखता और समझता है, उसकी लाठी में आवाज नही होती और वह मृत्यु के बाद भी सजा देता है।
मतलब वह ऐसा पुलिसवाला है जज है और जल्लाद है जो 24 घंटे आपके साथ रहता है और आपको व आपकी अंतरात्मा को अपराध करने से रोकता है।
वही वह एक ऐसा पुरुस्कार देने वाला भी है जो 24 घंटे सातो दिन आपके नेक कामो का हिसाब रखता है और समय समय पर आपको इसके इनाम देता है या विपत्तियों से बचाता है।
यह तो हुई सामान्य ईश्वर की अवधारणा, अब इसमें एक विशेष ईश्वर और एक अईश्वरवाद (नास्तिक) भी आ गया।
विशेष ईश्वर वाद कहता है कि जो मेरी व्यवस्था, मेरी पद्धति और मेरी बाते न माने उसको जीने का हक़ नही है।
मैने जो कहा वही अंतिम सत्य है।।
और यहां से शुरू हुआ समाज मे न दिखने वाले ईश्वर के लिए की जाने वाली हिंसा का दौर ।
तीसरा वाद आता है नास्तिक वाद जो दुनिया के हर संविधान का मूल है यह कहता है कि जो करना हो करो, अगर पकड़े गए तो पुलिस, जेल और जज हैं।
वे निर्णय करेंगे।
तुमने जो किया है या नहीं किया है वह दिखाओ और सम्मान पाओ, पर अच्छा करने का लाभ और पुरुस्कार पाने के लिए तुम्हे अप्लाई करना होगा पर इसके बाद सर्वश्रेष्ठ को सम्मान यहीं मिलेगा परलोक में नहीं।
झूठ बोल के सम्मान पाया जा सकता है, छुप के अपराध किया जा सकता है पर अगर पकड़े गए तो सजा की संभावना है पर 100 अपराधी छूट जाए पर किसी बेगुनाह को सज़ा न हो।।
बात सही है, प्रत्यक्ष दंड के प्रावधान में आत्मग्लानि और परलोक का डर नही है और इस लोक को मैनेज करने की गुंजाइश है।
हम उस सामाजिक दौर में जी रहे हैं जिसमे तीसरी और दूसरी अवधारणा को मानने वाले असंख्य है पर पहली अवधारणा को सोचने में भी हमे डर लगता है कमतरी महसूस होती है।
हम बचते है पहली ईश्वरीय अवधारणा को समझने, विचारने या उसे उपयोग करने में।
यही समस्या है इस चिर सनातन धर्म और ईश्वर को मानने वाले इस देश की 🙏
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

टार्च बेचनेवाले : श्री हरिशंकर परसाई

वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था । मैंने पूछा , '' कहाँ रहे ? और यह दाढी क्यों बढा रखी है ? '' उसने जवाब दिया , '' बाहर गया था । '' दाढीवाले सवाल का उसने जवाब यह दिया कि दाढी पर हाथ फेरने लगा । मैंने कहा , '' आज तुम टार्च नहीं बेच रहे हो ? '' उसने कहा , '' वह काम बंद कर दिया । अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है । ये ' सूरजछाप ' टार्च अब व्यर्थ मालूम होते हैं । '' मैंने कहा , '' तुम शायद संन्यास ले रहे हो । जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है , वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है । किससे दीक्षा ले आए ? '' मेरी बात से उसे पीडा हुई । उसने कहा , '' ऐसे कठोर वचन मत बोलिए । आत्मा सबकी एक है । मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर

भारतीयता और रोमांस (आसक्त प्रेम)

प्रेम विवाह 😂 कहां है प्रेम विवाह सनातन में? कृपया बताएं... जुलाई 14, 2019 रोमांस का अंग्रेजी तर्जुमा है - A feeling of excitement and mystery of love. This is some where near to lust. The indian Love one is with liabilities, sacrifices with feeling of care & love. The word excitement and mystery has not liabilities, sacrifices with feeling of care. प्रेम का अंग्रेज़ी तर्जुमा - An intense feeling of deep affection. मैंने एक फौरी अध्यन किया भारतीय पौराणिक इतिहास का ! बड़ा अजीब लगा - समझ में नहीं आया यह है क्या ? यह बिना रोमांस की परम्परायें जीवित कैसे थी आज तक ? और आज इनके कमजोर होने और रोमांस के प्रबल होने पर भी परिवार कैसे टूट रहे हैं ? भारतीय समाज में प्रेम का अभूतपूर्व स्थान है पर रोमांस का कोई स्थान नहीं रहा ? हरण और वरण की परंपरा रही पर परिवार छोड़ कर किसी से विवाह की परंपरा नहीं रही ! हरण की हुयी स्त्री उसके परिवार की हार का सूचक थी और वरण करती हुयी स्त्री खुद अपना वर चुनती थी पर कुछ शर्तो के साथ पूरे समाज की उपस्तिथि में ! रोमांस की कुछ घटनाएं कृष्ण के पौराणिक काल में सुनने म

सनातन का कोरोना कनेक्शन

इन पर ध्यान दें : 👇 नमस्ते छुआछूत सोला वानप्रस्थ सूतक दाह संस्कार शाकाहार समुद्र पार न करना विदेश यात्रा के बाद पूरा एक चन्द्र पक्ष गांव से बाहर रहना घर मे आने से पहले हाँथ पैर धोना बाथरूम और टॉयलेट घर के बाहर बनवाना वैदिक स्नान की विधि और इसे कब कब करने है यह परंपरा ध्यान दें, हमारे ईश्वर के स्वास्थ्य खराब होने पर उनकी परिचर्या #यह वे चीज़े हैं जो मुझे याद आ रहीं हैं। आप बुजुर्गो से पूछेंगे तो और भी चीजे आपको मिलेंगी। यह हम भूल चुके हैं क्योंकि एन्टी बायोटिक, साबुन, और सेनिटाइजर बाजार में आ गए और औद्योगिक क्रांति को  मानवीय संसाधनों की जरूरत थी। आज हमें फिर वही परम्पराए नाम बदल बदल कर याद दिलाई जा रहीं है। #सोशल_डिस्टेंसिंग #क्लींलिनेस बुजुर्गो की कम इम्युनिटी आदि आदि। वानप्रस्थ आश्रम का उद्देश्य ही यह था कि वायरस बुजुर्गो पर जल्द प्रश्रय पा जाता है, फिर मजबूत होकर जवानों पर हमला करता है, इसलिए कमजोर इम्युनिटी के लोगो को वन भेज दिया जाता था।। निष्कर्ष : आना दुनिया को वहीं है जहां से हम चले थे। यही सनातन है। यह प्रकृति का संविधान है। #स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज