सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

#सतयुग_का_आग़ाज़


#सतयुग_का_आग़ाज़ 


याद करिये वह समय जब गाँव में एक व्यक्ति होता था जो धोती, खड़ाऊँ पहनता था चोटी रखता था और 7 घर भिक्षा माँगता था तब उसे भोजन नसीब होता था!

उसे महल चौबरे बनाने की अनुमति थी उसे स्वर्ण आभूषण पहनना मना था वह व्यापार नहीं कर सकता था #पर वह गाँव का #न्यायाधीश था, #नीति नियंता था वही था, जो #ज्ञान बाँटता था, वही था जो इलाज करता था, वही था जो #आविष्कारक था, वही था जो #निरामिश, #निर्वयसनी और #निष्कपट #शांत स्वभाव का था !

#बिलकुल यही व्यवस्था फिर अंगड़ाई ले रही है!

सोशल मीडिया और इंटर्नेट का ज़माना है - आज हर उस आदमी पर जनता की नज़र है जो नीति नियंता है, जो न्यायाधीश है जो अधिकारी है!

राहुल गांधी की बर्बेरी की जैकेट हो या मोदी का सूट - प्रतीक यादव की 5 करोड़ की लंबोरघिनी हो या सुप्रीम कोर्ट के विद्रोही जज से मिलने गए डी राजा ! आज जनता इन रसूखदारो पर नज़र रखे है!

मोबाइल फ़ोन से वाइरल होती कहानियों से, आधार की पहचान से, ऑनलाइन पेमेंट के लिखित सबूतों से और सोशल मीडिया के कीबोर्ड के वीरों से कौन बच सकेगा जो आने वाले समय में भ्रष्टाचार कर सकेगा!


समय वह रहा है कि नेताओ को अधिकारियों को अपने कमाए पैसे ख़र्च करने में भी नानी याद जाएगी!

राहुल के जींस और टी शर्ट के ब्राण्ड पर भी अब लोगों की नज़र रहेगी !

करोड़ों कमाए हुए अधिकारी अब #GeM से परेशान हैं और #RTI के विघ्न संतोषी उनको ताकें बैठे हैं!

आज कल के ब्राह्मणो का समय ख़राब गया है ये भी अब हमारे पूर्वजों के समान दान या तनख़्वाह पर जिएँगे!

और सबसे बड़ा पलायन होगा नेतागीरी के क्षेत्र में - लम्बी गाड़ी वाले झक्क सफ़ेद कुर्ते वाले - वसूली भाई अब नेतागीरी छोड़ दुकान चलाते नज़र आएँगे

खि खि खि …..

5-7 साल इंतेजार करे फिर मज़ा देखिए !!

खि खि खि …..


#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वैश्विक व्यवस्था को पर्यावरण संरक्षण हेतु सांस्कृतिक विकल्प

सवाल पूछने का समय: अगर हम अपने समय और समाज को ज़रा ठहरकर देखें, तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि कोई अजीब-सी दौड़ लगी है। भाग-दौड़, होड़, लाभ-हानि, सत्ता, बाजार~  यह शब्द, आज सब कुछ साधने वाले शब्द बन चुके हैं, सारे मुद्दे और बहसें गोया इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमने लगी हैं।  जब आप सवाल करते हैं कि "क्या यह वैश्विक व्यवस्था मानव समाजों, उनकी आस्थाओं, मूल्यों और सांस्कृतिक आदर्शों को नजरअंदाज करती है?", तो उसका सीधा सा उत्तर निकलेगा~ हाँ, और यह सब बड़ी सुघड़ता के साथ, बड़ी सधी नीति के साथ, लगभग अदृश्य तरीके से होता आ रहा है। अब सवाल यह नहीं रह गया कि कौन सी व्यवस्था पिछली सदी में कैसी थी, क्योंकि अब तो यह नई शक्लें ले चुकी है~ तकनीक की शक्ल में, विकास की शक्ल में, नव-मानवतावाद की शक्ल में, और कभी-कभी खुद "मानवता" के नाम का झंडा लेकर भी!  सवाल यह है कि क्या इन योजनाओं और भाषणों के बीच कहीं हमारा पर्यावरण, हमारी सांस्कृति प्राकृति और हमारी अपनी परंपराएं बची रह गई हैं? "ग्लोबल ऑर्डर" और उसकी ताकत वैश्विक शासन व्यवस्था या जिसे fancy शब्दों में "ग्लोबल ऑर्डर" क...

भारतीयता और रोमांस (आसक्त प्रेम)

प्रेम विवाह 😂 कहां है प्रेम विवाह सनातन में? कृपया बताएं... जुलाई 14, 2019 रोमांस का अंग्रेजी तर्जुमा है - A feeling of excitement and mystery of love. This is some where near to lust. The indian Love one is with liabilities, sacrifices with feeling of care & love. The word excitement and mystery has not liabilities, sacrifices with feeling of care. प्रेम का अंग्रेज़ी तर्जुमा - An intense feeling of deep affection. मैंने एक फौरी अध्यन किया भारतीय पौराणिक इतिहास का ! बड़ा अजीब लगा - समझ में नहीं आया यह है क्या ? यह बिना रोमांस की परम्परायें जीवित कैसे थी आज तक ? और आज इनके कमजोर होने और रोमांस के प्रबल होने पर भी परिवार कैसे टूट रहे हैं ? भारतीय समाज में प्रेम का अभूतपूर्व स्थान है पर रोमांस का कोई स्थान नहीं रहा ? हरण और वरण की परंपरा रही पर परिवार छोड़ कर किसी से विवाह की परंपरा नहीं रही ! हरण की हुयी स्त्री उसके परिवार की हार का सूचक थी और वरण करती हुयी स्त्री खुद अपना वर चुनती थी पर कुछ शर्तो के साथ पूरे समाज की उपस्तिथि में ! रोमांस की कुछ घटनाएं कृष्ण के पौराणिक काल में सुनने म...

उद्यमिता का पुनर्पाठ: सहकारिता और कॉरपोरेट मॉडल के बीच समय की कसौटी

(एक विश्लेषणात्मक आलेख) भारत जैसे विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश में उद्यमिता की अवधारणा आर्थिक प्रगति का प्राणतत्व मानी जाती है, परंतु आज जब हम उद्यमिता की बात करते हैं, तो वह दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े मॉडल्स के बीच सिमटकर रह जाती है: व्यक्तिगत (#कॉरपोरेट) उद्यमिता और सामूहिक (#सहकारी) उद्यमिता।  ये दोनों ही मॉडल अपने-अपने तरीके से #रोजगार सृजन, संसाधन आवंटन और सामाजिक उन्नयन में भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनके प्रभाव, लक्ष्य और सामाजिक स्वीकार्यता में जमीन-आसमान का अंतर है।  आइए, इन दोनों के बीच के विरोध, लाभ और भविष्य की संभावनाओं को समझें।कॉरपोरेट #उद्यमिता: पूंजी का #पिरामिड और सीमाएं-  औद्योगिक क्रांति के बाद से कॉरपोरेट उद्यमिता ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनाई है।  यह मॉडल पूंजी, प्रौद्योगिकी और पैमाने की अर्थव्यवस्था पर टिका है।  भारत में भी 1993 के उदारीकरण के बाद कॉरपोरेट क्षेत्र ने अभूतपूर्व विकास किया।  आज देश के सबसे धनी व्यक्तियों की सूची में कॉरपोरेट घरानों के मालिक शीर्ष पर हैं, और सरकारें भी इन्हें #GDP वृद्धि, #टैक्स राजस्व ...