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छुट्टन की पिनक

#छुट्टन_गुरु आज मूड में थे, बनारसी पेड़ा खाए थे तो दिमाग के सारे रिसेप्टर चैतन्य थे....

#लल्लन_महाराज ने झेला यह निम्न भाषण 😂

भारतीय मध्यम वर्गीय #मानसिकता के अनुसार, लोग 10 रुपए बचाने के चक्कर में बाजार का चक्कर लगाने पैदल निकल पड़ते थे, पर अब घर से नहीं निकलना चाहते।
अब मानसिकता बदली है, वे कहते है महंगा तो है पर 200 का कुछ और खरीद लो, तो शिपिंग फ्री हो जायेगी और रेट ठीक हो जायेगा, यह मानसिक परिवर्तित हमे गर्त में ले जा रहा है। 😂😂😂
ऑनलाइन कंपनियों ने पिछले 15 सालो में इतनी मानसिकता तो बदली ही है।।
पहले हम विदेशियों की #डंपिंग पॉलिसी का विरोध करते थे।
अब #विदेशी #कंपनियां आपके घर को डंपिंग गोदाम बना रहीं हैं।
पहले राष्ट्र #यूएनओ और विश्व बैंक के लालच में था,
अब हम पैसे के लालच में हैं।
आप जितनी दूर से सामान मंगाएंगे उतना पर्यावरण 🤨खराब होगा, जितनी पैकेजिंग करेंगे उतना पर्यावरण दूषित होगा।
उत्पादन हेतु बड़े कारखाने लगवाएंगे तो पर्यावरण दूषित होगा।
लालच, खरीददारी बढ़ाता है और आपकी सेविंग कम करता है।
अब पैकेजिंग और ब्रांडिंग नहीं होगी तो टैक्स कहां से आएगा?
सरकारें कैसे चलेंगी?
और लालच या गर्व का भाव न होगा तो प्रोडक्ट कैसे बिकेगा?
यही कर कर के अमेरिका के लोगो की सेविंग्स नही बची वे आज कर्जदार हैं।
अमेरिका सोशल सिक्योरिटी की सुविधाएं बंद करना चाहता है।।😆😆😆
पृथ्वी चीख रही है, अस्पताल खचाखच भरे हैं।
पानी के लिए युद्ध की संभावना है,
पृथ्वी का पानी खत्म हो रहा है?
पर पानी जा कहां रहा है।
अगर पानी खत्म होने की चीज है तो 1960 से #DavidLatimer  के terrarium में #पर्यावरण कैसे जिंदा है?

यह प्रयोग सिद्ध करता है कि वातावरण ही हमे जिंदा रखता है यानी प्रकृति ही हमारी मां है।

#सनातन भी यही कहता है,
सनातन कहता है कि ईश्वर ने पहले पृथ्वी बनाई फिर मनु को जन्म दिया और कहा  कि यह प्रकृति तुम्हारी मां है।
हमने मान लिया,
हम औषधियों से निवेदन करते थे कि हमे फलाने रोग में तुम्हारी आवश्यकता है हम फलाने दिन फलाने मुहूर्त में तुम्हे अपने साथ ले जायेंगे, तुम हमे स्वास्थ्य दो।

गेंहू काटने के पहले पूजन आह्वाहन होता था।
आज वैज्ञानिक कहते हैं पौधे सुन सकते है, और पौधे कीट पतंगों से संवाद भी करते हैं।

खेत काटते समय भी हम ध्यान रखते थे, पहली मुट्ठी खेत की, फिर पशुओं का भोज्य...
कहावते जिंदा हैं पर हम #ब्रह्मिक से #अब्राहमिक हो गए।

बहुत से धर्म कहते हैं कि ईश्वर ने पहले मनुष्य बनाया फिर प्रकृति बनाई और आदम से कहा कि मैंने यह तुम्हारे उपभोग के लिए बनाई है।।
आदम उपभोगी है।।
मनु मातृभक्त है।।
बस यही फर्क है, उपभोग की मानसिकता और वासुदेव कुटुंबकम की सोच में।।
प्रकृति बचानी है तो सोच बदलो ।।
नही बदलोगे तो पृथ्वी तुम्हे बदल देगी।।

पर बात तो David Latimer की हो रही थी, जब कांच की गेंद में 60 साल पानी खत्म नहीं हुआ तो हमारे वातावरण का पानी कैसे खत्म होगा?

जैसे कांच की गेंद के भीतर का वातावरण बाहर के आवरण से अलग है, वैसे ही ओजोन लेयर भी पृथ्वी को अंतरिक्ष के वातावरण से अलग करती है।

फिर पानी कम कैसे हो रहा है?

आउटर स्पेस में पर्यटन स्थल बनाने वाले कही, हमारे पहाड़ों के जैसी गंद वहां भी तो नहीं फैला रहे?

पर्यावरण बचाना है, तो औद्योगिकरण कम करना ही होगा औद्योगिकरण कम हुआ तो राजस्व कहां से आएगा?

यही पेंच कोरोना रीसेट में सुलझ जाना चाहिए था पर सुलझा नहीं।

भारत सरकार ने कुछ किया है और बहुत कुछ वह करने वाली है। MYogiAdityanath  की #ODOP हो या Narendra Modi  का #मेक_इन_इंडिया।
या जैन समाज के बुनकर या गौ शालाएं, या शंकराचार्य एवम अखाड़ों के कार्यक्रम।

यह सभी पर्यावरण के हित में कार्य करने को बाध्य हैं।

स्वदेशी के पैरोकार भी सनातन के संत ही हैं।

आप द्वैत में खोजो, अद्वैत में खोजो, चाहे जिस धर्म, पंथ और संप्रदाय में खोजो अगर वह भारतीय मूल का है तो वह पर्यावरण प्रेमी धर्म ही होगा।।

और जो गंभीर होगा वह सनातन, स्वदेशी, स्वावलंबन और भारत भूमि की महत्ता समझेगा ही...

शेष फिर कभी

#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज







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