व्यक्ति पूजा, दलगत सोच ,लिंगभेद, जातिवाद, रंग भेद और धर्म से ऊपर उठकर लिखना या काम करना आपको त्वरित विवादित कर सकता है या हो सकता है आपको पूर्णतः अनदेखा कर दिया जाये !!
पर जब तक आप चीज़ो से ऊपर उठकर नहीं सोचेंगे या कार्य करेंगे, आप सत्य मार्गी कभी नहीं हो सकते !
इसे ही ओशो ने साक्षी भाव कहा है और मैं इसे "दिमाग पर हथौड़ा मारना" कहता हूँ !
निर्लिप्त भाव से जीना और कार्य करना व्यक्ति को ज्यादा समय तक मानस स्मृति में जीवित रखता है !
आज समाज में ३ सोचें काम कर रही है :
१- हम किसी से कम नहीं !
२- जो होगा निपट लेंगे !
३- पैसा है तो सब कुछ है !
इंटरनेट ने ज्ञान को सबके लिए सुलभ कर दिया - मानव मूल्य और संस्कृति गौड़ हो गए - ईश्वर का सम्मान सिर्फ पैसा प्राप्ति के लिए होने लगा , नैतिक, आर्थिक अपराधों का प्रायश्चित अब इश्वर के सामने न होकर - पुलिस और कचहरी को दिग्भ्रमित करने और खरीदने में होने लगा !
अप्रत्यक्ष दंड सहिंता का भय ख़त्म हो गया प्रत्यक्ष दंड सहित (भारत का क़ानून ) को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ लेने से अपराधियों में जो आत्म विश्वास बढ़ा - उसके कारण अपराध बढे !
अनैतिक लोग शासक हुए ; और जो आज भी ईश्वरीय न्याय पर विश्वास करते हैं वे शोषित हो गए !!
क्या यही भारत है ?
नहीं ; ऐसा नहीं है - ऐसा हो ही नहीं सकता !
व्यर्थ धन प्राप्ति,व्यर्थ अभिमान और सुख सुविधाओं के लिए हम जी रहे हैं - "यहाँ हम कहना अनुचित है क्योंकि हम शब्द अब समाप्ति की और अग्रसर है और बचा है सिर्फ मैं "
मैं के बाद मेरा आता है फिर कहीं अपना और अंत में हमारा !
समाज और शासन इसी तरह "मैं" शब्द से चलाय मान है ; जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए ; होना चाहिए तो सिर्फ हमारा !
और इसे उलटे क्रम में होना चाहिए - हमारा - फिर अपना - फिर मेरा- फिर मैं !
आशय यह है की पहले मेरी धरती (पृथ्वी) फिर मेरा देश फिर प्रदेश और अंत में मैं !
जरा सोच कर देखें - क्या इससे पर्यावरण, वैश्विक आतंकवाद, वैश्विक आर्थिक असमानताओ में कुछ सुधार संभव है ?
हम २५ सौ हज़ार सालों के बने नियम तोड़ रहे हैं - पिछले ५० सालों में, जो हमने करना चाहा या यूँ कहें की जो धन ने करवाना चाहा हमने किया, सारे नियम कायदे धन के लिए तोड़ दिए !
बांध बनाये, हथियार बनाये, कल कारखाने बनाये, एटम बम भी बनाये और सबसे ज्यादा कुछ बनाया तो खुद को "मूर्ख" बनाया, मूर्ख बनाया समाज को, धर्म को और ईश्वर को और यहाँ तक कि प्रकृति को भी !!
प्रकृति अब हमें सता रही है ; सुनामी आती है ; केदारनाथ जैसी घटना होती है और तो और अप्रैल में ओले बरसते हैं !
पुरानी मान्यताएं तोड़ी जा रही है ; नयी और लालच से परिपूर्ण मान्यताएं गढ़ी जा रही हैं !
इस परम्पराओं के विखंडन का दोष सिर्फ सत्ता को जाता है !!
सत्ता ही है जो सोच, जीवन मूल्य और जीवन जीने की पद्धति को बदलती है !!
पारिवारिक मूल्यों का इस ५० सालों में सिर्फ पतन ही हुआ है !!
हार्वर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड में सिर्फ विजयी होना ही सिखाया जाता है ; और जंगल भी हमें यही सिखाता है !
और इसी जगली आचरण को सीखने वालो से, क्या हम मानवीयता की आशा कर सकते हैं !
याद करिये 3 Idiots का बोमन ईरानी का डायलॉग जिसमे वे अपने छात्र को sperm का उद्धाहरण देते हैं !!
आप सभी को एक शिक्षा नहीं दे सकते ; आप सभी के घरों में बराबर से रोटी, कपडा पहुचा देंगे तो - किसान और जुलाहे मिलना मुश्किल हो जाएंगे ! खाना कपडा मिलेगा तो काम कौन करेगा ?
सब इंजीनियर होंगे तो मज़दूर कहाँ से आएंगे !
सब उद्योग अगर ऑटोमाइज़्ड हो जाएंगे, तो लोगों को काम कहाँ से मिलेगा ?
इंजीनियर ही इंजीनियर बना लिए हमने पर डॉक्टर कहाँ बनाये ?
सामान्य डॉक्टर गावों में ढूंढे नहीं मिलते, और स्पेशलिस्ट तो छोटे शहरों में भी नहीं मिलते !
देश में आज़ादी के इतने साल बाद भी देश में सिर्फ ९०० नेफ्रोलॉजिस्ट हैं
जितने नेफ्रोलॉजिस्ट पूरे देश में हैं उससे २ गुना शराब दुकाने सिर्फ मध्यप्रदेश - छत्तीसगढ़ में होंगी !
शराब पिलाओ क्योंकि वो राजस्व देती है, स्वस्थ्य का क्या है, सबको कभी न कभी तो मारना ही है ?
सत्ता की सोच सिर्फ वोट पर केंद्रित हो गयी है, जैसे सामान्य आदमी की सोच नोट पर केंद्रित है !!
ऐसी विचार धारा निर्मित होने के पश्च्यात भी हम आज कल्पना करते हैं की कोई गांधी, सुभाष, भगत सिंह पैदा होगा जो हमारा जीवन सुधरेगा - अगर ऐसा है तो सोचते रहिये, साथ में ये भी सोचिये की वो गांधी, सुभाष, भगत सिंह पडोसी के घर पैदा हो, हमारे घर नहीं !
ये समय है जब सत्ता एक नए तरह से सोच रही है - Narendra Modi के काम करने और सोचने का तरीका फरक है !
हो सकता है आने वाला समय स्वर्णिम हो ?
हो सकता है की ये नेता भी कुछ दिन में पुराने ढर्रे पर आ जाएं ?
जो भी हो भारत के हर नागरिक को, अपने अलावा आगे आने वाली पीड़ी के बारे में सोचना चाहिए - ये सोच पैसे के बारे में न होकर - अच्छे पर्यावरण, अच्छे समाज और शांतिमय जीवन के लिए होनी चाहिए !!
हमें अपनी जड़ों की तरफ लौटना होगा, अपने संस्कार अपनी सोच को फिर उसी " वसुदैव कुटुंबकम" के आस पास स्थापित करना होगा !
कर्म आधारित शहरों और समूहों का निर्माण करना होगा ; बिलकुल वैसा ही जैसा चीन में है !
रोजगार आधारित शिक्षा पर ध्यान देना होगा ; हस्तशिल्प पर ध्यान देना होगा !
वर्ण आधारित व्यवस्था मतलब वही व्यवस्था जो आगे चल कर जातिगत व्यवस्था बन गयी।
मतलब वही पुरानी परम्पराओं को धो पोंछ के फिर चमकना होगा ; जिसे हम पिछले ६० वर्षों में खारिज कर चुके हैं ! (कर्म/वर्ण आधारित) !!
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज !!
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