क्या हमारे पूर्वज वैज्ञानिक थे?
शाम की चाय के साथ बहस आज फिर गर्म हो चुकी थी। २१वीं सदी का युवा रोहन लैपटॉप पर एक आर्टिकल पढ़ते हुए गुस्से और उत्साह के मिले-जुले भाव में था। उसके सामने बैठे थे उसके नानाजी, पंडित विश्वंभरनाथ, जो न केवल संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे बल्कि विज्ञान में भी उनकी गहरी पैठ थी।
"नानाजी, यह सब दकियानूसी बातें हैं!" रोहन ने मेज पर हाथ पटकते हुए कहा। "आज हम ग्लोबलाइजेशन के दौर में हैं। हाइब्रिड बीजों (Hybrid Seeds) ने खेती में कमाल कर दिया है, उत्पादन दुगुना हो गया है। और आप लोग अभी भी 'शुद्धता', 'देसी पद्धति' और 'वर्ण-व्यवस्था' जैसी पुरानी बातों पर अड़े हैं? मिश्रण (Mixing) ही भविष्य है!"
नानाजी ने शांति से अपनी चाय की चुस्की ली और अपना चश्मा ठीक करते हुए मुस्कुराए। "रोहन, बेटा, तुम्हारा उत्साह जायज है क्योंकि तुम 'उत्पादन' (Production) देख रहे हो, 'परिणाम' (Consequence) नहीं। क्या तुमने कभी सोचा है कि किसान को हर साल नया बीज क्यों खरीदना पड़ता है? वह अपनी ही फसल के बीज को दोबारा क्यों नहीं बो सकता?"
रोहन थोड़ा ठिठका। "क्योंकि... हाइब्रिड बीजों से अगली फसल अच्छी नहीं होती।"
नानाजी की मुस्कान गंभीर हो गई। "बिल्कुल। इसे विज्ञान 'हाइब्रिड ब्रेकडाउन' (Hybrid Breakdown) कहता है। पहली पीढ़ी (F1) लहलहाती है, लेकिन दूसरी पीढ़ी (F2) में बीज या तो बाँझ (Sterile) हो जाता है या कमजोर। अब जरा सोचो, अर्जुन जैसा महायोद्धा महाभारत के युद्ध में अपनी मौत से नहीं डरा, लेकिन 'वर्ण संकरता' के विचार से कांप गया था। क्यों?"
रोहन ने भोहें सिकोड़ीं। "अर्जुन? खेती और युद्ध का क्या मेल?"
गीता, खेत और 'हाइब्रिड ब्रेकडाउन'
नानाजी ने पास रखी गीता उठाई। "बहुत गहरा मेल है। गीता के पहले अध्याय में अर्जुन कृष्ण से कहते हैं कि युद्ध से कुल का नाश होगा, स्त्रियाँ दूषित होंगी और 'वर्णसंकर' संताने पैदा होंगी, जिससे कुल और पितर दोनों 'नरक' में गिरेंगे। जिसे अर्जुन 'नरक' कह रहे थे, वह असल में वही स्थिति है जो हाइब्रिड बीज की दूसरी पीढ़ी के साथ होती है—जीवन क्षमता का नाश।"
नानाजी ने विस्तार से समझाना शुरू किया:
आत्मनिर्भरता का संकट: "जैसे देसी बीज बार-बार फलते हैं और पिता का गुण पुत्र में जाता है, वैसे ही शुद्ध वंश परंपरा चलती है। लेकिन हाइब्रिड बीज 'नपुंसक' होते हैं, वे अपना वंश आगे नहीं बढ़ा सकते।
जेनेटिक प्रदूषण: जब हम जबरदस्ती दो अलग प्रजातियों को मिलाते हैं, तो वे आसपास की प्राकृतिक प्रजातियों को भी दूषित कर देते हैं। शास्त्र इसे ही 'कुल-नाश' कहते हैं।"
सिर्फ सामाजिक नियम नहीं, जैविक सुरक्षा (Bio-protocol)
"लेकिन नानाजी, यह तो पौधों की बात हुई, इंसानों पर यह कैसे लागू होता है?" रोहन ने तर्क दिया। "जीव विज्ञान तो विविधता का समर्थन करता है।"
"मनुष्यों और जानवरों को प्रकृति में हजारों साल तक जीवित रहना है, उन्हें केवल एक सीजन की फसल नहीं बनना है," नानाजी ने जोर दिया। "हमारे ऋषियों ने हजारों साल के योग और अवलोकन से जाना था कि प्रकृति 'विशिष्टता' (Specialization) पर चलती है। जब दो असंगत वंशों या प्रजातियों का कृत्रिम मिश्रण होता है, तो उसे विज्ञान में 'आउटब्रीडिंग डिप्रेशन' (Outbreeding Depression) कहते हैं।"
नानाजी ने एक वैज्ञानिक शोध का हवाला दिया: "कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 'कोपपोड्स' (एक समुद्री जीव) पर शोध किया। उन्होंने पाया कि जब दो अलग-अलग आबादी के जीवों का मिलन कराया गया, तो दूसरी पीढ़ी (F2 Generation) में भारी मृत्यु दर देखी गई। उनका इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) कमजोर पड़ गया था।"
पितृ दोष और डीएनए का विज्ञान
रोहन अब ध्यान से सुन रहा था। "तो इसका हमारे 'पितरों' और 'पिंड-दान' से क्या संबंध?"
नानाजी ने समझाया, "शास्त्र कहते हैं कि वर्ण संकरता से 'पिंड क्रिया' लुप्त हो जाती है। इसे आधुनिक विज्ञान की भाषा में समझो। हमारे शरीर में ऊर्जा का स्रोत 'माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए' होता है जो केवल माता से मिलता है। जब असंगत विवाह (अति-दूरी या प्रतिलोम) होते हैं, तो माता का माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए और पिता का न्यूक्लियर डीएनए आपस में तालमेल नहीं बिठा पाते। इसे 'माइटो-न्यूक्लियर असंगतता' कहते हैं।"
"यह ठीक वैसा ही है जैसे गाड़ी का इंजन किसी और कंपनी का हो और गियरबॉक्स किसी और का। परिणाम? ऊर्जा का ह्रास, शारीरिक क्षमता में कमी और मानसिक अस्थिरता। यही वह 'तेज का नाश' है जिसकी चेतावनी गरुड़ पुराण देता है।"
हार्वर्ड का शोध और संयुक्त राष्ट्र की चिंता
नानाजी ने मेज पर रखी एक पत्रिका निकाली जिसमें हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डेविड रीच (David Reich) के शोध और संयुक्त राष्ट्र (UN) के मिशन का जिक्र था।
"सुनो, डेविड रीच ने भारतीय जीनोम पर व्यापक शोध किया है। उन्होंने पाया कि भारत में जाति व्यवस्था ने हजारों वर्षों से एक 'कठोर अंतर्विवाह' (Endogamy) का पालन किया। रीच मानते हैं कि यदि प्राचीन काल में ही सब मिश्रित हो गए होते, तो भारत की अद्वितीय आनुवंशिक विविधता नष्ट हो जाती। हर समूह ने अपने भीतर विशिष्ट गुण संजोए—जैसे क्षत्रियों में साहस के जीन या ब्राह्मणों में स्मृति के जीन।"
"और यूएन (UN)?" रोहन ने पूछा।
"UN आज 'बायो-डायवर्सिटी एक्ट' (Biodiversity Act) के जरिए देसी बीजों और प्रजातियों को बचाने की गुहार लगा रहा है," नानाजी बोले। "वैज्ञानिक अब मान रहे हैं कि अगर पूरी दुनिया में एक ही तरह का 'मिश्रित' (Hybrid) अनाज या मानव समुदाय हो गया, तो 'एकरूपता' (Uniformity) आ जाएगी। ऐसे में कोई एक बीमारी आई, तो पूरी मानव जाति या फसल एक साथ खत्म हो जाएगी। हमारे ऋषियों ने 'जाति' व्यवस्था के जरिए मनुष्यों को अलग-अलग श्रेणियों (Silos) में सुरक्षित रखा था। यह भेदभाव नहीं, बल्कि 'जीन पूल संरक्षण' (Gene Pool Conservation) था।"
निष्कर्ष: एक नई दृष्टि
चाय अब ठंडी हो चुकी थी, लेकिन रोहन के दिमाग में नए विचार उबल रहे थे।
नानाजी ने बात खत्म की, "बेटा, चाहे वह खेत का बीज हो या मनुष्य का वंश—जब हम प्रकृति की सीमाओं (मर्यादा) को तोड़कर कृत्रिम मिश्रण करते हैं, तो हमें लगता है कि हमने 'विकास' किया है। लेकिन वास्तव में, हम उस 'अमर श्रंखला' को तोड़ देते हैं जो हजारों साल से चली आ रही थी। सनातनी निषेध नफरत के लिए नहीं, बल्कि 'व्यवस्था' और 'संतुलन' (Entropy management) के लिए थे।"
रोहन मुस्कुराया, "यानी, हाइब्रिड टमाटर की चमक के पीछे 'वंश के नाश' का अंधेरा है। और हमारे पूर्वज केवल नियम नहीं बना रहे थे, वे वास्तव में मानव प्रजाति को बचाने का एक 'बायो-प्रोटोकॉल' लिख रहे थे?"
"बिलकुल सही," नानाजी ने संतोष से कहा। "विज्ञान आज वहीं पहुँच रहा है, जहाँ ऋषि पहले से खड़े थे। विविधता और मौलिकता का संरक्षण ही अस्तित्व का आधार है।"
#स्वामी_सच्चिदानंदन_जी_महाराज
संपादकीय नोट: यह लेख सनातनी शास्त्रों के वैज्ञानिक पक्ष को उजागर करने का एक प्रयास है। इसका उद्देश्य किसी समुदाय को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक पारिस्थितिकी (Ecology) व आनुवंशिकी (Genetics) के बीच के अद्भुत सामंजस्य को समझना है।
#SanatanVigyan #ScientificSpirituality #GitaGyan #VarnaSankara #Genetics #AncientWisdom #Hinduism #IndianCulture #PitraDosh #ScienceAndDharma
संपादकीय नोट: यह लेख सनातनी शास्त्रों के वैज्ञानिक पक्ष को उजागर करने का एक प्रयास है। इसका उद्देश्य किसी समुदाय को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक पारिस्थितिकी (Ecology) व आनुवंशिकी (Genetics) के बीच के अद्भुत सामंजस्य को समझना है।
#SanatanVigyan #ScientificSpirituality #GitaGyan #VarnaSankara #Genetics #AncientWisdom #Hinduism #IndianCulture #PitraDosh #ScienceAndDharma

टिप्पणियाँ