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Age of AI, Cooperation is the Future’s Necessity

Sanatan (Eternal) Gramoday: In the Age of AI, Cooperation is the Future’s Necessity The Gram Sabha will provide secure, permanent jobs. || A New Way of Thinking Rising India through the harmony of Tradition and Modern Management Sachin Awasthi President, Vishva Vijaya Foundation, Jabalpur Introduction Our elders used to say, "The soul of India lives in its villages." This is as true today as it was centuries ago. But what is the reality of our villages today? While massive factories are opening in big cities, our villages are emptying out. The youth are fleeing to the cities, leaving behind only silence and destitute elders and women. We need a path where wealth exists, but where the individual and their family also remain happy and united. We don’t need the blind race of capitalism; we need 'Cooperation'—working together. This concept is named Sanatan (Eternal) Gramoday. The Story of a ‘Coffee House’: Where the Waiter is the Owner Jabalpur’s ‘Indian Coffe...
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क्या प्रदूषण का हल केवल सनातन धर्म और हिंदू राष्ट्र में है? एक गंभीर विश्लेषण!!

अर्थव्यवस्था या पृथ्वी? (Economy or Earth?) समाधान: सनातन का प्रकृति प्रेम Are we killing Earth to save GDP? The Sanatan Solution. आज अति गंभीर #विषय ले आए ##छुट्टन_गुरु :  कहने लगे बताओ #स्वामी_जी विश्व की अर्थ व्यवस्था का पहिया कैसे चलेगा यदि #प्रदूषण खत्म करना है तो? लल्लन_महाराज : प्रदूषण खत्म क्यों करना इसे कम कर लेते हैं? इसे कोरोना काल में #तुरंत कम किया ही तो था। छुट्टन : जितना प्रदूषण कम होगा उतना पृथ्वी का तापमान कम बढ़ेगा। छुट्टन मतलब सब चाहते हैं कि #धरती का #बुखार थोड़ा धीरे धीरे बढ़े? हमें #सोलर बढ़ाने चाहिए की बिजली की खपत कम करनी चाहिए या दोनो एक साथ करना चाहिए? स्वामी_जी : दुनिया में #सत्ता का झगड़ा इसी कारण से तो है? दुबई में मंदिर क्यों बन रहा है? मुस्लिम दुनिया इजरायल का जवाब क्यों नहीं दे रही है? रूस क्यों परेशान है? चीन के उद्योग क्यों बंद करवाए जा रहे हैं? और सबसे बड़ी बात #स्पेस x को नासा के साथ नासा की प्रयोगशाला में काम करने का मौका क्यों मिला? दूसरे गृह में बस्ती बसाने की कोशिश क्यों? क्या हमे विश्वास है कि पृथ्वी मर रही है? पूरी विश्व राजनीति...

औपनिवेशिक बेड़ियाँ और आयुर्वेद:

आधुनिक भारत में अपनी ही जड़ों से संघर्ष:  क्या यह विडंबना नहीं है कि स्वतंत्र भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली आज भी उन नियमों से संचालित हो रही है जो अंग्रेजों ने औपनिवेशिक काल में बनाए थे?  यह ऐतिहासिक बोझ दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति "आयुर्वेद" पर आज भी भारी पड़ रहा है, जो वैदिक है, जिसका "मूल" अथर्ववेद में है।  यह सनातनी ज्ञान है।। 1964 से पहले की नीतियां, जो ब्रिटिश शासन की देन थीं, आज भी यह तय कर रही हैं कि हम आयुर्वेद को कैसे देखें और उपयोग करें।  यह उस राष्ट्र में आयुर्वेद की क्षमता का गला घोंटने जैसा है, जो दुनिया को 'समग्र कल्याण' (Holistic Wellness) का मार्ग दिखाता है। महर्षि चरक और पतंजलि के जिस "जड़ी बूटी"  के ज्ञान का लोहा दुनिया मानती है, उसे आज अपने ही देश में लेबल पर उस "जैविक औषधि"  के  'चिकित्सीय लाभ' लिखने की अनुमति नहीं है।  यहाँ तक कि "100% शाकाहारी" या "जैविक" (Organic) जैसे शब्द, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांत हैं, उन्हें भी नौकरशाही की लालफीताशाही में उलझा दिया जाता है। ...

ज्योतिर्लिंग और कानून : परंपरा, औषधि और आधुनिक द्वंद्व

  🔹 प्रस्तावना क्या आप जानते हैं — भारत के कितने #ज्योतिर्लिंगों में कानूनी रूप से #भांग चढ़ाना प्रतिबंधित है? और क्या आपने कभी सोचा कि हम #भांग, #विजया, या #हेंप जैसे शब्दों से डरते क्यों हैं? क्या यह केवल नशा है — या हमारी #आयुर्वेदिक विरासत और #सनातनी ज्ञान परंपरा का अभिन्न अंग? 🕉️ भांग परंपरा में — हमारे शास्त्र क्या कहते हैं हमारे #हिंदू पूर्वजों ने ‘भांग’ को केवल एक पौधा नहीं, बल्कि एक दैवीय औषधि माना। परंतु, पश्चिमी “विकसित” देशों ने 20वीं शताब्दी में ऐसे अंतरराष्ट्रीय कानून बनाए, जिनसे इन पौधों को “नशा” घोषित कर दिया गया — और इस प्रक्रिया में करोड़ों लोग कानून की आड़ में जेलों या फाँसी पर चढ़ा दिए गए। यह एक ऐसा नरसंहार था, जो #हिटलर से भी बड़ा था — और दुख की बात यह है कि आज भी यह जारी है। ⚖️ Single Narcotic Convention, 1961 – और पौधों का अपराधीकरण संयुक्त राष्ट्र के Single Narcotic Convention (1961) के बाद, विश्वभर में हर उस पौधे को “निषिद्ध” घोषित किया गया, जो #आयुर्वेद, #सिद्ध, #यूनानी या #प्राकृतिक चिकित्सा में उपयोगी था। अब सवाल उठता है — क्या यह विज्ञान था, या हमारी ...

जन मन विकृति: गर्व-डर-आराम का तड़का

  अद्भुत अति अद्भुत यह कला ही है हाँ कला ही जिसे जन मन विकृति (Mass mind distortion) कहते हैं। इस कला के पैटर्न को समझना आवश्यक है, मनुष्य गर्व, डर या आराम के लिए जीता है और मरता भी है बस यही 3 बिंदु इस कला को जीवित रखते हैं।। आपसे कुछ प्रश्न है उत्तर दीजिये। 1- रिफाइंड आयल और वनस्पति घी क्यों खाते हैं? 2- प्लास्टिक क्यों उपयोग करते हैं? 3- रीठा या मुल्तानी मिट्टी से क्यों नहीं नहाते? 4- जमीन पर पत्तल पर क्यों नही खाते? 5- हर समय मिनिरल वाटर की बोतल ही क्यों? कारण हैं गर्व, डर और आराम। जान का डर हो या पैसे जाने का डर। या जल्द मारने का डर या टेबल पर खाने का गर्व या वैभव का सुख और गर्व। यही वह चीजे हैं जिन्हें बाज़ारवाद पुष्ट करता है। आज डालडा से ज्यादा फायदा देसी घी की बिक्री में है तो वही सही है, पर वे उसे वैदिक पद्धति से नही बनाएंगे। प्लास्टिक जब तक फायदे मन्द था खूब उपयोग किया अब आपको मार रहा है तो बन्द होना चाहिए? हज़ारो साल से पत्तल में खा रहे थे जो कुछ वर्षों में बुरा हो गया और आपने उसे मान भी लिया क्यों? किसपर विश्वास किया और किसपर अविश्वास यह कभी सोचा है? कोका कोला शिकंजी से ब...

The Sanatani Scriptures: A Deep Reflection on Economy, Health, and Environment

Can you imagine that a simple habit—waking up one and a half hours before sunrise and sleeping early—could save the entire world? This ancient tradition from the Hindu Sanatani scriptures and Ayurveda not only strengthens individual health but, if adopted globally, could yield benefits like massive electricity savings, reduced expenditure on diseases, and earnings from carbon credits. In this article, we will analyze this with data to understand how revolutionary this shift could be for the business world and society. Section I: The Foundation of Health: The Secret of the Brahma Muhurta Our world (both stationary and moving beings) operates on a natural clock, known as the "Circadian Rhythm." Ayurveda, the scriptures, and modern science all agree that aligning with this clock leads to extraordinary improvements in health. Brahma Muhurta—the time approximately 90 minutes before sunrise—is the ideal example of this. In Ayurveda, it is considered the most sacred time...

ब्रह्म मुहूर्त: सनातनी ज्ञान जो दुनिया बदल सकता है; स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर एक गहन नजर

 सनातनी शास्त्र ; अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर एक गहन नजर क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक साधारण आदत; सुबह सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले जागना और रात को जल्दी सो जाना; पूरी दुनिया को बचा सकती है?  हिंदू सनातनी शास्त्रों और आयुर्वेद की यह प्राचीन परंपरा न सिर्फ व्यक्तिगत स्वास्थ्य को मजबूत करती है, बल्कि अगर इसे वैश्विक स्तर पर अपनाया जाए, तो बिजली की भारी बचत, बीमारियों पर खर्च में कमी और कार्बन क्रेडिट से कमाई जैसे लाभ मिल सकते हैं।  इस लेख में हम आंकड़ों के आधार पर इसका विश्लेषण करेंगे, ताकि समझ आए कि यह बदलाव व्यावसायिक दुनिया और समाज के लिए कितना क्रांतिकारी हो सकता है। खंड I: स्वास्थ्य की नींव; ब्रह्म मुहूर्त का रहस्य हमारा यह विश्व (स्थावर जंघम प्राणी) एक प्राकृतिक घड़ी पर चलते है; जिसे "सर्कैडियन रिदम" कहते हैं।  आयुर्वेद, शास्त्र और आधुनिक विज्ञान तीनों इस बात पर सहमत हैं कि इस घड़ी से तालमेल बिठाने से स्वास्थ्य में अभूतपूर्व सुधार होता है। ब्रह्म मुहूर्त; सूर्योदय से करीब 90 मिनट पहले का समय; इसका आदर्श उदाहरण है। आयुर्वेद में इसे जागने और ध्यान के ल...