आधुनिक भारत में अपनी ही जड़ों से संघर्ष: क्या यह विडंबना नहीं है कि स्वतंत्र भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली आज भी उन नियमों से संचालित हो रही है जो अंग्रेजों ने औपनिवेशिक काल में बनाए थे? यह ऐतिहासिक बोझ दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति "आयुर्वेद" पर आज भी भारी पड़ रहा है, जो वैदिक है, जिसका "मूल" अथर्ववेद में है। यह सनातनी ज्ञान है।। 1964 से पहले की नीतियां, जो ब्रिटिश शासन की देन थीं, आज भी यह तय कर रही हैं कि हम आयुर्वेद को कैसे देखें और उपयोग करें। यह उस राष्ट्र में आयुर्वेद की क्षमता का गला घोंटने जैसा है, जो दुनिया को 'समग्र कल्याण' (Holistic Wellness) का मार्ग दिखाता है। महर्षि चरक और पतंजलि के जिस "जड़ी बूटी" के ज्ञान का लोहा दुनिया मानती है, उसे आज अपने ही देश में लेबल पर उस "जैविक औषधि" के 'चिकित्सीय लाभ' लिखने की अनुमति नहीं है। यहाँ तक कि "100% शाकाहारी" या "जैविक" (Organic) जैसे शब्द, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांत हैं, उन्हें भी नौकरशाही की लालफीताशाही में उलझा दिया जाता है। ...
🔹 प्रस्तावना क्या आप जानते हैं — भारत के कितने #ज्योतिर्लिंगों में कानूनी रूप से #भांग चढ़ाना प्रतिबंधित है? और क्या आपने कभी सोचा कि हम #भांग, #विजया, या #हेंप जैसे शब्दों से डरते क्यों हैं? क्या यह केवल नशा है — या हमारी #आयुर्वेदिक विरासत और #सनातनी ज्ञान परंपरा का अभिन्न अंग? 🕉️ भांग परंपरा में — हमारे शास्त्र क्या कहते हैं हमारे #हिंदू पूर्वजों ने ‘भांग’ को केवल एक पौधा नहीं, बल्कि एक दैवीय औषधि माना। परंतु, पश्चिमी “विकसित” देशों ने 20वीं शताब्दी में ऐसे अंतरराष्ट्रीय कानून बनाए, जिनसे इन पौधों को “नशा” घोषित कर दिया गया — और इस प्रक्रिया में करोड़ों लोग कानून की आड़ में जेलों या फाँसी पर चढ़ा दिए गए। यह एक ऐसा नरसंहार था, जो #हिटलर से भी बड़ा था — और दुख की बात यह है कि आज भी यह जारी है। ⚖️ Single Narcotic Convention, 1961 – और पौधों का अपराधीकरण संयुक्त राष्ट्र के Single Narcotic Convention (1961) के बाद, विश्वभर में हर उस पौधे को “निषिद्ध” घोषित किया गया, जो #आयुर्वेद, #सिद्ध, #यूनानी या #प्राकृतिक चिकित्सा में उपयोगी था। अब सवाल उठता है — क्या यह विज्ञान था, या हमारी ...